संसदीय विशेषाधिकारों के बिना संसद सदस्य संविधान द्वारा सौंपे गए कार्यों का निर्वहन नहीं कर सकते हैं। चर्चा कीजिये।
उत्तर :
दृष्टिकोण
- प्रस्तावना में संसदीय विशेषाधिकारों की व्याख्या कीजिये।
- सांसदों को संसद में स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम बनाने हेतु संसद के विशेषाधिकारों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।
- संसदीय विशेषाधिकारों के दुरूपयोग के उदाहरण दीजिये।
- ऐसे विशेषाधिकारों के संहिताकरण पर बल देते हुए एक उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय
संसदीय विशेषाधिकार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से संसद सदस्यों द्वारा प्राप्त कुछ अधिकार और उन्मुक्तियाँ हैं, ताकि वे "अपने कार्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन" कर सकें।
संविधान (संसद के लिये अनुच्छेद 105 और राज्य विधानसभाओं के लिये अनुच्छेद 194) में ऐसे विशेषाधिकारों का उल्लेख है।
इसके अलावा, लोकसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 20 में नियम संख्या 222 और राज्य सभा नियम पुस्तिका के अध्याय 16 में नियम 187 के अनुरूप विशेषाधिकार को नियंत्रित करते हैं।
प्रारूप
विभिन्न संसदीय विशेषाधिकार
- भाषण की स्वतंत्रता: संसद/राज्य विधानसभा के सदस्यों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।
- संसद/राज्य विधानसभा के किसी भी सदस्य को सदन की चारदीवारी के बाहर कहीं भी कार्य के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है (उदाहरण के लिये कानूनी अदालत) या सदन और उसकी समितियों में अपने विचार व्यक्त करने के लिये उनके साथ भेद-भाव नहीं किया जा सकता है।
- गिरफ्तारी से मुक्ति: किसी भी सदस्य को दीवानी मामले में सदन के स्थगन के 40 दिन पहले और बाद में तथा सदन के सत्र के दौरान भी गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
- इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी सदस्य को उस सदन की अनुमति के बिना संसद की सीमा के भीतर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, जिससे वह संबंधित है।
- गवाहों के रूप में उपस्थिति से छूट: संसद/विधानसभा के सदस्यों को गवाह के रूप में उपस्थिति होने की स्वतंत्रता प्राप्त है।
- वाद-विवाद और कार्यवाही प्रकाशित करने का अधिकार: संसद/विधानसभा आवश्यकता पड़ने पर प्रेस को अपनी कार्यवाही प्रकाशित करने से रोक सकती है।
- गैर संसदीय सदस्यों को बाहर करने का अधिकार: इस अधिकार को शामिल करने का उद्देश्य किसी भी सदस्य को डराने या धमकाने की किसी भी संभावना को दूर करना रहा। गैर संसदीय सदस्य सत्र को बाधित करने का प्रयास कर सकते हैं।
- सदस्यों और बाहरी लोगों को दंडित करने का अधिकार: भारत में संसद/विधानसभा को सदन की अवमानना के दोषी लोगों को दंडित करने हेतु दंडात्मक शक्तियांँ दी गई हैं।
संसदीय विशेषाधिकारों का महत्त्व:
- संसद और संसद समितियों के प्रत्येक सदन के सदस्यों को प्रदान की गई छूट, अधिकार या उन्मुक्तियांँ उनके द्वारा किये गए कार्यों की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को सुरक्षित करती हैं।
- संसदीय विशेषाधिकार संसद सदस्यों की गरिमा, अधिकार और सम्मान को बनाए रखने में मदद करते हैं।
- संसदीय विशेषाधिकार सदनों के सदस्यों को उनके कार्यों के निर्वहन में किसी भी बाधा से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- संसद के दोनों सदनों और उनके सदस्यों के प्रभावी कामकाज हेतु किसी बाहरी पार्टी या व्यक्ति के हस्तक्षेप के बिना आंतरिक स्वतंत्रता मौजूद होनी चाहिये।
- सदन वैधानिक प्राधिकरण के किसी भी हस्तक्षेप के बिना आंतरिक रूप से सदस्य संबंधित मुद्दों से निपट सकते हैं।
- विशेषाधिकार देने का उद्देश्य संसद के सदस्यों को कानून से ऊपर रखना नहीं है, बल्कि उन्हें अपने कर्त्तव्यों को प्रभावी ढंग से और स्वतंत्र रूप से करने का एक बड़ा मौका देना है ताकि उन्हें इसके विशेषाधिकार आदि के द्वारा गैर संसदीय सदस्यों/बाहरी लोगों को बाहर करने के लिये कुछ अधिकार दिये जा सकें, सदस्यों और बाहरी लोगों को उल्लंघन के लिए दंडित किया जा सके।
- हालांँकि कई बार ऐसे विशेषाधिकारों का दुरुपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, हाल ही में, केरल सरकार ने विधानसभा में आरोपित अपने विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने हेतु एक याचिका दायर की गई। सरकार ने संसदीय विशेषाधिकार के दावा का तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि घटना विधानसभा हॉल के अंदर हुई थी।
निष्कर्ष
विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने और विधायी विशेषाधिकारों पर नागरिकों को प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को प्रधानता देने की आवश्यकता है। साथ ही विधायकों को अपने कर्त्तव्य का निर्वहन जनता के भरोसे को ध्यान में रखते हुए करना चाहिये। अंत में जो विधायक तोड़फोड़ और सामान्य तबाही में लिप्त हैं, वे संसदीय विशेषाधिकार और आपराधिक अभियोजन से उन्मुक्ति का दावा प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं।