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प्रश्न :
बाल श्रम बच्चों को स्कूल जाने के उनके अधिकार से वंचित करता है और गरीबी के अंतर-पीढ़ीगत चक्र को मज़बूत करता है। टिप्पणी कीजिये।
23 Jun, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- भारत में बाल श्रम की भयावहता पर संक्षेप में चर्चा करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- गरीबी और शिक्षा पर बाल श्रम के प्रभाव के विषय में चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
बाल श्रम से तात्पर्य बच्चों को किसी भी ऐसे काम में लगाना है जो उन्हें उनके बचपन से वंचित करता है, नियमित स्कूल जाने की उनकी क्षमता में हस्तक्षेप करता है, और यह मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से खतरनाक और हानिकारक है।
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, 5-14 वर्ष के आयु वर्ग के 10.1 मिलियन बच्चें कार्यरत है, जिनमें से 8.1 मिलियन ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य रूप से कृषक (23%) और खेतिहर मजदूरों (32.9%) के रूप में कार्यरत हैं।
प्रारूप
गरीबी और शिक्षा पर बाल श्रम के प्रभाव
- कारण-प्रभाव संबंध: बाल श्रम और शोषण कई कारकों का परिणाम है, जिसमें गरीबी, सामाजिक मानदंड, वयस्कों और किशोरों के लिये अच्छे काम के अवसरों की कमी, प्रवास और आपात स्थिति शामिल हैं। ये कारक सामाजिक असमानताओं के न केवल कारण हैं बल्कि भेदभाव प्रेरित परिणाम भी हैं।
- राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये खतरा: बाल श्रम, शोषण की निरंतरता एवं बच्चों की स्कूलों तक पहुॅंच न होने के कारण उनका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य कमज़ोर हो रहा है। इससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये नकारात्मक साबित हो रही है।
- अनौपचारिक क्षेत्र में बाल श्रम: हालाॅंकि बाल श्रम कानून पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, भारत भर में बाल मज़दूर विभिन्न अनौपचारिक उद्योगों जैसे- ईंट भट्टों, कालीन बुनाई, परिधान निर्माण, कृषि, मत्स्य पालन आदि में कार्यरत हैं।
- प्रच्छन्न बाल श्रम: पिछले कुछ वर्षों में बाल श्रम की दर में गिरावट के बावजूद, बच्चों को अभी भी घरेलू मदद जैसे कार्यों में प्रच्छन्न रूप से बाल श्रम के इस्तेमाल किया जा रहा है।
- बाल श्रम तात्कालिक रूप से खतरनाक प्रतीत नहीं हो सकता है लेकिन यह उनकी शिक्षा, उनके कौशल अधिग्रहण के लिये दीर्घकालिक और विनाशकारी परिणाम उत्पन्न कर सकता है।
- इसलिये उनकी भविष्य की संभावनाएॅं गरीबी, अधूरी शिक्षा और खराब गुणवत्ता वाली नौकरियों के दुष्चक्र को दूर करने के लिये हैं।
- बाल तस्करी: बाल तस्करी को बाल श्रम से जोड़ा जाता है और इसके परिणामस्वरूप हमेशा बाल शोषण होता है।
- तस्करी किये हुए बच्चों को वेश्यावृत्ति जैसे गलत कार्यों के लिये मजबूर किया जाता है या अवैध रूप से गोद लिया जाता है; वे सस्ते या अवैतनिक श्रम प्रदान करते हैं, उन्हें गृह सेवक या भिखारी के रूप में काम करने के लिये मजबूर किया जाता है और उन्हें सशस्त्र समूहों में भर्ती किया जा सकता है।
आगे की राह
- पंचायत की भूमिका: चूँकि भारत में लगभग 80% बाल श्रम ग्रामीण क्षेत्रों में होता है। पंचायत बाल श्रम को कम करने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। इस संदर्भ में पंचायत को चाहिये:
- बाल श्रम के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता पैदा करना।
- माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये प्रोत्साहित करें।
- सुनिश्चित करें कि बच्चों को स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
- बाल श्रम को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों और इन कानूनों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के बारे में उद्योग के मालिकों को सूचित करें।
- गाॅंव में बालवाड़ी और आंगनबाड़ियों को सक्रिय करें ताकि कामकाजी माताएँ छोटे बच्चों की ज़िम्मेदारी उनके बड़े भाई-बहनों पर न छोड़ें।
- एकीकृत दृष्टिकोण: बाल श्रम और शोषण के अन्य रूपों को एकीकृत दृष्टिकोणों के माध्यम से रोका जा सकता है जो बाल संरक्षण प्रणालियों को मज़बूत करने के साथ-साथ गरीबी और असमानता को संबोधित करते हैं, शिक्षा की गुणवत्ता और पहुॅंच में सुधार करते हैं और बच्चों के अधिकारों के लिये सार्वजनिक समर्थन जुटाते हैं।
- बच्चों को सक्रिय हितधारक के रूप में समझना: बच्चों के पास बाल श्रम को रोकन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की शक्ति है।वे बाल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और इस बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि दे सकते हैं कि वे अपनी भागीदारी को कैसे समझते हैं और सरकार और अन्य हितधारकों से वे क्या अपेक्षा करते हैं।
निष्कर्ष
बच्चे स्कूलों में पढ़ने के लिये बने होते हैं, कार्यस्थलों में कार्य करने के लिये नहीं। बाल श्रम बच्चों को स्कूल जाने के उनके अधिकार से वंचित करता है और गरीबी को पीढ़ीगत बनाती है। बाल श्रम शिक्षा में एक प्रमुख बाधा के रूप में कार्य करता है, जो स्कूल में उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों को प्रभावित करता है।
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