हाल ही में भारतीय महिलाओं ने गतिविधि के सभी क्षेत्रों में काफी प्रगति की है, फिर भी बहुत कुछ हासिल करना अभी बाकी है। इस कथन के आलोक में महिला शिक्षा विशेषकर उच्च शिक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- शिक्षा में विशेष रूप से उच्च शिक्षा में बालिकाओं के प्रतिनिधित्व के बारे में कुछ डेटा देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- बालिकाओं द्वारा कॉलेज छोड़ने की दर और महिला शिक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- उच्च शिक्षण संस्थानों में बालिकाओं की भागीदारी बढ़ाने में मदद करने के लिए कोई रास्ता सुझाइये।
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परिचय
पिछले कुछ दशकों से भारतीय बालिकाओं ने गतिविधि के सभी क्षेत्रों में व्यापक प्रगति की है। फिर भी, अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना शेष है। भारतीय बालिकाओं ने भारत के लिये ओलंपिक खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। यदि उन्हें उपयुक्त सहयोग और समर्थन प्राप्त होता है तो किसी अन्य क्षेत्र में भी (विशेष रूप से शिक्षा के मामले में) उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन न कर सकने का कोई कारण नहीं है।
यदि हम एक आर्थिक महाशक्ति बनने की इच्छा रखते हैं तो एक राष्ट्र के रूप में अपने संभावित कार्यबल के आधे हिस्से की उपेक्षा नहीं कर सकते। एक समाज के रूप में महिलाएँ महत्त्वपूर्ण और स्थायी सामाजिक परिवर्तन लाने की धुरी हो सकती हैं; व्यक्ति के रूप में उन्हें अपने उत्कृष्टतम विकास का अवसर मिलना चाहिये।
प्रारूप
उच्च शिक्षा में बालिकाओं के प्रतिनिधित्व में कमी के कारण:
- पढ़ाई छोड़ देने के कारण: भारत में बालिकाओं द्वारा बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने के विविध कारण रहे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारण हैं:
- घरेलू गतिविधियों में संलग्नता (31.9%)
- आर्थिक तंगी (18.4%),
- शिक्षा में रुचि का अभाव (15.3%), और
- विवाह (12.4%)।
- लैंगिक पूर्वाग्रह और सामाजिक मानदंड: समस्या का मूल न केवल निर्धनता और स्कूली शिक्षा की खराब गुणवत्ता में निहित है, बल्कि लैंगिक पूर्वाग्रहों और घिसे-पिटे सामाजिक मानदंडों में भी है।
- जिन राज्यों में बालिकाओं द्वारा माध्यमिक विद्यालय स्तर पर पढ़ाई छोड़ देने की उच्चतम दर पाई जाती है, वे वही राज्य हैं जहाँ बालिकाओं के एक उल्लेखनीय प्रतिशत का 18 वर्ष की आयु से पूर्व विवाह कर दिया जाता है।
- बालिकाओं की शिक्षा पर कम व्यय: स्कूलों के चयन, निजी ट्यूशनों तक पहुँच और उच्च शिक्षा में विषय के चयन तक लैंगिक पूर्वाग्रह की गहरी जड़ें जमी हुई हैं।
आगे की राह:
- सामुदायिक शिक्षण कार्यक्रम: एक तात्कालिक कदम के रूप में प्रत्येक मोहल्ले में उपयुक्त कोविड मानदंडों के साथ एक मोहल्ला स्कूल या सामुदायिक शिक्षण कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये।
- नीति आयोग ने नागरिक समाज संगठनों की मदद से 28 आकांक्षी जिलों में स्वयंसेवकों के नेतृत्व में संचालित "सक्षम बिटिया" नामक सामुदायिक कार्यक्रम शुरू किया था, जहाँ 1.87 लाख से अधिक छात्राओं को सामाजिक-भावनात्मक और नैतिक शिक्षा में प्रशिक्षित किया गया था।
- इस तरह की पहलों को दुहराया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महामारी के दौरान और अधिक बालिकाएँ स्कूल छोड़ने को विवश न हों।
- जेंडर एटलस/ड्रॉपआउट मैपिंग: ड्रॉप-आउट की संभावना का अनुमान लगाने के लिये एक जेंडर एटलस विकसित किया जाना चाहिये (जिसमें शामिल संकेतक स्कूल ड्रॉप-आउट के प्रमुख कारणों से मैप किए गए हों)।
- शिक्षा के मामले में पिछड़े जिलों के लिये विशेष शिक्षा क्षेत्र: प्रत्येक पंचायत, जहाँ बालिकाओं द्वारा बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की प्रवृत्ति में लगातार वृद्धि हुई हो, वहाँ उच्च माध्यमिक (कक्षा I-XII) तक के संयुक्त विद्यालय खोले जाने चाहिये।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक लैंगिक समावेशन निधि (Gender Inclusion Fund) का प्रावधान करती है। इस निधि का उपयोग इन स्कूलों के साथ-साथ सभी कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में STEM शिक्षा का समर्थन करने के लिये किया जाना चाहिये ।
- सामाजिक पूर्वाग्रहों से निपटने की आवश्यकता: सामाजिक पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी सांस्कृतिक मानदंड बालिकाओं को उनकी जन्मजात क्षमता को साकार कर सकने की संभावना से अवरुद्ध करते हैं।
- अति-स्थानीय NGOs/CSOs की मदद से सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिये राज्यों में बिहेवियरल इनसाइट्स यूनिट्स (BIU) की स्थापना की जा सकती है।
- छात्रवृत्ति राशि को बढ़ाया जा सकता है और स्नातक स्तर की पढ़ाई की पूर्ति से इसे संबद्ध किया जा सकता है, जहाँ छात्राओं को उनकी स्नातक डिग्री के प्रत्येक वर्ष के सफल समापन पर वार्षिक छात्रवृत्ति का भुगतान किया जाए।
निष्कर्ष:
Covid-19 महामारी ने शिक्षकों और छात्रों के लिये अभूतपूर्व चुनौतियों को जन्म दिया है और विशेष रूप से बालिकाओं सहित हाशिये पर रहे लोग इसके प्रभाव में आए हैं। हालाँकि हाल के प्रयोगों और अधिगम अनुभव, पर्याप्त संसाधनों के सूचित लक्ष्यीकरण और एक चुस्त नीति वातावरण के साथ इस चुनौती को एक अवसर में भी बदला जा सकता है। उपयुक्त सक्षम वातावरण के साथ शैक्षिक प्रतिफलों में सुधार लाया जा सकता है।
शिक्षा में लिंग भेद की समस्या को संबोधित करने के लिये बालिकाओं को सामाजिक, वित्तीय और भावनात्मक सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।