SCO, यूरेशियाई दिक् में एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन के रूप में उभरा है। इस कथन के आलोक में भारत द्वारा अपने राष्ट्रीय हित को पूरा करने के लिये उपलब्ध अवसर की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- यूरेशियाई दिक् में एक महत्त्वपूर्ण संगठन के रूप में उभरे SCO के बारे में संक्षेप में बताते हुए परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि SCO भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने का अवसर कैसे प्रदान करता है।
- समूह से संबद्ध कुछ मुद्दों को हाइलाइट कीजिये और उन्हें आगे बढ़ाने का सुझाव दीजिये।
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परिचय
मात्र दो दशक से भी कम समय में SCO यूरेशियन क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन के रूप में उभरा है। यह समूह यूरेशिया के लगभग 60% से अधिक क्षेत्रफल, वैश्विक आबादी के 40% से अधिक हिस्से और वैश्विक जीडीपी के लगभग एक-चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्त्व करता है।
प्रारूप
भारत के अवसर और SCO
- क्षेत्रीय सुरक्षा: यूरेशियन सुरक्षा समूह के एक अभिन्न अंग के रूप में SCO भारत को इस क्षेत्र में धार्मिक अतिवाद और आतंकवाद के कारण उत्पन्न होने वाले शक्तियों को बेअसर करने में सक्षम बनाएगा।
- ग़ौरतलब है कि अफगानिस्तान से पश्चिमी देशों की सेनाओं की वापसी और इस क्षेत्र में खुरासान प्रांत की स्थापना के साथ इस्लामिक स्टेट (Islamic State-IS) की सक्रियता में हुई वृद्धि ने क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिये एक नई चुनौती खड़ी कर दी है।
- क्षेत्रवाद की स्वीकार्यता: SCO उन कुछ चुने हुए क्षेत्रीय संगठनों में से एक है, जिनमें भारत अभी भी शामिल है, गौरतलब है कि हाल के कुछ वर्षों में सार्क (SAARC), क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) और ‘बीबीआईएन (BBIN)समझौता’ जैसे समूहों में भारत की सक्रियता में गिरावट देखने को मिली है।
- मध्य एशिया से संपर्क: SCO भारत की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति’ को आगे बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच का कार्य कर सकता है।
- पाकिस्तान और चीन से निपटना: SCO भारत को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहाँ वह क्षेत्रीय मुद्दों पर चीन और पाकिस्तान के साथ रचनात्मक चर्चा में शामिल हो सकता है और अपने सुरक्षा हितों को उनके समक्ष रख सकता है।
- अफगानिस्तान की स्थिरता के लिये: SCO अफगानिस्तान में तेज़ी से बदल रही स्थितियों और इस क्षेत्र में धार्मिक अतिवाद और आतंकवाद से उत्पन्न होने वाली शक्तियों (जिनसे भारत की सुरक्षा और विकास को खतरा हो सकता है) से निपटने के लिये एक वैकल्पिक क्षेत्रीय मंच के रूप में कार्य कर सकता है।
- रणनीतिक संतुलन: इन सबसे परे SCO में बने रहने को इसलिये भी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह पश्चिमी देशों के साथ भारत के मज़बूत होते संबंधों के बीच वैश्विक राजनीति में भू-राजनीतिक संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
चुनौतियाँ जिन पर भारत को नेविगेट करने की आवश्यकता है:
- प्रत्यक्ष स्थलीय संपर्क की बाधाएँ: पाकिस्तान द्वारा भारत और अफगानिस्तान (तथा इसके आगे भी) के बीच भू-संपर्क की अनुमति न देना, भारत के लिये यूरेशिया के साथ अपने विस्तारित संबंधों को मज़बूत करने में सबसे बड़ी बाधा रहा है।
- रूस और चीन के बीच मज़बूत होता संपर्क: रूस द्वारा भारत को SCO में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करने के पीछे एक बड़ा कारण चीन की बढ़ती शक्ति को संतुलित करना था।
- हालाँकि वर्तमान में जब भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान दिया है, तो इसी दौरान रूस और चीन की बढ़ती निकटता भारत के लिये एक नई चुनौती बनकर उभर रही थी।
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना पर मतभेद: भारत ने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना’ को लेकर प्रत्यक्ष रूप से अपना विरोध स्पष्ट कर दिया है परंतु SCO के अन्य सदस्यों ने चीन की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना का समर्थन किया है।
- भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता: SCO सदस्यों ने पूर्व में इस संगठन को भारत-पाकिस्तान के प्रतिकूल संबंधों का बंधक बनाए जाने की आशंका व्यक्त की थी, परंतु हाल के दिनों की स्थितियों को देखते हुए उनका भय और भी बढ़ गया होगा।
आगे की राह:
- मध्य एशिया के साथ संपर्क सुधार: भारत मध्य एशिया में अपनी पहुँच को मज़बूत करने के लिये इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्त्व से जुड़ी रूस की चिंताओं को भुना सकता है, इसके अतिरिक्त मध्य एशियाई देश भी इस क्षेत्र में भारत द्वारा एक बड़ी भूमिका निभाए जाने को लेकर उत्सुक हैं।
- चीन के साथ संबंधों में सुधार: 21वीं सदी की वैश्विक राजनीति में एशियाई नेतृत्व को मज़बूती प्रदान करने के लिये यह बहुत ही आवश्यक है कि भारत और चीन द्वारा आपसी मतभेदों को शांति के साथ दूर करने के लिये एक व्यवस्थित प्रणाली को विकसित किया जाए।
- सैन्य सहयोग में वृद्धि: हाल के वषों में क्षेत्र में आतंकवाद संबंधी गतिविधियों में वृद्धि को देखते हुए यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि SCO द्वारा एक ‘सहकारी और टिकाऊ सुरक्षा ढाँचे’ का विकास किया जाए, साथ ही क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना को और अधिक प्रभावी बनाए जाने का भी प्रयास किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
SCO की भूमिका और इसके उद्देश्यों की व्यापकता वर्तमान में न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक रणनीतिक तथा आर्थिक परिदृश्य के लिये भी बढ़ती हुई प्रतीत होती है। वर्तमान परिदृश्य में SCO के एक नए सदस्य के रूप में भारत को एक उपयुक्त एवं व्यापक यूरेशियन रणनीति तैयार करने की आवश्यकता होगी।