नई कविता पर अस्तित्ववादी प्रभाव के साथ ही, इसमें संश्लिष्ट आधुनिक भावबोध कि विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
17 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यनई कविता छठे दशक की कविता है। अज्ञेय ने 1951 में दूसरा सप्तक प्रकाशित किया और यहीं से प्रयोगवाद नई कविता के रूप में रूपांतरित हो गया। इसके अतिरिक्त कुछ इतिहासकारों की राय है कि 1954 में जगदीश गुप्त की पत्रिका नई कविता के प्रकाशन से नई कविता आंदोलन का प्रारंभ हुआ।
लक्ष्मीकांत वर्मा ने इसका आरंभ 1951 से ही माना है क्योंकि इसी वर्ष अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक प्रकाशित हुआ था। 1952 में अज्ञेय ने अपनी कविताओं को नई कविताएँ कहा था। शमशेर ने भी इसी समय अपनी कविताओं को नई कविता कहा। शंभूनाथ सिंह द्वारा इस पर एक विशेष टिप्पणी की गई कि नई कविता को प्रयोगवाद से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रयोगवाद में प्रयोगशीलता की केंद्रीयता है जबकि नई कविता में प्रयोग केंद्रीय प्रवृत्ति के रूप में नहीं दिखता है।
भारत में स्वतंत्रता के बाद आर्थिक विषमता कम नहीं हुई थी तथा देश के नेतृत्व में जनता की समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। इसके परिणामस्वरूप देश में असंतोष, मोहभंग और निराशा की स्थिति बनी क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी लोगों के सपने पूरे नहीं हुए थे। इसी पृष्ठभूमि पर नई कविता का उदय हुआ, आजादी के बाद जो भी विकास हुआ उसे मशीनीकरण और शहरीकरण पर बल दिया गया जिससे समाज में यांत्रिकता, अकेलेपन और आत्मनिर्वासन को बल मिला। इसी पूरे दौर में मनुष्य का महत्व कम होता है जिससे अस्तित्ववादी विचारधारा के प्रभाव के रूप में लघुमानववाद कहा गया है। इन सारी परिस्थितियों का गंभीर प्रभाव नई कविता पर पड़ा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व पूंजीवादी और मार्क्सवादी दो खेमों में बँट गया था। इस दौर में मार्क्सवाद के खिलाफ व्यक्ति की स्वतंत्रता का नारा बुलंद किया गया तथा इस बात पर ध्यान आकर्षित किया गया कि मार्क्सवाद सभी प्रकार की स्वतंत्रताओं का अपहरण करता है। इस प्रकार यह देश के बुद्धिजीवियों, लेखकों एवं जनता को स्वतंत्रता से वंचित करता है। नई कविता प्रमुखता अस्तित्ववादी दर्शन का प्रभाव पड़ा हालाँकि इस पर मार्क्सवाद का भी प्रभाव देखा गया। इस तरह नई कविता की दो धाराएँ बनी- पहली अस्तित्ववाद और व्यक्तिवादी आधुनिकतावाद से जबकि दूसरी मार्क्सवाद से प्रभावित, पहली धारा का नेतृत्व अगेन के हाथों में था जबकि दूसरी का नेतृत्व मुक्तिबोध के हाथों में।
नई कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ:
लिपटा रजाई में
मोटे तकिए पर धर कविता की कॉपी
ठंडक से अकड़ी उंगलियों से कलम पकड़
मैंने इस जीवन की गली-गली नापी
हाथ कुछ लगा नहीं
कोई भी भाव कमबख्त जगह नहीं ( सर्वेश्वर)
हम तो सारा का सारा लेंगे जीवन
कम से कम वाली बात ना हमसे कहिए। ( रघुवीर सहाय)
हम छोटे लोग
चाहे अनदेखे बीत जाए
कोई तो देखेगा
हमारी मुट्ठी में गुलमोहर के फूल थे
कोई तो चीन्हेगा
हमारे होठों पर भी कविताएँ थी। (अशोक वाजपेयी)
इस प्रकार आधुनिक सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों को आत्मसात करते हुए अस्तित्ववादी विचारधारा के आधार पर नई कविता का स्तंभ तैयार हुआ।