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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या आप सहमत हैं कि सूरत विभाजन आपसी मतभेदों से कहीं अधिक अप्रत्यक्ष रूप से अपनाई गई ब्रिटिश सरकार की रणनीतियों का प्रतिफल था। स्पष्ट करें।

    04 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण-

    • भूमिका
    • सूरत विभाजन की पृष्ठभूमि
    • ब्रिटिश कहां तक उत्तरदायी
    • निष्कर्ष

    1907 के ‘सूरत विभाजन’ की पृष्ठभूमि तो बंगाल विभाजन के बाद शुरू हुए आंदोलन से ही बननी शुरू हो गई थी, किन्तु तात्कालिक कारण नागपुर अधिवेशन में स्वेदशी व बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा के पूर्ण समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किये जाने को लेकर आपसी मतभेद था। इस संबंध में दोनों ही पक्षों ने अपना अड़ियल रूख बनाये रखा तथा किसी भी समझौते की संभावना को नकार दिया जिसकी परिणीति कांग्रेस विभाजन के रूप में देखने को मिलती है।

    किन्तु गहराई से देखे तो यह विभाजन महज़ इन दोनों पक्षों के मध्य के विवादों का ही परिणाम नहीं था। इसके पीछे सरकार की भी सोची समझी रणनीति अपना कार्य कर रही थी। सरकार ने कांग्रेस के प्रारंम्भिक वर्षों से ही उदारवादियों के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाया। किन्तु, बाद के वर्षों में स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलनों के उभरने से कांग्रेस के प्रति सरकार का मोह भंग हो गया तथा उसने ‘अवरोध, सांत्वना एवं दमन’ की रणनीति का पालन करना उचित समझा।

    अपनी रणनीति के प्रथम चरण में सरकार ने उदारवादियों को डराने हेतु अतिवादियों के साधारण दमन की नीति अपनाई। द्वितीय चरण में सरकार ने उदारवादियों की कुछ मांगों पर सहमति जताकर उन्हें आश्वासन दिया कि यदि वो खुद को अतिवादियों से दूर रखें तो देश में संवैधानिक सुधार संभव हो सकते हैं।

    इस प्रकार उदारवादियों को अपने पक्ष में करने के तथा उन्हें अतिवादियों के खिलाफ करने के बाद सरकार के लिये अतिवादियों का दमन करना आसान हो गया।

    दुर्भाग्य से उस दौर में जब राष्ट्र को अपने सभी राष्ट्रवादियों के समन्वित प्रयासों की जरूरत थी, उसी वक्त ये उदारवादी व अतिवादी ब्रिटिश नीति के शिकार हो गए एवं जिसकी परिणिति सूरत विभाजन के रूप में हुई। आगे चलकर ब्रिटिश सरकार ने उदारवादियों की उपेक्षा करने शुरू कर दिया। इस प्रकार आपसी संशय व भिन्नता के अलावा सरकारी नीतियों ने भी कांग्रेस विभाजन में अहम भूमिका निभाई। किंतु आगे चलकर उदारवादियों का ब्रिटिश सरकार से मोहभंग हुआ और 1916 में पुनः एक संगठित और मजबूत कांग्रेस अस्तित्व में आई और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी।

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