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प्रश्न :
हाल ही में घोषित खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम भारत को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने और आयात पर निर्भरता कम करने में मदद करेगा। आलोचनात्मक वर्णन कीजिये। (250 शब्द)।
03 Sep, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम के बारे में लिखते हुए उत्तर का की शुरुआत कीजिये।
- इस मिशन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- मिशन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
हाल ही में प्रधानमंत्री ने पाँच वर्ष की अवधि में 11,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के साथ ‘खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन’- ऑयल पाम (NMEO-OP) की घोषणा की। NMEO-OP एक नई केंद्र प्रायोजित योजना है। वर्ष 2025-26 तक पाम ऑयल के लिये अतिरिक्त 6.5 लाख हेक्टेयर का प्रस्ताव है।
इसका उद्देश्य घरेलू खाद्य तेल की कीमतों का दोहन करना है जो कि महँगे पाम ऑयल के आयात से तय होती हैं तथा देश को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनाने के साथ वर्ष 2025-26 तक पाम ऑयल का घरेलू उत्पादन तीन गुना बढ़ाकर 11 लाख मीट्रिक टन करना है।
प्रारूप
- योजना का महत्त्व
- किसानों की आय में वृद्धि:
- इससे आयात पर निर्भरता कम करने और किसानों को बाज़ार में नकदी संबंधी मदद करने से पाम ऑयल के उत्पादन को प्रोत्साहित करने की उम्मीद है।
- पैदावार में वृद्धि और आयात में कमी:
- भारत विश्व में वनस्पति तेल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसमें से पाम ऑयल का आयात उसके कुल वनस्पति तेल आयात का लगभग 55% है।
- यह इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल, ब्राज़ील और अर्जेंटीना से सोया तेल तथा मुख्य रूप से रूस व यूक्रेन से सूरजमुखी तेल का आयात करता है।
- भारत में 94.1% पाम ऑयल का उपयोग खाद्य उत्पादों में किया जाता है, विशेष रूप से खाना पकाने के लिये। यह पाम ऑयल को भारत की खाद्य तेल अर्थव्यवस्था हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण बनाता है।
- भारत विश्व में वनस्पति तेल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसमें से पाम ऑयल का आयात उसके कुल वनस्पति तेल आयात का लगभग 55% है।
- किसानों की आय में वृद्धि:
- चिंताएँ
- जनजातीय समुदायों की भूमि पर प्रभाव:
- ऑयल पॉम एक लंबी अवधि के साथ पानी की खपत वाली, मोनोकल्चर फसल है, अतः इसकी लंबी अवधि छोटे किसानों के लिये अनुपयुक्त होती है और ऑयल पॉम के लिये भूमि उत्पादकता तिलहन की तुलना में अधिक होती है, जो ऑयल पॉम की खेती के लिये अधिक भूमि प्रयोग करने पर एक सवाल उत्पन्न करती है।
- यह जनजातीय/आदिवासियों को भूमि के सामुदायिक स्वामित्व से जुड़ी उनकी पहचान से अलग कर सकता है और "सामाजिक ताने-बाने को अस्त-व्यस्त कर सकता है"।
- ऑयल पॉम एक लंबी अवधि के साथ पानी की खपत वाली, मोनोकल्चर फसल है, अतः इसकी लंबी अवधि छोटे किसानों के लिये अनुपयुक्त होती है और ऑयल पॉम के लिये भूमि उत्पादकता तिलहन की तुलना में अधिक होती है, जो ऑयल पॉम की खेती के लिये अधिक भूमि प्रयोग करने पर एक सवाल उत्पन्न करती है।
- वन्यजीवों के लिये खतरा:
- "जैव विविधता हॉटस्पॉट और पारिस्थितिक रूप से नाजुक" क्षेत्र इसके मुख्य फोकस क्षेत्र हैं, ऑयल पॉम के बागान लगाने से वन क्षेत्र में कमी होगी जिससे लुप्तप्राय वन्यजीवों के आवास नष्ट होने का खतरा उत्पन्न होगा।
- आक्रामक प्रजाति:
- पाम/ताड़ एक आक्रामक प्रजाति है जो पूर्वोत्तर भारत का प्राकृतिक वन उत्पाद नहीं है और यदि इसे गैर-वन क्षेत्रों में भी उगाया जाता है तो जैव विविधता के साथ-साथ मिट्टी की स्थिति पर इसके प्रभाव का विश्लेषण किया जाना चाहिये।
- स्वास्थ्य से संबंधित चिंताएँ:
- पाम ऑयल के प्रति पेड़ को प्रतिदिन 300 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, साथ ही उन क्षेत्रों में उच्च कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता होती है जहांँ यह एक देशी फसल नहीं है, जिससे उपभोक्ता स्वास्थ्य संबंधी चिंताएंँ भी पैदा होती हैं।
- किसानों को उचित मूल्य की प्राप्ति नहीं:
- पाम ऑयल की खेती में सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा ताज़ेफलों के गुच्छों का किसानों को उचित मूल्य न मिल पाना है।
- पाम ऑयल के ताज़े फलों के गुच्छे (FFBs) अत्यधिक भंगुर/नाज़ुक होते हैं जिन्हें कटाई के चौबीस घंटे के भीतर संसाधित करने की आवश्यकता होती है।
- जनजातीय समुदायों की भूमि पर प्रभाव:
निष्कर्ष
यदि इसी तरह की सब्सिडी और समर्थन उन तिलहनों को दिया जाता है जो भारत के लिये स्वदेशी हैं तथा शुष्क भूमि पर भी कृषि के लिये उपयुक्त हैं, तो पाम ऑयल पर निर्भरता के बिना भी आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सकती है। यदि किसान पाम ऑयल की खेती करने के इच्छुक हैं और सरकार इसे प्रोत्साहित करती है तो कृषि भूमि पर पाम आयल के वृक्षों को उगाना एक समाधान होगा। अंत में, मिशन ऑयल पाम की सफलता कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क पर भी निर्भर करेगी।
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