'एक राष्ट्र एक भाषा का सिद्धांत किसी भी राष्ट्र की एकता तथा अखंडता को मज़बूती प्रदान करता है। लेकिन किसी भाषा को दबाकर कोई नई भाषा थोपना लोकतांत्रिक भावना के विपरीत है।' टिप्पणी करें।
23 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण:
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गांधी जी सहित अन्य नेताओं द्वारा सामान्य तौर पर यह स्वीकार कर लिया गया था कि आजाद भारत अपनी प्रशासनिक इकाइयों के सीमा को भाषायी सिद्धांत पर निर्धारित करेगा। लेकिन आजादी के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व में यह विचार व्यक्त किया गया कि देश की सुरक्षा, एकता और आर्थिक संपन्नता पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिये।
स्वतंत्रता के पहले से ही कांग्रेस ने स्थानीय भाषाओं के महत्त्व को स्वीकार किया था लेकिन जिन परिस्थितियों में देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई उसने कांग्रेस तथा राष्ट्र के प्रमुख नेताओं की सिर्फ भाषा के आधार पर प्रांतों के निर्माण की अपेक्षा एक समग्र दृष्टिकोण विकसित करने की ओर प्रेरित किया। साथ ही स्वतंत्रता के बाद एक लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत ने सभी भाषाओं को उचित सम्मान प्रदान करने का प्रयास किया है।
स्वतंत्रता के बाद भारत में भाषा संबंधी मामलों में राज्यों को भी व्यापक अधिकार दिये गए तथा संघ राज्य संबंधों में हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी विशेष कालावधि के लिये मान्यता प्रदान की गई।
राज्य पुनर्गठन आयोग ने भी राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को आधार माना जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न राज्यों का गठन हुआ साथ ही विभिन्न भाषाओं को प्रोत्साहन भी मिला।
वर्तमान में विभिन्न राज्य अपने स्तर पर भाषा का चयन करने में सक्षम हैं जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं को भी उचित प्रोत्साहन मिला।
ऐसा माना जाता है कि पुनर्गठन आयोग विभिन्न राज्यों के मध्य सभी विवादों और समस्याओं का समाधान नहीं कर पाया। किंतु सूक्ष्मता से देखें तो राज्यों के पुनर्गठन ने भारत की एकता को कमजोर नहीं किया बल्कि मज़बूत ही किया है।
निष्कर्षतः एक लोकतांत्रिक देश में विभिन्न भाषाओं के सम्मान के साथ-साथ एक राष्ट्र एक भाषा का दिशा में प्रयास किया जाना चाहिये। निःसन्देह एक राष्ट्र एक भाषा का सिद्धांत किसी भी राष्ट्र की एकता तथा अखंडता को मज़बूती प्रदान करता है और संविधान भी सरकारों से इस दिशा में प्रयास करने की उम्मीद करता है, लेकिन किसी भाषा को दबाकर नई भाषा को थोपना लोकतांत्रिक भावना के विपरीत है।