उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- सुकरात का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- नीतिशास्त्र और नैतिकता के क्षेत्र में सुकरात के प्रमुख योगदानों के बारे में बताइये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
सुकरात एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक था जिसे नैतिकता और अन्वेषण का जनक माना जाता है। उसकी मान्यताओं के अनुसार, परिपक्वता, ज्ञान और प्रेम के माध्यम से नैतिकता विकसित होती है।
400 ई.पू. में उसने शिक्षण नैतिकता और आचरण के स्वीकार्य मानकों की अवधारणा पेश की और तब से पश्चिमी दर्शन और इतिहास के पाठ्यक्रम पर इसका गहरा और स्थायी प्रभाव रहा है।
रूपरेखा
- नीतिशास्त्र और नैतिकता के क्षेत्र में सुकरात के प्रमुख योगदान:
- न्याय परायणता: सुकरात का मानना था कि लोगों को धन जैसे भौतिक हितों के बजाय भलाई के लिये प्रयास करना चाहिए।
- अन्याय करने के बजाय अन्याय को सहन करना बेहतर है: सुकरात ने कहा है कि यदि आप दूसरे के खिलाफ अपराधकरते हैं, तो इससे बचने के लिये सजा की तलाश कर लेना बेहतर है क्योंकि सज़ा आपके मन को साफ अथवा शुद्ध करेगी।
- सुकराती संगोष्ठी और बुनियादी तर्क: सुकराती संगोष्ठी/बहस की कला मूलभूत/बुनियादी तर्कों से जुड़ी है क्योंकि किसी भी विषय पर बहस करने के लिये विचार और तर्क की आवश्यकता होती है।
- किसी विषय पर चर्चा/बहस करने का उनका तरीका लंबी बातचीत पर आधारित था, जिसे "द्वंद्वात्मक" (Dialectic) कहा जाता था।
- सुकराती नैतिकता: सुकरात द्वारा नैतिकता पर ज़ोर देने का एक निश्चित उद्देश्य था। उन्हें उम्मीद थी कि दर्शन से लोगों की मानसिकता एवं महत्त्वपूर्ण गतिविधियों में बदलाव आएगा, जिसका दुनिया पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
- सद्गुण: सुकरात ने ज्ञान को गुण के साथ जोड़ा, जो अंततः नैतिक आचरण की ओर ले जाता है।
निष्कर्ष
सुकरात ने देखा कि "बिना जाँचा हुआ जीवन जीने के योग्य नहीं है"। इस उद्धरण ने सुकरात की शिक्षाओं के सार और राजनीतिक दर्शन के दायरे पर अपने प्रभाव को सघनता से प्रस्तुत किया।