“धर्मवीर भारती द्वारा आधुनिक यथार्थवादी दृष्टिकोण को आधार बनाते हुये व्यक्ति की मनोभावनाओं और अंतर्द्वंदों को उभारने का प्रयास किया गया।” उनकी रचनाओं के परिप्रेक्ष्य में इस कथन की यथार्थता सिद्ध कीजिये?
14 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यप्रेमचंद और प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों की एक धारा ने जहाँ सामाजिक ऐतिहासिक प्रवृत्तियों के उपन्यास लिखें वही जैनेंद्र, इलाचंदर जोशी, अज्ञेय आदि ने दूसरी धारा का प्रवर्तन किया। इस धारा के उपन्यासकारों ने समाज की अपेक्षा व्यक्ति मन की सूक्ष्म समस्याओं को अपने उपन्यासों का केंद्र बिंदु बनाया। इसमें कथाकार जीवन यथार्थ और संघर्ष की अपेक्षा व्यक्त की मनोस्थिति और मनोभावनाओं की गहराइयों से डूबते उतरते हुए प्रेम और नैतिकता के प्रश्नों से उलझते हैं। धर्मवीर भारती ने भी अपनी रचनाओं में इसी मनोवैज्ञानिक अथवा मनोविश्लेषणात्मक प्रवृत्तियों का प्रयोग किया।
प्रेमचंद के बाद जो नई धारा हिंदी में उभरती है उसमें स्वाधीनता आंदोलन और सामंती परिवेश के बीच की समस्याओं बाह्य घटनाओं, परिस्थितियों, संस्कारों में फँसे मनुष्य की विवशता दर्शाना तथा व्यक्ति मन, उसकी कुंठाओं की झलक दिखाना एवं प्रेम और नैतिकता के उलझे प्रश्नों को विश्लेषित करने की प्रवृत्तियाँ प्रभावी रहीं। इसी प्रकार ये रचनाकार सामाजिक समस्याओं को कथानक की विषयवस्तु बनाने के बजाय मनुष्य के अंतर्द्वंदों को उभारना अधिक सर्वश्रेष्ठ समझते थे। इसी क्रम में जैनेंद्र ने कहा कि- “वह उपन्यास किसी काम का नहीं, जो इतिहास की तरह घटनाओं का बखान कर जाता है।”
धर्मवीर भारती द्वारा मनोवैज्ञानिकतावादी प्रवृत्तियों के साथ अपनी दो प्रमुख रचनाओं- गुनाहों का देवता और सूरज का सातवाँ घोड़ा की रचना की गई। गुनाहों का देवता एक भावुकता और उच्छवास युक्त प्रेम की रोमानी कहानी को आधार बनाता है। वस्तुनिष्ठ दृष्टि से देखा जाए तो भारती जी के इस उपन्यास में प्रेम को एक समग्र मानवीय व्यवहार के रूप में चित्रित किया गया है जो युवक-युवतियों के बीच का त्याग भावना से प्रेरित और वासना रहित प्रेम है। उपन्यास में चंदर सुधा को अपनी समस्त पवित्रता से प्रेम करता है वासना उसके लिये गर्हित है और इस प्रकार वे दोनों रोमानी प्रेम के प्रवाह में बहते रहते हैं। एक दूसरे से प्रेम में होड़ करते हुए ऊपर उठते हुए यह मानते हैं कि प्रेम सामान्य प्रक्रियाओं से अति श्रेष्ठ चीज है इसीलिये सुधा का विवाह किसी और से होने पर भी चंदर इस कार्य को हर्ष पूर्ण संपन्न कराता है। चंदर सोचता है कि सुधा पति के घर जाकर उसे भूल गई है और वह उसे पत्र नहीं लिखता और ईसाई लड़की पम्मी के आकर्षण में फँसकर वासनायुक्त प्रेम (गुनाह) में डूब जाता है। गुनाहों का देवता उपन्यास का कथानक चंदर और सुधा के भावुकता पूर्ण प्रेम के इर्द-गिर्द ही घूमता है। लेखक उनके मानसिक अंतर्द्वंद, नारी और आत्मा के संघर्ष को ही अपने इस उपन्यास की कहानी में विन्यस्त करता है।
सूरज का सातवाँ घोड़ा भारती का गुनाहों का देवता के बाद लिखा गया दूसरा उपन्यास है। इसके विषय में उपन्यासकार ने निवेदन में लिखा कि- “दोनों कृतियों में कालयुग का अंतर पड़ने के अलावा उन बिंदुओं में भी अंतर आ गया है जिन पर मैंने समस्याओं का विश्लेषण किया है।” दरअसल गुनाहों का देवता उपन्यास एक भावुक प्रेम कहानी है जिसमें समाज और उसकी समस्याएँ उतनी मुख्य रूप से स्पष्ट नहीं हुई हैं जबकि सूरज का सातवाँ घोड़ा एक निम्न वर्गीय जनजीवन की कहानी है जहाँ पर मार्क्सवाद की कुछ प्रवृत्तियाँ भी महसूस की जा सकती हैं। इस उपन्यास में माणिक मुल्ला आपबीती के रूप में निम्न मध्यवर्गीय परिवारों की कहानी अपने नौजवान साथियों को सुनाता है। इस उपन्यास में जमुना, लिली और सती के जीवन से जुड़ी कहानियाँ हैं जिन्हें माणिक मुल्ला ने सातवी दोपहर की कहानी में सूरज के मिथक के साथ जोड़ दिया है। इसकी कथावस्तु में निम्न मध्यमवर्गीय जनजीवन की त्रासद स्थितियों, उनके घुटन भरे जीवन और जैसे-तैसे जिंदा रहने की विवशता के अनेक चित्र खींचे गए हैं।
इस प्रकार धर्मवीर भारती द्वारा प्रसाद के कथानको की भांति मनोवैज्ञानिक स्तर पर मनुष्य के अंतर्द्वंद, निर्णय न ले पाने की क्षमता और भाषाई कलात्मकता को आधार बनाया है तो वहीं दूसरी ओर मोहन राकेश और आधुनिक राजनीतिक सामाजिक परिस्थितियों और विचारधाराओं जैसे- अस्तित्ववाद, मनोविश्लेषणवाद, लघु मानववाद और परोक्ष स्तर पर मार्क्सवाद की अंतर भावनाओं की प्रविष्टि भी संतुलित रूप से की है। उनकी रचनाओं पर उनके प्रिय लेखक प्रसाद की भाषा और ऑस्कर वाइल्ड की लेखन शैली का प्रभाव देखा जा सकता है।