महात्मा गांधी ने एक नैतिक व्यवस्था बनाई जिसने उनकी राजनीतिक कार्यप्रणाली की रूपरेखा के रूप में भी काम किया। स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- गांधी जी की नैतिक मूल्यों की व्यवस्था के विषय में लिखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- उदाहरण देते हुए बताइये कि गांधीवादी राजनीतिक कार्यप्रणाली उनकी नैतिक व्यवस्था से कैसे प्रभावित थी।
- निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
गांधीजी न केवल एक विद्वान् विचारक थे बल्कि एक जन नेता के रूप में उनका संबंध सिद्धांत से अधिक अभ्यास से था। गांधी के नैतिक विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण से भारत तथा दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गांधी जी ने अपने विभिन्न राजनीतिक आंदोलनों के दौरान भी सत्य, अहिंसा जैसे मूल्यों को प्राथमिकता दी।
उन्होंने अपने समस्त जीवन में सिद्धांतों और प्रथाओं को विकसित करने पर ज़ोर दिया और साथ ही दुनिया भर में हाशिये के समूहों और उत्पीड़ित समुदायों की आवाज़ उठाने में भी अतुलनीय योगदान दिया। साथ ही महात्मा गांधी ने विश्व के बड़े नैतिक और राजनीतिक नेताओं जैसे- मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और दलाई लामा आदि को प्रेरित किया तथा लैटिन अमेरिका, एशिया, मध्य पूर्व तथा यूरोप में सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित किया।
प्रारूप
गांधी जी द्वारा प्रतिपादित विभिन्न नैतिक मूल्य, जिन्होंने राजनीतिक कार्यप्रणाली को प्रभावित किया:
- ईश्वर में विश्वास: गांधी जी की ईश्वर में गहरी और स्थायी आस्था थी तथा उन्होंने ईश्वर की अपनी अवधारणा के बारे में विस्तार से लिखा है। वह ईश्वर को संसार की एक अवैयक्तिक शक्ति तथा प्रत्येक मानव की आत्मा में मौजूद (या आसन्न) मानते थे। इसी वजह से वे मानव सेवा को भगवान की सेवा मानते थे तथा देश की निर्धन व पीड़ित जनता की सेवा हेतु वे लगातार प्रयत्नशील रहे।
- सत्य और अहिंसा: गांधीवादी विचारधारा के ये 2 आधारभूत सिद्धांत हैं:
- गांधी जी का मानना था कि जहाँ सत्य है, वहाँ ईश्वर है तथा नैतिकता - (नैतिक कानून और कोड) इसका आधार है।
- अहिंसा का अर्थ होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी जी के अनुसार अहिंसक व्यक्ति किसी दूसरे को कभी भी मानसिक व शारीरिक पीड़ा नहीं पहुँचाता है।
- गांधी जी ने विभिन्न स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान दोनों मूल्यों को बनाए रखा। चौरी-चौरा कांड में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन की वापसी गांधीजी की अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाता है।
- साध्य और साधन: गांधी जी का दृढ़ विश्वास था कि महान उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये मानव को केवल अच्छे साधन अपनाने होते हैं। बुरे कर्मों से कोई भी अच्छा नहीं कर सकता, भले ही उसके इरादे कितने भी नेक क्यों न हों। साधन-साध्य की पवित्रता को बनाए रखने के लिये ही गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस द्वारा प्रस्तावित भारत की स्वतंत्रता हेतु नाजीवादियों की सहायता लेने से मना कर दिया।
- सर्वोदय- सर्वोदय शब्द का अर्थ है 'सभी की प्रगति'। यह शब्द पहली बार गांधी जी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक "अंटू दिस लास्ट" में पढ़ा था। इसी की प्रेरणा से उन्होंने ज़मीनी स्तर पर स्थित जनता के स्वरोज़गार हेतु चरखे का प्रचलन बढ़ाया ताकि गरीब जनता स्वयं का उद्धार करने में सक्षम हो सके।
- स्वराज- हालाँकि स्वराज शब्द का अर्थ स्व-शासन है, लेकिन गांधी जी ने इसे एक ऐसी अभिन्न क्रांति की संज्ञा दी जो कि जीवन के सभी क्षेत्रों को समाहित करती है।
- गांधी जी के लिये स्वराज का मतलब व्यक्तियों के स्वराज (स्व-शासन) से था और इसलिये उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके लिये स्वराज का मतलब अपने देशवासियों हेतु स्वतंत्रता है और अपने संपूर्ण अर्थों में स्वराज स्वतंत्रता से कहीं अधिक है, यह स्व-शासन है, आत्म-संयम है और इसे मोक्ष के बराबर माना जा सकता है।
राजनीतिक व्यवहार
अहिंसक असहयोग: गांधी ने वकालत की कि बुराई को अहिंसक असहयोग के माध्यम से निपटाया जाना चाहिये। बुरे काम से घृणा करनी चाहिये लेकिन उसके अपराधी से नहीं।
इस मान्यता का तर्क यह है कि मनुष्य एक ही ईश्वर की सन्तान हैं और यह कि एक व्यक्ति पर भी हमला करना पूरी मानवता पर हमला है।
सत्याग्रह: इसका अर्थ है सभी प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ शुद्धतम आत्मबल का प्रयोग करना।
- यह व्यक्तिगत पीड़ा सहन कर अधिकारों को सुरक्षित करने और दूसरों को चोट न पहुँचाने की एक विधि है।
- सत्याग्रह की उत्पत्ति उपनिषद, बुद्ध-महावीर की शिक्षा, टॉलस्टॉय और रस्किन सहित कई अन्य महान दर्शनों में मिल सकती है। गांधी जी ने एक सत्याग्रही होने के लिये विभिन्न गुणों को निर्धारित किया जिन्हें एक सत्याग्रही को विकसित करने की आवश्यकता होती है।
- एक सत्याग्रही को जिन गुणों का विकास करना होता है वे हैं -
- विनम्रता
- शांति
- त्याग
- आत्मत्याग
- विचारों पर नियंत्रण
- अहिंसा
- सार्वभौमिक परोपकार
- पेय और नशीले पदार्थों का उपयोग न करना
निष्कर्ष
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में कहा था कि “भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।” दुनिया ने गांधी को एक स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिक नेता के रूप में देखा होगा लेकिन हृदय से वे एक ऐसे 'साधक' थे जो ईश्वर की तलाश में थे। उनका मानना था कि मानव जाति की सेवा ईश्वर को महसूस करने का सबसे अच्छा तरीका है, जो उनके अधिकांश नियमों के पीछे प्रेरक शक्ति भी थी।