भारत में साल दर साल जल संकट की बढ़ती हुई गंभीरता के चलते सभी हितधारकों द्वारा जल संकट से निपटने के लिये विभिन्न उपाय किये जाने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- उत्तर के प्रारंभ में जल संकट की गंभीरता पर बल देते हुए भारत में जल संकट का विवरण दीजिये।
- संकट के समाधान के लिये उठाए जा सकने वाले विभिन्न उपायों की चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
भारत में दुनिया की कुल जनसंख्या की 16% आबादी है लेकिन देश के पास दुनिया के मीठे जल के संसाधनों का केवल 4% हिस्सा ही है। बदलते मौसम के मिजाज और बार-बार आने वाले सूखे के कारण भारत जल संकट से जूझ रहा है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड (2017) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, 700 में से 256 ज़िलों में 'गंभीर' या 'अति-शोषित' भूजल स्तर की सूचना प्राप्त हुई है।
इसका मतलब है कि इन ज़िलों में जल स्तर के गिरने के कारण जल की आपूर्ति करना मुश्किल हो गया है।
प्रारूप
भारत में जल संकट अवलोकन:
- जल संग्रह करने की दर में कमी: भारत को हर साल वर्षा या अन्य स्रोतों जैसे ग्लेशियरों के माध्यम से 3,000 बिलियन क्यूबिक मीटर जल प्राप्त होता है; इसमें से केवल 8% ही एकत्रित किया जाता है।
- भूजल पर अति-निर्भरता और अति-निष्कर्षण: भारत प्रतिवर्ष 458 बीसीएम की दर से भूजल का संचय करता है, जबकि यह पृथ्वी से लगभग 650 बीसीएम जल का निष्कर्षण करता है।
- भारत के 89% जल संसाधनों का उपयोग कृषि के लिये किया जाता है, जिसमें से 65% भूमिगत जल है।
- इस प्रकार भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक भूजल संरक्षण है।
- जल संकट: नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारत की 12 प्रमुख नदी घाटियों में लगभग 820 मिलियन लोग अत्यधिक जल तनाव का सामना कर रहे हैं।
- गुणात्मक मुद्दा: जल की उपलब्धता की कमी के मुद्दे के साथ जल की गुणवत्ता से संबंधित मुद्दा भी महत्त्वपूर्ण है।
- भारत के 600 ज़िलों में से एक-तिहाई में भूजल मुख्य रूप से फ्लोराइड और आर्सेनिक के माध्यम से दूषित है।
- इसके अलावा भारत की पर्यावरण रिपोर्ट 2019 के अनुसार, वर्ष 2011- 2018 के बीच सकल प्रदूषणकारी उद्योगों की संख्या में 136 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।
आगे की राह
- भारत जल तक पहुँच में सुधार की दिशा में लगातार काम कर रहा है। वर्ष 2019 में जारी जल जीवन मिशन (JJM) दिशा-निर्देश घरों में जल हेतु नल के कनेक्शन का प्रावधान प्रदान करते हैं।
- JJM विशेष रूप से ग्रामीण स्तर पर योजना संबंधित गतिविधियों का नेतृत्त्व करने में महिलाओं को शामिल करने की आवश्यकता पर बल देता है।
- जल की कमी वाले क्षेत्रों के ग्रामीण भागों में प्रोत्साहन आधारित जल संरक्षण एक और समाधान है, उदाहरण के लिये यदि भूजल का एक विशेष स्तर बनाए रखा जाता है तो उस क्षेत्र के किसानों को उच्च एमएसपी प्रदान किया जा सकता है।
- जल उपयोग दक्षता में सुधार: किसानों को जागरूक करके और उन्हें ज़मीनी स्तर पर जल प्रतिरोधी फसलों से संबंधित तकनीक उपलब्ध कराकर कृषि में जल उपयोग दक्षता सुनिश्चित की जा सकती है।
- इन-सीटू जल संरक्षण तकनीकों जैसे- वर्षा जल संचयन, चेक डैम को जारी रखने की आवश्यकता है।
- जल प्रबंधन: फिलहाल जल प्रबंधन संबंधी योजना निर्माण और विकास की ज़रूरत है। साथ ही जल प्रबंधन को कृषि क्षेत्र एवं पर्यावरण सुधार के प्रयासों पर केंद्रित होना चाहिये। उचित जल प्रबंधन से ही सही भूमि प्रबंधन, स्वास्थ्य प्रबंधन और शिक्षा प्रबंधन होगा।
- डेटा और सिस्टम एकीकरण: जनसांख्यिकी, सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और अन्य मापदंडों सहित विभिन्न डेटासेट्स को जल से संबंधित स्थानिक एवं गैर-स्थानिक डेटा के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है, जैसे- मिट्टी की नमी, वार्षिक वर्षा, नदियाँ, जलभृत, भूजल स्तर, जल की गुणवत्ता आदि।
- सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना: जल प्रबंधन से संबंधित ऐसा बहुत सारा ज्ञान मौजूद है जो हितधारकों को जल संरक्षण से संबंधित उपायों में मदद कर सकता।
- जल शक्ति मंत्रालय द्वारा ज्ञान पोर्टल के रूप में इस तरह का ज्ञान आधारित एक केंद्रीय भंडार बनाया जा सकता है जिसमें केस स्टडी, सर्वोत्तम अभ्यास, उपकरण, डेटा स्रोतों पर जानकारी आदि शामिल हो।
निष्कर्ष
सरकार को जल प्रबंधन की आपूर्ति के साथ-साथ मांग पक्ष पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है और देश में जल संकट से निपटने के लिये समाज में हर सभी को [केंद्र सरकार, राज्य सरकारें (जल, राज्य का विषय होने के नाते), नागरिकों, गैर सरकारी संगठनों और कंपनियों को] मिलकर कम करने की ज़रूरत है।