हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र अपनी पारिस्थितिकी में होने वाले नुकसान के चलते अपरिवर्तनीय गिरावट के चरण में प्रवेश कर सकता है। इस क्षेत्र में बार-बार होने वाली आपदाओं के आलोक में उपरोक्त कथन पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- क्षेत्र में लगातार हो रही आपदाओं के कुछ उदाहरण देते हुए परिचय दीजिये।
- हिमालयी पारिस्थितिकी के लिये उत्पन्न खतरे/नुकसान की चर्चा कीजिये।
- पारिस्थितिकी को बचाने और बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं की घटना को कम करने के लिये उठाए जाने वाले कुछ कदमों का उल्लेख कीजिये।
- निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
हिमालय का परिदृश्य भूस्खलन और भूकंप के लिये अतिसंवेदनशील है। हिमालय का निर्माण भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के टकराने से हुआ है। भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर गति के कारण चट्टानों पर लगातार दबाव बना रहता है, जिससे वे कमज़ोर हो जाती हैं और भूस्खलन एवं भूकंप की संभावना बढ़ जाती है।
इस परिदृश्य के साथ खड़ी ढलानों, ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति, उच्च भूकंपीय भेद्यता और वर्षा का मेल इस क्षेत्र को विश्व के सबसे अधिक आपदा प्रवण क्षेत्रों में से एक बनाता है।
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले में दक्षिण-पश्चिम मानसून से होने वाली भारी बारिश के कारण कई भूस्खलनों के दौरान पर्यटकों के वाहन पर पत्थर गिरने से नौ पर्यटकों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ में तीन लोग, इमारतें और वाहन बह गए।
फरवरी 2021 में चमोली में भीषण बाढ़ से उत्तराखंड भी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हुआ है, जिसमें 80 से अधिक लोग मारे गए थे
प्रारूप
हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र आधुनिक समाज के विकासात्मक प्रतिमानों के परिणामस्वरूप होने होने वाले परिवर्तनों के प्रभावों और परिणामों के प्रति अतिसंवेदनशील है।
हिमालयी पारिस्थितिकी के लिये खतरा
- असंवहनीय दोहन: राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर वृहत् सड़क विस्तार परियोजना (चार धाम राजमार्ग) से लेकर सोपानी पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण तक और कस्बों के अनियोजित विस्तार से लेकर असंवहनीय पर्यटन तक, भारतीय राज्यों ने क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी के संबंध में मौजूद चेतावनियों की अनदेखी की है।
- इस तरह के दृष्टिकोण ने प्रदूषण, वनों की कटाई और जल एवं अपशिष्ट प्रबंधन संकट को भी जन्म दिया है।
- विकास गतिविधियों के खतरे: वृहत् पनबिजली परियोजनाएँ (जो "हरित" ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं और जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा से प्रतिस्थापित करती हैं) पारिस्थितिकी के कई पहलुओं को परिवर्तित कर सकती हैं और इसे बादल फटने, अचानक बाढ़ आने, भूस्खलन और भूकंप जैसी चरम घटनाओं के प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाती हैं।
- पहाड़ी क्षेत्रों में विकास का असंगत मॉडल आपदा को स्वयं आमंत्रित करना है, जहाँ जंगलों के विनाश और नदियों पर बाँध निर्माण जैसी कार्रवाइयों के साथ वृहत् जलविद्युत परियोजनाओं तथा बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियों को आगे बढ़ाया जा रहा है।
- हिमालयी पारिस्थितिकी पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव:
- भंगुर स्थलाकृति और जलवायु-संवेदनशील योजना के प्रति पूर्ण उपेक्षा के भाव के कारण पारिस्थितिकी के लिये खतरा कई गुना बढ़ गया है।
- ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप जलराशि में अचानक हो रही वृद्धि बाढ़ का कारण बन रही है और यह स्थानीय समाज को प्रभावित करती है।
- जंगल में आग की बढ़ती घटनाओं के लिये भी हिमालयी क्षेत्र में होने वाले ग्लोबल वार्मिंग को प्रमुख कारण के रूप में देखा जा रहा है।
- वनों का कृषि भूमि में रूपांतरण और लकड़ी, चारा एवं ईंधन की लकड़ी के लिये वनों का दोहन इस क्षेत्र की जैव विविधता के समक्ष कुछ प्रमुख खतरे हैं।
पारिस्थितिकी को बचाने और बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं की घटना को कम करने के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- पूर्व चेतावनी प्रणाली: आपदा की भविष्यवाणी करने और स्थानीय आबादी एवं पर्यटकों को सचेत करने के लिये पूर्व चेतावनी एवं बेहतर मौसम पूर्वानुमान प्रणाली का होना आवश्यक है।
- क्षेत्रीय सहयोग: हिमालयी देशों के बीच एक सीमा-पारीय गठबंधन की आवश्यकता है ताकि पहाड़ों के बारे में ज्ञान साझा किया जा सके और वहाँ की पारिस्थितिकी का संरक्षण किया जा सके।
- क्षेत्र विशिष्ट सतत् योजना: सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि क्षेत्र की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की जाए और एक सतत्/संवहनीय योजना तैयार की जाए जो इस संवेदनशील क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा जलवायु संकट के प्रभाव का ध्यान रखती हो।
- पर्यावरणीय पर्यटन या इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देना: वाणिज्यिक पर्यटन के प्रतिकूल प्रभावों पर संवाद शुरू करना चाहिये और इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देना चाहिये।
- सतत् विकास: सरकार को सतत् विकास पर केंद्रित होना चाहिये, न कि केवल उस विकास पर जो पारिस्थितिकी के विरुद्ध प्रेरित है।
- किसी भी परियोजना को लागू करने से पहले विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR), पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) और सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) को आवश्यक बनाया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
लोगों और समुदायों को होने वाली हानि की वास्तविक भरपाई करना असंभव है; साथ ही प्राचीन वनों के विनाश की भरपाई लचर वनीकरण कार्यक्रमों से नहीं की जा सकती। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर वृहत् सड़क विस्तार परियोजना से लेकर सोपानी पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण तक और कस्बों के अनियोजित विस्तार से लेकर असंवहनीय पर्यटन तक, भारतीय राज्यों ने क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी के संबंध में मौजूद चेतावनियों की अनदेखी की है। समय की माँग है कि सरकार मानव जीवन सहित प्राकृतिक संपदा को संरक्षित करने में सहायता हेतु एक भिन्न दृष्टिकोण का पालन करे।