उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- नैतिक अहंभाव शब्द का अर्थ बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- लोकसेवकों के लिये नैतिक अहंभाव की उपयोगिता की व्याख्या कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
नैतिक अहंभाव यह विचार है कि लोगों को अपने स्वहित के अनुसार कार्य करना चाहिये। नैतिक अहंभावियों का तर्क है कि लोग अक्सर अपने स्वहित का पीछा नहीं करते हैं लेकिन वास्तव में उन्हें ऐसा करना चाहिये।
स्वहित में कार्य करने का अर्थ है कि हमें वह करना चाहिये जो हमारे सुख को अधिकतम करे और हमारे दुख को कम करे। यह सुखवाद का एक रूप है। सुखवाद एक सिद्धांत है जो प्रस्तावित करता है कि किसी व्यक्ति को अपने सुख को अधिकतम और दुख को न्यूनतम करना चाहिये।
नैतिक अहंभाव के लाभ
- नैतिक अहंभाव आत्म-जागरूकता के लिये प्रोत्साहित करता है: यदि कोई व्यक्ति स्वयं को और अपनी आवश्यकताओं के बारे में जान सकता है तो उसका आधुनिक समाज में उत्पादक बने रहना आसान है। किसी के जीवन में इस विशेषता के होने के लाभों में उच्च स्तर की भावनात्मक बुद्धिमत्ता, बेहतर सुनने और सहानुभूति कौशल के साथ-साथ बेहतर आलोचनात्मक सोच शामिल है।
- व्यक्तिगत सुधार के अधिक अवसर : यदि कोई नैतिक अहंभाव से जुड़े मार्ग पर ध्यान केंद्रित करता है तो उसके लिये स्वहित सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाता है। इस तरह व्यक्ति किसी-न-किसी तरह से खुद को बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है।
- मज़बूत प्रेरक: नैतिक अहंभाव एक दृष्टिकोण है जो कहता है कि आप जो सोचते हैं या महसूस करते हैं, वह आपको उत्पादक बनाए रखने के लिये सबसे अच्छा प्रेरक है।
नैतिक अहंभाव से संबद्ध मुद्दे
- एक आत्म-केंद्रित समाज की स्थापना: नैतिक अहंभाव के प्रमुख सिद्धांतों में से एक यह है कि आपके अलावा कोई और आपकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की देखभाल नहीं करता है। इसका मतलब है कि परिवारों के लोगों सहित हर कोई अपने स्वार्थ के प्रतिबिंब का पीछा कर रहा है।
- लोक सेवक जनता के हितों से पहले व्यक्तिगत हित को महत्त्व देंगे।
- समाज में सहानुभूति में कमी: दूसरे व्यक्ति क्या सोचते हैं या महसूस करते हैं, यह समझने के लाभ असंख्य हैं और इसकी अनुपस्थिति मनोरोगी के लक्षणों में से एक है। हमें बेहतर प्रशासन, मित्रता स्थापित करने, अपने वैयक्तिक संबंधों में संतुष्टि प्राप्त करने तथा समाज में आक्रामकता में कमी देखने के लिये इस विशेषता की आवश्यकता है।
- कार्यस्थलीय संबंधों में टूटन: इस संरचना वाले समाज में कर्मचारी संबंध समस्याग्रस्त हो जाएंगे क्योंकि व्यवसाय केवल अपने उद्देश्य को पूरा करने के साधन के रूप में होगा।
- समाज से वस्तुनिष्ठता की अवधारणा की समाप्ति: किसी को भी इस बात की परवाह नहीं होगी कि कोई और हमारे कार्यों या गतिविधियों के बारे में क्या सोचता है। विचारों, भावनाओं और निर्णयों सब पर स्वार्थ का ही प्रभाव होगा।
- हितों के टकराव की स्थिति में कोई समाधान नहीं प्रस्तुत किया गया: चूँकि अधिकांश नैतिक मुद्दों में इस तरह की समस्या शामिल होती है, इसलिये सामाजिक स्तर पर यह दृष्टिकोण उत्पादकता को रोक सकता है।
- कल्पना कीजिये कि एक सीवेज उपचार सुविधा अपशिष्ट को स्थानीय नदी में डंप करना चाहता है।
- निष्पक्षता के सिद्धांत के खिलाफ: नैतिक अहंभाव का सुझाव है कि हमें सहिष्णु होने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिये क्योंकि अपने और दूसरों के बीच अंतर करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। फिर हम आंतरिक रूप से या अपने बाहरी कारकों को विशेषाधिकार युक्त उपचार देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
निष्कर्ष
नैतिक अहंभाव का अध्ययन हमें एक ऐसे स्थान पर ले जाता है जहाँ नैतिकता एक सामाजिक बाधा के बजाय एक व्यक्तिगत परिभाषा बन जाती है। यदि किसी की हत्या करना समाज में किसी की स्थिति को सुधारने के लिये की जाने वाली कार्रवाई हो तो हिंसा करने से इनकार करना एक अनैतिक कार्य बन जाएगा।