भारतीय आबादी में व्याप्त पोषण की कमी को दूर करने हेतु फूड फोर्टिफिकेशन एक रामबाण इलाज है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- फूड फोर्टिफिकेशन के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में खाद्य सुदृढ़ीकरण के संभावित लाभों की चर्चा कीजिये।
- खाद्य सुदृढ़ीकरण के उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों की विवेचना कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।
|
परिचय
फूड फोर्टिफिकेशन भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों (आवश्यक ट्रेस तत्त्वों और विटामिन) को जोड़ने की प्रक्रिया है। इसका प्रयोग खाद्य निर्माताओं या सरकारों द्वारा एक सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति को सफल बनाने हेतु किया जा सकता है जिसका उद्देश्य आबादी के भीतर आहार की कमी वाले लोगों की संख्या को कम करना है।
फूड फोर्टिफिकेशन के लाभ
- पोषक मूल्य में वृद्धि: बायो-फोर्टिफाइड फसलों में पारंपरिक किस्मों की तुलना में प्रोटीन, विटामिन, खनिज और अमीनो एसिड का 1.5 से 3 गुना अधिक उच्च स्तर पाया जाता है।
- फोर्टिफिकेशन की सुरक्षित विधि: उल्लेखनीय है कि ये किस्में आनुवंशिक रूप से संशोधित नहीं हैं बल्कि इन्हें वैज्ञानिकों द्वारा पारंपरिक फसल प्रजनन तकनीकों के माध्यम से विकसित किया गया है।
- इसके अलावा, भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों (micronutrients) को शामिल करने से लोगों के स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होता है। संयुक्त की गई मात्रा इतनी कम और निर्धारित मानकों के अनुसार इतनी अच्छी तरह से विनियमित होती है कि पोषक तत्त्वों की अधिकता की संभावना नहीं होती।
- बड़े पैमाने पर पोषण सुरक्षा: चूँकि व्यापक रूप से उपभोग किये जाने वाले प्रमुख खाद्य पदार्थों में पोषक तत्त्वों का योग किया जाता है, यह आबादी के एक बड़े हिस्से के स्वास्थ्य में एक साथ सुधार लाने का एक उत्कृष्ट तरीका है।
- व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता नहीं: इसके लिये लोगों की आहार आदतों और पैटर्न में किसी भी बदलाव की आवश्यकता नहीं होती है। यह आबादी में पोषक तत्व की सुनिश्चितता का सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य तरीका है।
- यह खाद्य के गुणों—स्वाद, तृप्ति या रूप में कोई परिवर्तन नहीं लाता।
- त्वरित परिणाम: इसका त्वरित कार्यान्वयन किया जा सकता है और यह अपेक्षाकृत कम समय में स्वास्थ्य में सुधार परिणाम दर्शा सकता है।
- लागत प्रभावी: यह विधि लागत प्रभावी है, विशेष रूप से यदि मौजूदा प्रौद्योगिकी और वितरण प्लेटफॉर्म का समुचित लाभ उठाया जाए।
फूड फोर्टिफिकेशन के प्रतिकूल प्रभाव
- सुपोषण का विकल्प नहीं: हालाँकि फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों में चयनित सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की अधिक मात्रा होती है, वे एक अच्छी गुणवत्ता वाले आहार का विकल्प नहीं हो सकते जो इष्टतम स्वास्थ्य के लिये आवश्यक पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा, प्रोटीन, आवश्यक वसा और अन्य खाद्य घटकों की आपूर्ति करे।
- जनसंख्या के निर्धनतम वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति में अक्षम: कमज़ोर क्रय शक्ति और एक अविकसित वितरण चैनल के कारण आम आबादी के निर्धनतम वर्ग खुले बाज़ारों में इन फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों तक पहुँच ही नहीं रखते।
- अनिर्णीत साक्ष्य: फोर्टिफिकेशन का समर्थन करने वाले साक्ष्य अनिर्णीत या अधूरे हैं और निश्चित रूप से पर्याप्त नहीं हैं कि इनके आधार पर वृहत राष्ट्रीय नीतियों का कार्यान्वयन किया जाए।
- फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिये FSSAI जिन कई अध्ययनों पर निर्भर है, वे उन खाद्य कंपनियों द्वारा प्रायोजित अध्ययन हैं जो इससे लाभान्वित होंगे और इससे हितों के टकराव (conflicts of interest) की स्थिति बनती है।
- हानिकारक प्रभाव की संभावना: एक या दो सिंथेटिक रासायनिक विटामिन और खनिजों का योग कर देने से वृहत समस्या का समाधान नहीं होगा, जबकि अल्पपोषित आबादी में विषाक्तता जैसे कई हानिकारक प्रभाव भी उत्पन्न हो सकते हैं।
- एक अध्ययन से पता चला है कि आयरन फोर्टिफिकेशन के कारण कुपोषित बच्चों में आंत के सूजन (gut inflammation) और रोगजनक गट माइक्रोबायोटा प्रोफाइल (gut microbiota profile) जैसी चिंताजनक स्वास्थ्य स्थिति उत्पन्न हुई।
- प्राकृतिक खाद्य का महत्त्व कम होना: यदि आयरन-फोर्टिफाइड चावल को एनीमिया के उपचार के रूप में बेचा जाएगा तो बाजरा, विभिन्न हरी पत्तेदार सब्जियाँ, माँस खाद्य पदार्थ, यकृत जैसे प्राकृतिक रूप से लौह-युक्त खाद्य पदार्थों का महत्त्व और चयन एक मौन नीति के माध्यम से दबा दिया जाएगा।
आगे की राह
- महिलाओं की पोषण साक्षरता में वृद्धि करना: माता की शिक्षा और बच्चों की सेहत के बीच प्रत्यक्ष संबंध होता है। जिन बच्चों की माताएँ अशिक्षित हैं, उन्हें न्यूनतम आहार विविधता प्राप्त होती है और वे स्टंटिंग एवं वेस्टिंग से पीड़ित होते हैं तथा एनीमिक होते हैं।
- कृषि-अनुसंधान एवं विकास पर व्यय में वृद्धि करना: बायोफोर्टिफाइड खाद्य में नवाचार केवल तभी कुपोषण को कम कर पाएगा जब उन्हें सहायक/अनुपूरक नीतियों के साथ आगे बढ़ाया जाए।
- इसके लिये कृषि-अनुसंधान एवं विकास पर व्यय की वृद्धि करनी होगी और संवहनीय मूल्य श्रृंखलाओं एवं वितरण चैनलों के माध्यम से किसानों के उत्पादन को आकर्षक बाज़ारों से जोड़कर उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होगी।
- निजी निवेश: सरकार निजी क्षेत्र से एक विशेष बाज़ार खंड के निर्माण की अपेक्षा कर सकती है जहाँ हाई-एंड उपभोक्ताओं के लिये उच्च गुणवत्तायुक्त बायो-फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ उपलब्धता हों।
- उदाहरण के लिये, टाटा समूह द्वारा संचालित ट्रस्ट विभिन्न राज्यों को विटामिन A और D के साथ दूध के फोर्टीफिकेशन की पहल करने में मदद कर रहे हैं ।
- अन्य निजी डेयरियों को भी देश भर में दूध की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।