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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “प्रयोगवाद पाश्चात्य साहित्यिक प्रवृत्तियों में भारतीय दर्शन के संश्लेषण से व्युत्पन्न आंदोलन है,” उदाहरण सहित व्याख्या कीजिये।

    15 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    आधुनिक हिंदी कविता के इतिहास में वर्ष 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक के प्रकाशन के साथ ही एक नया मोड़ उपस्थित हुआ जिसे प्रयोगवाद कहा गया। इस संकलन में सात कवियों की कविताएं शामिल थी- रामविलास शर्मा, मुक्तिबोध, अज्ञेय, गिरिजाकुमार माथुर, नेमी चंद्र जैन, प्रभाकर माचवे, भारत भूषण अग्रवाल।

    प्रयोगवाद पर पश्चिमी साहित्यिक प्रवृत्तियों पर पड़ने वाले कारकों का प्रभाव देखा गया। उदाहरण स्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव क्षण भंगुरता एवं क्षणवादी मानसिकता के संदर्भ में देखा गया, इसी प्रकार फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद संबंधी लिबिडो एक काम चेतना तथा अमेरिका में विकसित टी. एस. इलियट एवं रिचर्ड्स के नई समीक्षा आंदोलनों का भी प्रयोगवाद पर प्रभाव देखा गया। इलियट के निर्वैक्तिकता सिद्धांत का प्रभाव भी प्रयोगवाद की रचनाओं में देखा गया। इलियट ने रोमांटिसिजम की आलोचना यह कह कर की कि- इसमें भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं बल्कि वमन होता है। उनके अनुसार रचना प्रक्रिया में कवि को भावुक होकर नहीं बल्कि तटस्थ होकर शामिल होना चाहिए। इस प्रकार इलियट कहते हैं कि- भोगने वाले मन और रचना करने वाले मन में एक अनिवार्य अंतराल होना चाहिए और यह अंतराल जितना बड़ा होगा रचना उतनी ही महान होगी। इस विचार को अब घोषित रूप से स्वीकार किया गया तथा शेखर एक जीवनी में इस प्रसंग का उल्लेख भी किया गया है। इसी समय के फ्रांस में सक्रिय प्रतीक वाद का प्रभाव भी प्रयोगवाद में देखा गया।

    पश्चिमी प्रवृत्तियों के अतिरिक्त प्रयोगवाद में तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों, स्वाधीनता आंदोलन और व्यक्तिगत हितों तथा गांधी जी के दर्शन प्रबुद्ध व्यक्तिवाद का प्रभाव भी देखा गया। तत्कालीन भारत की सामाजिक राजनीतिक परिस्थितियों जैसे शहरीकरण आदि का भी प्रभाव देखा गया। इसके अतिरिक्त अज्ञेय पर उनकी रचना असाध्य वीणा में जैन सिद्धांतों का प्रस्फुटन भी देखा जा सकता है। प्रयोगवाद के भारतीय विशेषताओं में भाषा को अधिक महत्व दिया गया, इस संदर्भ में अज्ञेय कहते हैं- भाषा सिर्फ व्यक्ति का माध्यम नहीं, जानने का भी माध्यम है। जितनी हमारी भाषा होती है, हम उतना ही सोच सकते हैं।

    इस प्रकार प्रयोगवाद पश्चिमी साहित्यिक प्रवृत्तियों से प्रभावित होते हुए भारतीय परिस्थिति एवं दर्शन को गहनता से आत्मसात करते हुए भारतीय प्रयोगवाद के एक नवीन एवं उत्कृष्ट संस्करण के रूप में प्रस्तुत हुआ।

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