मूर्तिकला भारतीय उपमहाद्वीप में हमेशा से कलात्मक अभिव्यक्ति का प्रिय माध्यम रही है। अमरावती मूर्तिकला ने कला को धर्म प्रधान के स्थान पर मानव प्रधान बनाने पर बल दिया। विवेचना करें।
02 Jul, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण
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भारत में मूर्तिकला का विकास अन्य कलाओं जैसे- स्थापत्य एवं चित्रकला के साथ ही हुआ। भारत में मूर्तिकला का विकास अनेक रूपों में हुआ जैसे- धातु मूर्तिकला, पाषाण मूर्तिकला,मृण्मूर्तिकला आदि। सूक्ष्म परीक्षण करने पर हम पाते हैं कि भारतीय मूर्तिकला का स्वरूप अधिक सहज, धार्मिक, रोचक और स्थानीय विशेषताओं से युक्त रहा है।
अमरावती मूर्तिकला एक प्राचीन मूर्तिकला शैली है, जो दक्षिण-पूर्वी भारत में लगभग दूसरी शताब्दी ई.पू. से तीसरी शताब्दी ई.पू. तक सातवाहन वंश के शासनकाल में फली-फूली। यह अपने भव्य उभारदार भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है, जो संसार में कथात्मक मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भी है। यह मूर्तिकला अपनी विशिष्टता और उत्कृष्ट कला-कौशल के कारण आकर्षण का विषय रही।
इस मूर्तिकला का विकास अमरावती में होने के कारण इसे अमरावती मूर्तिकला शैली कहा गया। अमरावती दक्षिण भारत के गुंटूर ज़िले के पास स्थित है। अमरावती मूर्तिकला की विशिष्टता यह रही कि यह शैली बाह्य संस्कृतियों से प्रभावित नहीं थी बल्कि यह स्वदेशी शैली से विकसित हुई थी। यह मूर्तिकला आंध्र प्रदेश के जग्गबयापेट, नागार्जुन कोंडा तथा महाराष्ट्र में तेर के स्तूप के अवशेषों में देखी जा सकती है।
अमरावती मूर्तिकला में अधिकतर बुद्ध के जीवन की घटनाओें, पूर्वजन्म की कथाओं या जातक कथाओं का चित्रण है। अमरावती कला-शैली की मूर्तियाँ सभी मूर्तियों में हाव-भाव तथा सौंदर्य की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं।
अमरावती कला में धार्मिक तत्त्वों के प्रभाव के रूप में बौद्ध का प्रभाव मुख्य रूप से दिखाई देता है जिसमें बुद्ध की व्यक्तिगत विशेषताओं पर कम बल दिया गया है। परंतु बौद्ध मूर्तियों में उनके जीवन एवं जातक कथाओं की कहानियाँ इस कला के धार्मिक पक्षों को व्यक्त करती हैं। अमरावती मूर्तिकला की कुछ मूर्तियों में स्त्रियों को उनके पाँव पूजते हुए दर्शाया गया है, यहाँ पाँवों का पूजन धार्मिक महत्त्व को व्यक्त करता है।
अमरावती, मूर्तिकला के माध्यम से पहली बार शारीरिक एवं भावनात्मक अभिव्यक्तियों में निकटता आई।अमरावती मूर्तिकला में आभूषणों की न्यूनतम संख्या स्त्रियों में आभूषणों के प्रति कम आकर्षण को इंगित करती है। अमरावती मूर्तिकला में लिंगराज पल्ली से प्राप्त धम्मचक्र, बोधिसत्व तथा बौद्धमत के रत्नों को दर्शाने वाली एक गुंबजाकार पट्टी प्राप्त हुई है जिसमें बौद्ध, धम्म एवं संघ तीनों को निरूपित किया गया है। अमरावती मूर्तिकला में धार्मिक तत्त्वों के समावेश के साथ-साथ लोकोन्मुखी तत्त्व भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। अमरावती शैली में सजीवता एवं भक्तिभाव के साथ कुछ मूर्तियों में काम विषयक अभिव्यक्तियाँ देखने को मिलती हैं जो इसे लोकोन्मुखी बनाती हैं।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि अमरावती मूर्तिकला ने कला को धर्म प्रधान के स्थान पर मनुष्य प्रधान बनाने पर बल दिया। इस परिवर्तन का मुख्य कारण तत्कालीन समाज का व्यवसाय प्रधान होना था, अत: इस कला पर धर्म का प्रभाव कम होता चला गया तथा मानवीय पक्षों पर बल दिया जाने लगा।