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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    स्वच्छंदतावाद के उद्भव की परिस्थितियों को स्पष्ट करते हुए, छायावाद और स्वच्छंदतावाद के अंतर्संबंधों को स्पष्ट कीजिये।

    09 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    स्वच्छंदतावाद का पश्चिमी साहित्य में उद्भव:

    • पश्चिमी साहित्य चिंतन में रूसो की प्रेरणा तथा विलियम वर्ड्सवर्थ एवं सैमुअल टेलर कॉलरिज के नेतृत्व में एक साहित्यिक आंदोलन का सूत्रपात 18वीं सदी के अंत में हुआ जिसे अंग्रेजी समीक्षा में रोमांटिसिज्म कहा गया।
    • पश्चिम के स्वच्छंदतावाद की मूल विशेषता मानव कविता तथा भाषा के स्तर पर स्वतंत्रता के मूल्य की प्रतिष्ठा करना रही है। यह धारा उस काल में पैदा हुई थी जब पश्चिम में मशीनीकरण के बढ़ते प्रयोग से मनुष्य और प्रकृति का महत्व समाप्त होने लगा था।
    • ऐसी स्थिति में स्वच्छंदतावादी चिंतकों ने साहित्य में प्रचलित दृष्टिकोण शास्त्रवाद या अभिजात्यवाद का विरोध किया जो कविता के लिये निश्चित नियम व अनुशासन के पालन के प्रयोग को अनिवार्य बनाता था। मशीनीकरण से मानव की मुक्ति की प्रेरणा के लिये उन्होंने प्रगति की ओर देखा वह प्रकृति इनके काव्य में स्वतंत्रता की मूल प्रेरणा बनकर शामिल हुई थी। स्वच्छंदता वादियों ने कविता की व्याख्या तीव्र भावनाओं के सहज उच्छलन के रूप में की।
    • आचार्य शुक्ल ने इस शब्द का अनुवाद स्वच्छंदतावाद के रूप में किया। शुक्ल जी के अनुसार, द्विवेदी युगीन साहित्य में श्रीधर पाठक के नेतृत्व में एक विशेष धारा दिखाई देती है जिसे प्रवृत्तियों के आधार पर स्वच्छंदतावाद कहा जा सकता है।

    भारतीय और पश्चिमी स्वच्छंदतावाद में अंतर:

    • भारतीय स्वच्छंदतावाद में पश्चिमी स्वच्छंदतावाद से कुछ अलग तरह की चिंताएं दिखाई देती हैं । अपनी मूल प्रवृत्ति में स्वच्छंदतावाद की विशेषताएं यहां भी वही हैं जो पश्चिम में थी किंतु यहाँ परिवेशगत भिन्नता के कारण इनकी अभिव्यक्ति कुछ अलग तरीके से हुई।
      • उदाहरण के लिये तत्कालीन भारत की मूल समस्या मशीनीकरण नहीं बल्कि राष्ट्रीय पराधीनता तथा सामाजिक व रूढ़िवादी दबाव की थी। भाषा के स्तर पर मूल समस्या स्वाभाविकता की नहीं बल्कि यह थी कि आधुनिक भावों और विचारों को धारण करने के लिये एक नई भाषिक संरचना जरूरी हो चली थी। भारतीय स्वच्छंदतावाद ने इन स्तरों पर विद्रोह किया तथा नवीन दृष्टिकोण की स्थापना की।

    भारतीय साहित्य में स्वच्छंदतावाद का प्रारंभ:

    • स्वच्छंदतावाद और छायावाद के संबंधों की आरंभिक व्याख्या आचार्य शुक्ल ने की। उनका मत है कि द्विवेदी युग में श्रीधर पाठक के नेतृत्व में स्वच्छंदतावाद किस धारा का आरंभ हुआ वह हिंदी साहित्य के विकास में एक नया तथा सार्थक दृष्टिकोण लेकर आई थी। इन कवियों ने पहली बार जगत की सच्चाई और वैयक्तिकता जैसे मूल्यों की स्थापना की।

    जगत है सच्चा, तनिक ण कच्चा, समझो बच्चा, इसका भेद।।
    लिखो, ना लेखनी करो बंद, श्रीधर सम सब कभी स्वच्छंद।।

    पारंपरिक दृष्टिकोण:

    • आचार्य शुक्ल ने कहा कि इस स्वस्थ व सकारात्मक काव्यधारा का विकास दो कारणों से रुक गया। पहला कारण था कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी शास्त्रीय प्रतिमान लेकर आलोचना के क्षेत्र में उतरे और उन्होंने स्वच्छंदतावादी काव्य को शास्त्रीय प्रतिमान के अनुकूल ना पाकर उसे प्रशंसा की निगाह से नहीं देखा। दूसरा कारण यह था कि रवींद्रनाथ टैगोर के प्रभाव से हिंदी काव्य में एक रहस्यवादी शैली का विकास हुआ जिसे छायावाद कहा गया। रहस्यवाद मूल प्रवृत्ति में ही स्वच्छंदतावाद की विरोधी दृष्टि है अतः छायावाद के विकास ने स्वच्छंदतावाद के विकास को अवरुद्ध कर दिया।
    • इस प्रकार छायावाद व स्वच्छतावाद के संबंधों का विवाद मूलतः आचार्य शुक्ल की व्याख्या पर आधारित है जिसके अंतर्गत वे छायावाद को स्वच्छतावाद का विरोधी मानते हैं।

    समन्वयवादी दृष्टिकोण:

    • बाद के विद्वानों ने इस संबंध का पुनर्विश्लेषण किया और कहा कि छायावाद स्वच्छंदतावाद का विरोधी नहीं बल्कि विकसित रूप है। सामान्यता बाह्य स्तर पर इनके मध्य कई अंतर हो सकते हैं किंतु यथार्थ यह है कि स्वच्छंदतावाद के मूल तत्व ही विकसित होकर छायावाद में व्यक्त हुए हैं-
    स्वच्छंदतावाद छायावाद
    खड़ी बोली की स्थापना खड़ी बोली का चरम विकास
    स्वतंत्रता की घोषणा स्वतंत्रता का मूल्य के स्तर पर विकास
    प्रकृति का स्वतंत्र विषय बन जाना प्रकृति का मानवीकरण हुआ उसका नारी से भी सुंदर हो जाना
    राष्ट्रप्रेम की भूमिका का विस्तार राष्ट्रीय सांस्कृतिक प्रेम

    छायावादी रहस्यवाद भी स्वच्छंदतावाद का ही अगला चरण है। स्वच्छंदतावाद ई कवियों ने स्वतंत्रता की मांग की किंतु बाद में जब महसूस किया कि सामाजिक दबाव बेहद कठोर व अनमनीय है तो स्वच्छंदतावाद ही रहस्यवाद में परिणत हो गया।

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