किस प्रकार अवैध प्रवास भारत के लिये प्रमुख आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में से एक है। इस मुद्दे से निपटने के लिये मौजूदा कानूनी ढाँचे पर भी चर्चा कीजिये। (150 शब्द)।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- भारत में अवैध प्रवासियों के बारे में बताते हुए शुरुआत कीजिये।
- अवैध प्रवास एक आंतरिक सुरक्षा चुनौती कैसे है, बताइये।
- अवैध प्रवास के मुद्दों से निपटने के लिये मौजूदा कानूनी ढाँचे पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह सुझाइये।
|
परिचय
भारत में अवैध प्रवासी एक विदेशी है जिसने या तो वैध दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया है या जिसके पास शुरू में एक वैध दस्तावेज था, लेकिन 2003 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के सामान्य प्रावधानों के अनुसार, अनुमत समय से अधिक समय तक उपयोग के चलते वह अवैध हो गया हो।
ऐसे व्यक्ति पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता के लिए पात्र नहीं हैं। उन्हें 2-8 वर्ष की कैद और जुर्माना भी हो सकता है।
प्रारूप
आंतरिक सुरक्षा चुनौती के रूप में अवैध प्रवास
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा:
- भारत में रोहिंग्याओं के अवैध अप्रवास का जारी रहना और उनका भारत में लगातार रहना, राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डालता है तथा सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा पैदा करता है।
- हितों का टकराव:
- यह उन क्षेत्रों में स्थानीय आबादी के हितों को प्रभावित करता है जो बड़े पैमाने पर अप्रवासियों के अवैध रुप से प्रवेश का सामना करते हैं।
- राजनैतिक अस्थिरता:
- यह राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ाता है जब नेता राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिये अभिजात वर्ग द्वारा प्रवासियों के खिलाफ देश के नागरिकों की धारणा को लामबंद करना शुरू करते हैं।
- उग्रवाद का उदय:
- अवैध प्रवासियों के रूप में माने जाने वाले मुस्लिमों के खिलाफ लगातार होने वाले हमलों ने कट्टरपंथ का मार्ग प्रशस्त किया है।
- मानव तस्करी:
- हाल के दशकों में सीमाओं पर महिलाओं और मानव तस्करी की घटनाओं में काफी वृद्धि देखी गई है।
- कानून व्यवस्था में गड़बड़ी:
- अवैध और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त अवैध प्रवासियों द्वारा देश की कानून व्यवस्था और अखंडता को कमज़ोर किया जाता है।
मौजूदा कानूनी ढाँचा:
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920:
- इस अधिनियम ने सरकार को भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को अपने पास पासपोर्ट रखने के लिये नियम बनाने का अधिकार दिया।
- इसने सरकार को बिना पासपोर्ट के प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को भारत से हटाने की शक्ति भी प्रदान की।
- विदेशी अधिनियम, 1946:
- इसने विदेशी अधिनियम, 1940 की जगह सभी विदेशियों से निपटने हेतु व्यापक अधिकार प्रदान किये।
- इस अधिनियम ने सरकार को बल प्रयोग सहित अवैध प्रवासियों को रोकने के लिये आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया।
- 'बर्डन ऑफ प्रूफ' की अवधारणा व्यक्ति के पास है, न कि इस अधिनियम द्वारा दिये गए अधिकारियों के पास जो अभी भी सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू है। इस अवधारणा को सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने बरकरार रखा है।
- इस अधिनियम ने सरकार को ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार दिया, जिसमें सिविल कोर्ट के समान अधिकार होंगे।
- फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 में हालिया संशोधन (2019) ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ज़िला मजिस्ट्रेटों को यह तय करने के लिये ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार दिया कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला व्यक्ति विदेशी है या नहीं।
- विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939:
- FRRO के तहत पंजीकरण एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके तहत सभी विदेशी नागरिकों (ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया को छोड़कर) को भारत आने के 14 दिनों के भीतर एक लंबी अवधि के वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने हेतु पंजीकरण अधिकारी के समक्ष खुद को पंजीकृत करना आवश्यक है।
- भारत आने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को ठहरने की अवधि की परवाह किये बिना आगमन के 24 घंटों के भीतर पंजीकरण कराना आवश्यक है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955:
- यह भारतीय नागरिकता का अधिग्रहण और निर्धारण संबंधी प्रक्रिया निर्धारित करता है।
- इसके अलावा संविधान ने भारत के प्रवासी नागरिकों, अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिये नागरिकता संबंधी अधिकार प्रदान किये हैं।
निष्कर्ष
वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद भारत दुनिया में सबसे अधिक शरणार्थी वाले देशों में एक है।
हालाँकि यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता, तो यह पड़ोस में किसी भी दमनकारी सरकार को उनकी आबादी को सताने और उन्हें भारत की ओर आने से रोक सकता था।