दक्षिण अफ्रीका में नस्ल-भेद नीति के अभिलक्षणों को स्पष्ट करते हुए इससे होने वाले परिवर्तन के बिंदुओं को रेखांकित कीजिये।
12 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण-
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नस्लवाद का आशय ऐसी धारणा से है, जिसमें यह माना जाता है कि मनुष्यों की कुछ विशिष्ट ‘नस्लें’ अन्य की तुलना में बेहतर होती हैं। औपनिवेशक देशों द्वारा नस्लवाद की नीति अपनाना कोई नयी बात नहीं थी फिर चाहे वह भारत के के संदर्भ में हो या दक्षिण अफ्रीका। किंतु दक्षिण अफ्रीका पर श्वेत सरकार द्वारा लागू की गयी रंगभेद (Apartheid) की नीति नस्लवाद की पराकाष्ठा थी। उल्लेखनीय है कि दक्षिण अफ्रीका मे यह नीति तब लागू की जा रही थी जब विश्व स्तर पर जोर-शोर से उपनिवेश मुक्ति की प्रक्रिया चल रही थी। इसे पार्थक्य या Apartheid की नीति का नाम दिया गया।
दक्षिण अफ्रीका में औपनिवेशीकरण का आरंभ 1652 ई. में डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा केप ऑफ गुड होप पर अधिकार स्थापित कर शुरू हुआ बाद में ब्रिटिश ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। जब 1838 ई. में ब्रिटिश द्वारा दास प्रथा का अंत कर दिया गया तो बोअर केप ऑफ गुड होप से पलायन कर ट्रांसवाल, नेटाल तथा ऑरेज फ्री स्टेट जैसे राज्यों की स्थापना कर यही बस गये। कालांतर में जब ट्रांसवाल में सोने व हीरे की खानों का पता चला तो ब्रिटिश इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित हुये फलतः 1899-1902 के बीच बोअर युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेजों की जीत हुयी। इस तरह 1910 ई. तक सभी क्षेत्रों (नेटाल ट्रांसवाल, केप ऑफ गुड होप) को मिलाकर दक्षिण अफ्रीकी संघ की स्थापना की गयी।
हलांकि नवीन दक्षिण अफ्रीकी संघ में 70% से अधिक जनसंख्या अश्वेत अफ्रीकी लोगों की थी। इसके बावजूद अश्वेत अफ्रीकी लोगों को नस्लीय भेदभाव का शिकार होना पड़ता था।
रंगभेद नीति के तहत निम्नलिखित कदम उठाये गये-
अश्वेत लोगों द्वारा रंगभेद नीति की इस नीति के विरूद्ध प्रतिक्रिया करना स्वाभाविक था। इस दिशा में सर्वप्रथम प्रयास अफ्रीकी नेशनल कान्ग्रेस (ANC) द्वारा किया गया जिसके नेतृत्वकर्त्ता ‘अलबर्ट बुभूलि' थे। फिर 1952 ई. में अफ्रीकियों द्वारा रंगभेद नीति कानून का उल्लंघन किया गया जिसमें अश्वेत लोगों ने श्वेत लोगों के लिये आरक्षित क्षेत्रों में जाना शुरू कर दिया। 1955 ई. में अफ्रीकी नेशनल कान्ग्रेस ने एशियाई एवं मिश्रित समूहों के साथ मिलकर एक गठबंधन तैयार किया तथा खुली बैठक आयोजित कर एक अधिकार पत्र (चार्टर) की घोषणा की जिसमें कानून के समक्ष समानता का अधिकार, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा समान कार्य हेतु समान वेतन आदि मागें उठायी गयी।
आगे चलकर 1960 ई. में शर्प विले कस्बे के निकट ANC के नेतृत्व में रंगभेद के विरूद्ध जबरदस्त प्रदर्शन किया गया जिसमें नेल्सन मंडेला की सक्रिय भागीदारी रही।अब दक्षिण अफ्रीका से बाहर के देशों एवं संगठनों ने रंगभेद नीति का आलोचना शुरू कर दी जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ एवं राष्ट्र मंडल देशों के समूह ने अहम भूमिका निभाई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ आर्थिक बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया गया था ऐसे में 1979 ई. में बनी पी.डब्ल्यू बोथा की सरकार ने रंगभेद नीति को ढील देना प्रारंभ किया।
आंदोलन के बाद परिवर्तन के प्रमुख बिंदु-
1980 के दशक में ‘ डब्ल्यू डी क्लार्क’ जब राष्ट्रपति बने तो इन्होंने रंगभेद नीति को पूर्णतः समाप्त करने की घोषणा की। 1990 ई. में नेल्सन मंडेला को जेल से रिहा कर दिये गये तत्पश्चात अफ्रीकी नेशनल कान्ग्रेस पर से प्रतिबंध हटाकर रंगभेद कानून को अंत कर दिया गया। ‘एक व्यक्ति एक वोट’ के आधार पर लोकततांत्रिक चुनाव कराने की घोषणा की गयी। 1994 ई. में प्रथम लोकतांत्रिक चुनाव हुआ और दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति चुने गये। नेल्सन मंडेला को रंगभेद नीति के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिये 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गाया। निष्कर्षतः दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति की समाप्ति ने विश्व इतिहास में एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया।