सुरक्षा की दृष्टि से मनुष्य हमेशा से समूह में रहना पसंद करता है लेकिन वर्तमान में इन समूहों ने ही उसकी सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। इस कथन के संदर्भ में भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाओं के कारणों एवं समाधान के उपायों का विश्लेषण करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाओं के कारणों एवं समाधान के उपायों का विश्लेषण करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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मानव एक सामाजिक प्राणी है और समूह में रहना हमेशा से मानव की एक प्रमुख विशेषता रही है जो उसे सुरक्षा का एहसास कराती है। लेकिन आज जिस तरह से समूह एक उन्मादी भीड़ में तब्दील होते जा रहे हैं उससे हमारे भीतर सुरक्षा कम बल्कि डर की भावना बैठती जा रही है। भीड़ अपने लिये एक अलग किस्म के तंत्र का निर्माण कर रही है, जिसे आसान भाषा में हम भीड़तंत्र भी कह सकते हैं। भीड़ के हाथों लगातार हो रही हत्याएँ देश में चिंता का विषय बनती जा रही हैं। आए दिन कोई-न-कोई व्यक्ति हिंसक भीड़ का शिकार हो रहा है। भीड़ द्वारा हिंसा की इन घटनाओं का जब अध्ययन किया गया तो कई कारण सामने आए, जैसे –
- बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अविश्वास की एक गहरी खाई होती है जो कि हमेशा एक-दूसरे को संशय की दृष्टि से देखने के लिये उकसाती है और मौका मिलने पर वे एक-दूसरे से बदला लेने के लिये भीड़ का इस्तेमाल करते हैं।
- समाज में व्याप्त गुस्सा भी इसमें एक उत्प्रेरक का कार्य करता है, चाहे वह गुस्सा किसी भी रूप में हो; यह गुस्सा शासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था या सुरक्षा को लेकर भी हो सकता है जो कि अंततः उन्मादी भीड़ के रूप में बाहर आता है।
- राजनीति भी हिंसात्मक भीड़ का प्रमुख कारण होती है, कभी वोट बैंक के लिये प्रायोजित हिंसा या कभी धर्म के नाम पर करवाई गई हिंसा, राजनीतिक दलों को राजनीति के लिये एक विस्तृत पृष्ठभूमि प्रदान करती है।
- देश में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने के संबंध में किसी स्पष्ट कानूनी प्रावधान का न होना।
- ध्यातव्य है कि भारतीय दंड संहिता में लिंचिंग जैसी घटनाओं के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर किसी तरह का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इन्हें धारा- 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जानबूझकर घायल करना), 147-148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरुद्ध इकट्ठे होना) तथा धारा- 34 (सामान्य आशय) के तहत ही निपटाया जाता है।
- भीड़ द्वारा किसी की हत्या किये जाने पर आईपीसी की धारा 302 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है और इसी तरह भीड़ द्वारा किसी की हत्या का प्रयास करने पर धारा 307 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है तथा इसी के तहत कार्यवाही की जाती है।
- आपराधिक दंड संहिता की धारा 223A में भी इस तरह के अपराध के लिये उपयुक्त क़ानून के इस्तेमाल की बात कही गई है, सीआरपीसी में भी स्पष्ट रूप से इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
- भीड़ द्वारा की गई हिंसा की प्रकृति और उत्प्रेरण सामान्य हत्या से अलग होते हैं इसके बावजूद भारत में इसके लिये अलग से कोई कानून मौजूद नहीं है।
भीड़ द्वारा हिंसा की इन घटनाओं को रोकने के लिये कुछ ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, जैसे-
- कानूनों का निष्ठापूर्वक पालन किया जाना चाहिये, इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिये शुरुआती कदम उठाते हुए त्वरित कार्यवाही की जानी चाहिये।
- अपराधियों को राजनैतिक प्रश्रय न प्रदान करते हुए उनके लिये सख्त-से-सख्त सज़ा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- हर परिस्थिति में निवारक उपायों का क्रियान्वयन संभव नहीं है, अतः पुलिस को ऐसी स्थिति में उचित कदम उठाने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- पुलिस बलों का तकनीकी और कौशल उन्नयन किया जाना चाहिये, साथ ही पुलिस बलों की संख्या में वृद्धि भी की जानी चाहिये।
- विशेषज्ञ कानूनविदों की व्यवस्था की जानी चाहिये ताकि अपराधी कानून की कमियों का फायदा उठाते हुए बच न निकलें।
- इस तरह की घटनाओं में सोशल मीडिया द्वारा फैलाई गई अफवाहों का सर्वाधिक योगदान होता है जो भीड़ को एकत्रित करने में बड़ी भूमिका अदा करती हैं, अतः इन पर लगाम लगाने की सख्त आवश्यकता है।
- अभी तक आम हत्या और भीड़ द्वारा की गई हत्या को कानून की दृष्टि से एक ही माना जाता है, इन दोनों को कानूनन अलग-अलग परिभाषित करना होगा।
- भीड़ द्वारा की गई हत्या की पहचान करनी होगी और फिर उसके बाद उस पर दहेज रोकथाम अधिनियम और पॉस्को की तरह एक सख्त और असरदायक कानून बनाना पड़ेगा।
- सोशल मीडिया और इंटरनेट के प्रसार से भारत में अफवाहों के प्रसार में तेज़ी देखी गई है जिससे समस्या और भी गंभीर हो गई है। एक रिसर्च के मुताबिक, 40 फीसदी पढ़े-लिखे युवा भी खबर की सच्चाई को नहीं परखते और उसे अग्रसारित कर देते हैं, इस संदर्भ में व्यापक जागरूकता की आवश्यकता है।
भीड़ एक ऐसा तंत्र है जिसकी न तो कोई विचारधारा है और न ही कोई सरोकार। वह कहीं भी किसी भी बात पर आक्रामक हो जाती है और जिस किसी से भी इसको नफरत या घृणा होती है उसे उसी वक्त सज़ा देने का फैसला कर देती है। इसे कानून व्यवस्था की समस्या के तौर पर ही नहीं बल्कि समाज में बनी विसंगतियों के समाधान द्वारा ही सुलझाया जा सकता है।