प्राचीन भारत में गुप्त काल कला, वास्तुकला, विज्ञान, धर्म और दर्शन के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों के लिये जाना जाता है। टिप्पणी कीजिये।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- गुप्त साम्राज्य और उसके विस्तार के बारे में लेखन के साथ परिचय दें।
- कला, वास्तुकला, विज्ञान, धर्म और दर्शन के क्षेत्र में गुप्त साम्राज्य की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये।
- इस अवधि में उभरे सामाजिक मुद्दों पर भी चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
गुप्त साम्राज्य 320 और 550 ई.के बीच उत्तरी, मध्य और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था। यह अवधि कला, वास्तुकला, विज्ञान, धर्म और दर्शन में अपनी उपलब्धियों के लिये विख्यात है।
प्रारूप
- शासन: गुप्त साम्राज्य की ‘मार्शल’ प्रणाली की दक्षता सर्वविदित थी। इसमें बड़े राज्य को छोटे प्रदेशों (प्रांतों) में विभाजित किया गया था।
- व्यापार: सोने और चाँदी के सिक्के बड़ी संख्या में जारी किये गए जो स्वस्थ्य अर्थव्यवस्था का संकेतक है।
- व्यापार और वाणिज्य का देश के भीतर व बाहर दोनों जगह विकास हुआ। रेशम, कपास, मसाले, औषधि, अमूल्य रत्न, मोती, कीमती धातु और स्टील का निर्यात समुद्र मार्ग से किया जाता था।
- धर्म: गुप्त सम्राट स्वयं वैष्णव (विष्णु के रूप में सर्वोच्च निर्माता की पूजा करने वाले हिंदू) थे, फिर भी उन्होंने बौद्ध एवं जैन धर्म के अनुयायियों के प्रति सहिष्णुता प्रदर्शित की।
- साहित्य: इस काल के दौरान कवि और नाटककार कालिदास ने अभिज्ञानशाकुंतलम, मालविकाग्निमित्रम, रघुवंश और कुमारसम्भम जैसे महाकाव्यों की रचना की। हरिषेण ने ‘इलाहाबाद प्रशस्ति’ की रचना की, शूद्रक ने मृच्छकटिका, विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस और विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र की रचना की।
- वराहमिहिर द्वारा वृहत् संहिता लिखी गई तथा खगोल विज्ञान एवं ज्योतिष के क्षेत्र में भी योगदान दिया। प्रतिभाशाली गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धांत लिखा जिसमें ज्यामिति, त्रिकोणमिति एवं ब्रह्मांड विज्ञान के कई पहलुओं को शामिल किया गया। शंकु द्वारा भूगोल के क्षेत्र में कई ग्रंथों की रचना की गई।
- वास्तुकला: उस काल की चित्रकला, मूर्तिकला और स्थापत्य कला के बेहतरीन उदाहरण अजंता, एलोरा, सारनाथ, मथुरा, अनुराधापुरा और सिगिरिया में देखे जा सकते हैं।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी: इस काल के विद्वान आर्यभट्ट गणित की विभिन्न प्रकार की गणना करने में पारंगत थे। आर्यभट्ट की पुस्तक ‘आर्यभट्टीयम्’ इस काल की गणित के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।
- खगोल के क्षेत्र में भी इस काल में खूब प्रगति हुई, जैसे- वराहमिहिर और आर्यभट्ट इस काल के प्रमुख खगोलशास्त्री थे।
- गुप्तकालीन शिल्पकारों ने भी लौह और कांस्य शिल्पाकृतियों में अपना चमत्कार दिखाया है। इस समय बुद्ध की अनेक कांस्य मूर्तियों का बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ। लोहे की वस्तुओं में दिल्ली के महरौली में लौह स्तंभ प्रमुख उदाहरण है। चौथी सदी में निर्मित यह स्तंभ आज तक जंग के प्रभाव से मुक्त है, जो तत्कालीन महान तकनीकी कौशल का परिणाम है।
- गुप्त काल के दौरान सामाजिक स्थिति में गिरावट
- हालाँकि यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि गुप्त काल में सामाजिक विकास में प्रगति नहीं देखी गई, उदाहरण के लिये इस काल में चांडालों (अछूतों) की संख्या में वृद्धि हुई और इस दौरान उनकी स्थिति खराब हो गई।
- सती प्रथा का पहला उदाहरण गुप्त काल में ही 510 ईस्वी में मिलता है।
निष्कर्ष
- गुप्त काल ने समग्र समृद्धि और विकास की अवधि की शुरुआत की जो अगली ढाई शताब्दियों तक जारी रही, इसे भारत के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में जाना जाने लगा।
- हालाँकि गुप्त काल को स्वर्ण काल केवल एक दर्जे के रूप में ही स्वीकार किया जा सकता है, निरपेक्ष रूप से नहीं।