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प्रश्न :
कोविड -19 महामारी ने पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित किया है तथा लैंगिक अंतराल में भी वृद्धि की है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
20 Jul, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- कोविड-19 महामारी और उससे संबद्ध चुनौतियों के बारे में संक्षेप में बताएँ।
- महामारी ने पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित किया है, इस पर चर्चा कीजिये।
- महामारी के बाद महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के संदर्भ में आगे की राह को स्पष्ट कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
कोविड -19 महामारी केवल एक बायोमेडिकल घटना नहीं बल्कि एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक घटना है। जीवन और आजीविका पर इसके दुष्परिणामों के चलते यह महामारी हाल के मानव इतिहास में सबसे खराब मानवीय संकट का रूप ले रही है।
चूँकि महामारी दुनिया भर में जीवन और आजीविका को प्रभावित कर रही है, इसके आर्थिक नतीजों का लैंगिक समानता पर भी प्रतिगामी प्रभाव पड़ रहा है।
प्रारूप
महिलाओं पर प्रभाव
- महिला बेरोज़गारी में वृद्धि: रोज़गार संबंधी मामलों में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित हुईं। महामारी से पहले कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 24% थी, लेकिन फिर भी महामारी के दौरान रोज़गार खोने वाले लोगों की संख्या में उनकी हिस्सेदारी 28% रही।
- खाद्य असुरक्षा की समस्याएँ: महिलाओं साथ ही उनके परिवारों की आय में कमी के कारण खाद्य आपूर्ति में कमी आई और परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना में महिलाएँ अधिक प्रभावित हुईं।
- प्रजनन स्वास्थ्य की समस्याएँ: कोविड महामारी के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य संकेतकों में भी गिरावट आई क्योंकि महामारी के प्रभाव में वे गर्भनिरोधक तथा माहवारी संबंधी उत्पादों का खर्च उठा सकने में असमर्थ रहीं।
- अनुमानतः 16% (लगभग 17 मिलियन) महिलाओं को सैनिटरी पैड का उपयोग बंद करना पड़ा और प्रत्येक तीन विवाहित महिलाओं में से एक से अधिक महिलाएँ गर्भनिरोधकों का उपयोग करने में असमर्थ हो गईं।
- अवैतनिक श्रम: चूँकि भारतीय महिलाएँ पहले से ही भारतीय पुरुषों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक अवैतनिक कार्य करती हैं ऐसे में कुछ सर्वेक्षणों से ज्ञात होता है कि महिलाओं के लिये अवैतनिक श्रम में 47% और उनके लिये अवैतनिक देखभाल कार्य में 41% की वृद्धि हुई।
- वंचित/उपेक्षित समूह: ऐतिहासिक रूप से वंचित/उपेक्षित समूहों (मुसलमान, प्रवासी, एकल/परित्यक्ता/तलाकशुदा) की महिलाएँ अन्य महिलाओं की तुलना में अधिक प्रभावित हुईं।
- उन एकल/परित्यक्ता/तलाकशुदा महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई जिनके पास खाद्य भंडार या तो सीमित या समाप्त हो रहा था। इसी प्रकार, आय एवं आजीविका खोने वाली मुस्लिम महिलाओं की संख्या में भी वृद्धि हुई।
- ज़मीनी स्तर पर उन महिलाओं की स्थिति और बदतर होने की संभावना है जो पहले ही सामाजिक भेदभाव का शिकार हैं (जैसे दलित महिलाएँ और ट्रांसजेंडर समूह)।
आगे की राह
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का विस्तार करना: खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं तक PDS का विस्तार किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि यह दूर तक पहुँच रखने वाली वितरण प्रणाली है। उदाहरण के लिये, इस वितरण प्रणाली के माध्यम से लघु अवधि के लिये सैनिटरी पैड तक महिलाओं की पहुँच में आमूलचूल परिवर्तन लाया जा सकता है।
- योजनाओं के लाभ को सार्वभौमिक बनाना: पहले से कार्यान्वित ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के आर्थिक पुनरुद्धार और बाज़ार से उनके संपर्कों पर ध्यान केंद्रित कर उनके लचीलेपन को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- समावेशी दृष्टिकोण: नई योजना ‘एक राष्ट्र- एक राशन कार्ड’ में एकल/परित्यक्ता/तलाकशुदा महिलाओं को शामिल करने पर ध्यान देना और अनौपचारिक कर्मियों, विशेष रूप से घरेलू कामगारों तथा अनौपचारिक श्रमिकों के लिये सामाजिक सहायता कार्यक्रमों का सृजन करना।
- डिजिटल और वित्तीय समावेशन को संबोधित करने के लिये हस्तक्षेप: डिजिटल समावेशन में लैंगिक अंतराल को समाप्त करना महामारी काल में एक तत्काल प्राथमिकता है।
निष्कर्ष
प्रत्येक महिला को महामारी के बुरे प्रभाव से ज़ल्द-से-ज़ल्द बाहर निकालने में मदद करने के लिये सरकारी योजनाओं तथा स्वयं सहायता समूह व्यवस्था के सार्वभौमिकरण, सघनीकरण एवं विस्तारीकरण की आवश्यकता है।
महिलाओं के मुद्दों में अभी सही निवेश करना हमारी अर्थव्यवस्था और समाज के दीर्घकालिक सुधार एवं स्वास्थ्य की दिशा में परिवर्तनकारी सिद्ध हो सकता है।
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