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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    मौर्य साम्राज्य एक नए राजनीतिक प्रयोग का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें एक एकात्मक राजतंत्र की प्रवृत्ति भले न हो किंतु एक केंद्रीकृत साम्राज्य का स्वरूप आवश्यक रूप से परिलक्षित होता था, विवेचना करे।

    26 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण-

    • भूमिका
    • मौर्य साम्राज्य कैसे नए राजनीतिक प्रयोग का प्रतिनिधित्व करता है?
    • साम्राज्य का स्वरूप
    • निष्कर्ष

    मौर्य साम्राज्य के साम्राज्यवादी स्वरूप की जानकारी अभिलेखों के साथ-साथ अर्थशास्त्र में भी मिलती है। किंतु साम्राज्य की अत्यधिक केंद्रीयकृत व्यवस्था को क्षेत्रीय स्तर पर स्थानीय स्वतंत्रता की पूरी तरह समाप्ति के तौर पर देखना उचित नहीं होगा।

    अशोक के अभिलेखों में पूर्ण केंद्रीकरण की व्यवस्था में मौर्य साम्राज्य की एकात्मक व्यवस्था की कल्पना उचित नहीं क्योंकि ये बहुत हद तक उत्तराधिकारियों को संबोधित करते हैं। इसके अलावा, उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में प्राप्त अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे गए तथा अफगानिस्तान में यूनानी एवं अरेमाइक लिपि में लिखे गए मिलते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि उन क्षेत्रों में विदेशी मूल के लोग या अधिकारी रहते होंगें।

    रोमिला थापर के अनुसार मौर्य साम्राज्य में अच्छी संचार व्यवस्था एवं यातायात व्यवस्था के अभाव के कारण पूर्ण या एकात्मक राजतंत्र की संभावना नहीं दिखाई देती। यदि मौर्य साम्राज्य को मुख्य क्षेत्र एवं दूरवर्ती क्षेत्र में विभाजित करके देखे तो मौर्य साम्राज्य के प्रशासन में विविधता देखने को मिलती है। दूरवर्ती क्षेत्रों में प्रायद्वीपीय भारत के क्षेत्र तथा उत्तर-पश्चिम के क्षेत्र शामिल थे।

    दक्षिण भारत के अशोक के अभिलेखों में हाथी पालने के साक्ष्य मिलते हैं। इसका अर्थ है कि दूरवर्ती क्षेत्रों में मौर्य राज्य क्षेत्रीय सरदारों के माध्यम से नियंत्रण रखता था। दूसरे, इस समय श्रेणियों की भी स्वायत्त स्थिति की कल्पना की जा सकती है जिसके कारण अखंड राजतंत्र नहीं माना जा सकता।

    ऐसे में मौर्य राजतंत्र एक एकीकृत राजतंत्र तो नहीं था किंतु एक विस्तृत साम्राज्य अवश्य था जिसमें केंद्रीकरण की प्रवृत्ति अपनी पराकाष्ठा पर थी। मौर्य साम्राज्य में प्रशासन सप्तांग विचारधारा पर आधारित था, इसे सुचारु रूप से चलाने के लिये राजा जनपद, मित्र, सेना, कोष एवं दुर्ग राज्य के क्रियान्वयन के अंग थे।

    राजा के कार्यों में सहायता के लिये एक मंत्रिपरिषद की व्यवस्था थी जिसे राजा का नेत्र कहा गया है, मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की शक्तियाँ राजा की परस्पर स्थिति पर निर्भर थी। मंत्रियों की नियुक्ति उपधा परीक्षण (योग्यता परीक्षण) के उपरांत होती थी। मंत्रिपरिषद एक परामर्शदात्री निकाय के रूप में कार्य करती थी।

    मौर्य साम्राज्य में अत्यधिक केंद्रीकरण की प्रवृत्ति उसकी नौकरशाही व्यवस्था से पता चलती है। मौर्य साम्राज्य विस्तृत नौकरशाही पर आधारित था जिसमें पिरामिडनुमा व्यवस्थित अधिकारी संवर्ग को नियुक्त किया गया था। नौकरशाही व्यवस्था में सबसे ऊँचे स्तर पर तीर्थ एवं महामात्र नामक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। अर्थशास्त्र में 18 तीर्थों की चर्चा मिलती है।

    मौर्य साम्राज्य के प्रमुख तीर्थो में मंत्री, पुरोहित, सेनापति, समाहर्ता एवं सन्निधाता थे, सन्निधाता राज्य का कोषाध्यक्ष होने के साथ-साथ खजाने का प्रभारी भी होता था जो समाहर्ता के साथ मिलकर कार्य करता था। अर्थशास्त्र में मौर्य साम्राज्य में 27 अध्यक्षों की चर्चा मिलती है जैसे-लक्षपाध्यक्ष, सीताध्यक्ष पण्याध्यक्ष आदि। इनका कार्य राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था में सहायता करना था, साथ ही ये लोग सामाजिक-आर्थिक जीवन का विनियमन भी देखते थे।

    संपूर्ण मौर्य साम्राज्य का विभाजन सुविधानुसार प्रांतों में किया गया था। चंद्रगुप्त मौर्य के समय प्रांतों की निश्चित संख्या की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती, जबकि 4 (चार) प्रांत होने की जानकारी व्यक्त की जाती है। किंतु अशोक के काल के पाँच प्रांतों एवं उनकी राजधानियों की जानकारी मिलती है।

    मौर्य साम्राज्य के प्रांत ज़िलों में विभाजित थे जिनमें रज्जुक एवं प्रादेशिक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी जो ज़िलों के प्रशासन एवं भूराजस्व व्यवस्था के साथ न्याय व्यवस्था को देखते थे।

    ज़िला एवं ग्रामीण व्यवस्था के बीच स्थानीय नामक प्रशासनिक इकाई कार्य करती थी जिस पर ‘स्थानिक’ नामक अधिकारी की नियुक्ति की जाती थी। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जिस पर प्रधान ग्रामीण था। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था अत्यधिक केंद्रीकृत थी।

    अतः स्पष्ट है कि मौर्य साम्राज्य केंद्रीकृत प्रशासन तथा विस्तृत नौकरशाही एक विस्तृत साम्राज्य का प्रतिनिधित्व करता था। विस्तृत साम्राज्य की प्रतिक्रिया को जानने के लिये संचार साधनों के अभाव की स्थिति में गुप्तचर व्यवस्था का प्रबंध किया गया था। गुप्तचर व्यवस्था केंद्रीकृत एवं विस्तृत साम्राज्य के अभिलक्षणों को और पुष्ट करते हैं।

    निष्कर्षतः कह सकते हैं मौर्य साम्राज्य एक नए राजनीतिक प्रयोग का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें एक एकात्मक राजतंत्र की प्रवृत्ति भले न हो किंतु एक केंद्रीकृत साम्राज्य का स्वरूप आवश्यक रूप से परिलक्षित होता था।

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