'कोविड-19 महामारी के मौजूदा साक्ष्य स्पष्ट संदेश देते हैं कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों की उपेक्षा का मतलब बड़े पैमाने पर जीवन का परिहार्य नुकसान हो सकता है।' इस कथन के आलोक में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों से संबद्ध मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- उत्तर की शुरुआत कोविड-19 महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की स्थिति बताते हुए कीजिये।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के उपाय सुझाइये।
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परिचय
भारतीय आबादी के लिये कार्यात्मक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों की उपलब्धता वस्तुतः जीवन और मृत्यु का प्रश्न है।
एक मज़बूत सरकारी स्वास्थ्य देखभाल सेवा को अधिक प्रभावी आउटरीच, समय पर परीक्षण, प्रारंभिक मामले का पता लगाने और कोविड रोगियों के लिये अधिक तर्कसंगत उपचार में अनुवादित किया जाता है। यह दो राज्यों- महाराष्ट्र और केरल की तुलना से स्पष्ट होता है।
उनका प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) समान है। हालाँकि इन राज्यों की कोविड -19 मामले की मृत्यु दर बेहद भिन्न है – यह केरल के लिये 0.48% और महाराष्ट्र के लिये 2.04% है।
प्रारूप
वर्तमान स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली से संबद्ध मुद्दे
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का अभाव: देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल का दायरा सीमित है।
- यहाँ तक कि जहाँ एक अच्छी तरह से काम करने वाला सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, वहाँ केवल गर्भावस्था देखभाल, सीमित चाइल्डकैअर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
- आपूर्ति-पक्ष की कमियाँ: खराब स्वास्थ्य प्रबंधन कौशल और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिये उचित प्रशिक्षण एवं सहायक पर्यवेक्षण की कमी स्वास्थ्य सेवाओं की वांछित गुणवत्ता के वितरण को रोकती है।
- अपर्याप्त फंडिंग: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य फंडिंग पर खर्च लगातार कम रहा है (जीडीपी का लगभग 1.3%)। ओईसीडी के अनुसार, भारत का कुल खर्च सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.3% है।
- उप-इष्टतम सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली: इसके कारण, गैर-संचारी रोगों से निपटना चुनौतीपूर्ण है जो कि रोकथाम और प्रारंभिक पहचान से संबंधित है। यह कोविड -19 महामारी जैसे नए और उभरते खतरों के लिये तैयारियों और प्रभावी प्रबंधन को कम करता है।
स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के उपाय
- सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) जैसे एक बड़े कार्यक्रम की आवश्यकता है जिस पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। वर्ष 2017-18 के बाद से, एनएचएम के लिये केंद्र सरकार के आवंटन में वास्तविक रूप से गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप टीकाकरण जैसी मुख्य गतिविधियों के लिये राज्यों को अपर्याप्त समर्थन मिला है, जबकि प्रणालीगत अंतराल कोविड -19 टीकाकरण के वितरण को प्रभावित करते हैं।
- निजी क्षेत्र विनियमन:
- एक और स्पष्ट प्राथमिकता जिसे कोविड -19 महामारी के दौरान उजागर किया गया है, वह है निजी क्षेत्र में देखभाल की दरों और मानकों को विनियमित करने की आवश्यकता।
- बड़े पैमाने पर अस्पताल के बिलों ने मध्यम वर्ग के बीच भी अनकही परेशानी पैदा कर दी है।
- केंद्र सरकार को नैदानिक प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम (सीईए) के कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक कदम उठाने चाहिये।
- नीति आयोग के नुस्खे:
- नीति आयोग के दस्तावेज़ में कहा गया है कि 'अस्पताल खंड में, महानगरीय शहरों से परे, निजी खिलाड़ियों का टियर 2 और टियर 3 स्थानों तक विस्तार, एक आकर्षक निवेश अवसर प्रदान करता है'।
- चिकित्सा उपकरणों और उपकरणों के निर्माण, नैदानिक और पैथोलॉजी केंद्रों के विस्तार तथा लघु निदान में उच्च विकास क्षमता है।
- इंटरनेट ऑफ थिंग्स के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, वियरेबल्स और अन्य मोबाइल तकनीक जैसी तकनीकी प्रगति भी निवेश के कई रास्ते प्रदान करती है।
- फंडिंग में वृद्धि: स्वास्थ्य पर सार्वजनिक फंडिंग को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में परिकल्पित जीडीपी के कम से कम 2.5% तक बढ़ाया जाना चाहिये।
- विकेंद्रीकरण: पोषण, जल, स्वच्छता को पंचायती राज संस्थानों और नगर पालिकाओं के मुख्य कार्यों का हिस्सा बनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
कोविड -19 महामारी से मौजूदा साक्ष्य एक स्पष्ट संदेश प्रदान करता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों की उपेक्षा का मतलब बड़े पैमाने पर जीवन के परिहार्य नुकसान हो सकता है; इसलिये, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में तेज़ी से और व्यापक रूप से उन्नत किया जाना चाहिये।