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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    'यदि फ्रांस और ब्रिटेन ने नाज़ीवाद के प्रति तुष्टीकरण की नीति न अपनायी होती तो रूस, फ्रांस और ब्रिटेन मिलकर शांति और स्थिरता का वातावरण तैयार कर इतिहास की दिशा बदल सकते थे।' टिप्पणी करें।

    30 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का करने का दृष्टिकोणः

    • भूमिका
    • द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि
    • नाज़ी शक्ति के प्रति इंग्लैंड,तथा अन्य देशों के झुकाव के कारण
    • नाज़ीवादी नीतियां किस सीमा तक घातक सिद्ध हुई?
    • निष्कर्ष

    वर्साय की संधि के अंतर्गत जर्मनी का निःशस्त्रीकरण कर दिया गया था साथ ही उस पर भारी आर्थिक जुर्माना भी लगाया गया और उसके उपनिवेशों को छीन कर विजयी राष्ट्रों द्वारा आपस में बांट लिया गया। इससे जर्मन जनता में असंतोष उत्पन्न हुआ एवं इसी असंतोष का लाभ उठाकर हिटलर ने जर्मनी में नाज़ी राज्य की स्थापना की।

    सत्ता में आते ही हिटलर ने वर्साय की संधि की शर्तों का एक-एक कर उल्लंघन करना शुरू किया। उसने उग्र विदेश नीति का अपनायी। उसने जर्मनी में अनिवार्य सैनिक सेवा की शुरुआत की और नए सिरे से जर्मनी का शस्त्रीकरण शुरू किया।

    वर्ष 1935 में हिटलर ने ‘राइन क्षेत्र’ पर सैन्य अधिकार कर लिया, जिसका वर्साय की संधि के द्वारा असैन्यीकरण किया गया था। वर्ष 1938 में उसने ऑस्ट्रिया पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् उसने चेकोस्लोवाकिया के सुडेटनलैंड पर अधिकार कर लिया। लेकिन इंग्लैंड व फ्राँस ने तुष्टीकरण की नीति अपनाते हुए हिटलर का विरोध नहीं किया। वहीं जब हिटलर ने वर्ष 1939 में डेजिंग गलियारा प्राप्त करने हेतु पोलैंड पर हमला किया तो इंग्लैंड तथा फ्राँस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

    वस्तुतः ये देश सोवियत संघ के साम्यवाद से भयभीत थे तथा उनकी नीति फासीवादी शक्तियों को साम्यवाद के विरुद्ध खड़ा करने की थी। इसी कारण उन्होंने साम्यवाद के विरुद्ध हिटलर का साथ दिया।

    इंग्लैंड के जर्मनी से घनिष्ठ व्यापारिक हित जुड़े हुए थे। साथ ही वह फ्राँस के साथ शक्ति संतुलन बनाए रखने हेतु जर्मनी के अस्तित्व को समाप्त करने का विरोधी था।

    निष्कर्षतः उपर्युक्त कारणों से स्पष्ट है कि इंग्लैंड तथा फ्राँस, नाज़ीवाद के विस्तार और अतिक्रमण के विरुद्ध खड़े नहीं हुए और रूसी साम्यवाद को ही अपना सबसे बड़ा शत्रु समझते रहे। ऐसे में इतिहासकारों का मानना है कि तुष्टिकरण के बजाय यदि इंग्लैंड और फ्राँस, रूस के साथ मिलकर प्रयास करते तो संभव था कि हिटलर की प्रसारवादी नीति के विरुद्ध के मज़बूत संयुक्त मोर्चे के निर्माण कर सकते थे।

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