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प्रश्न :
मोहन राकेश का आधुनिक नाटकों के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है उनके नाटकों के कथानक के माध्यम से विश्लेषण कीजिये?
02 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हिंदी की नवनाट्य लेखन या नया नाटक परंपरा को एक व्यापक सर्जनात्मक एवं ठोस आंदोलन के रूप में स्थापित करने का श्रेय मोहन राकेश को ही है। सामान्यतः समानता राकेश को प्रसाद की परंपरा का नाटककार कहा जा सकता है क्योंकि उनके नाटकों में ऐतिहासिकता, नारी पात्रों की प्रधानता, भावुकता, काव्यत्मकता मौजूद है इसके अतिरिक्त नवाचार के अवसर पर मोहन राकेश ने इस परंपरा का नया स्वरूप विकसित किया एवं प्रसाद की परंपरा से इतर आधुनिक भाव बोध के नाटक लिखे। उन्होंने आधुनिक संवेदनाएं आधुनिक मानव के द्वन्द को पकड़ना चाहा तथा उनके नाटकों में पात्रों की भीड़ भाड़ नहीं है साथ ही उन्होंने नाटकों के प्रतिरूप को आधे-अधूरे नाटक में तोड़ा है।
आषाढ़ का एक दिन:
- यह नाटक कवि कालिदास के सत्ता एवं सृजनात्मकता के मध्य अंतर संघर्ष का चित्रण करता है। यह केवल कालिदास का द्वंद नहीं बल्कि आधुनिक मानव का भी अंतर्द्वंद है, कालिदास एक ऐसे सृजनशील कलाकार का प्रतीक है जिसकी उस सृजनशीलता उस व्यवस्था द्वारा कुचल दी जाती है।
लहरों के राजहंस:
- यह नाटक बुध के भ्राता नंद पर आधारित है। इसमें भी भौतिकवाद और अध्यात्मवाद का द्वंद है। इन दोनों किनारों के मध्य खड़े मनुष्य को उचित समन्वय से ही सही दिशा मिल सकती है। इसमें सुंदरी प्रवृत्ति पक्ष की प्रतीक है तो बुद्ध निवृत्ति पक्ष के और नंद दोनों के बीच द्वंदग्रस्त मानव चेतना का। प्रतीकों की बहुलता से कहीं कहीं यह नाटक बोझिल भी प्रतीत होता है लेकिन चारित्रिक अंतर्द्वंद, मनोवैज्ञानिक स्तर पर यह नाटक उल्लेखनीय बन पड़ा है।
आधे-अधूरे:
- आधे-अधूरे मोहन राकेश के नाटकों में सर्वाधिक चर्चित नाटक है। यह हिंदी नाटक की प्रचलित धारा से बहुत भिन्न नाटक है। वस्तुतः आधे-अधूरे हिंदी नाटक को वास्तविक साहित्य में समसामयिक युग का प्रतिबिंब बनाने वाला नाटक है।
- आधे-अधूरे मोहन राकेश के प्रथम दोनों नाटकों आषाढ़ का एक दिन और लहरों के राजहंस से भी दो दृष्टि से सर्वथा भिन्न है। एक तो इसमें आज के कठोर यथार्थ की सीधी अभिव्यक्ति है और दूसरे उसके अनुकूल आम आदमी की बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल है। पहले दोनों में ऐतिहासिक आवरण में आधुनिक संवेदना को व्यक्त किया गया था इस नाटक में नाटककार वर्तमान को अतीत के माध्यम से व्यक्त करने का मोह त्यागकर वर्तमान से सीधा साक्षात्कार किया है।
- आधे-अधूरे के दोनों मुख्य पात्र पति महेंद्र नाथ और पत्नी सावित्री अपने विवश हैं और बहुत सी परिस्थितियों ने भी उनका स्वभाव ऐसा बना दिया है कि दोनों ही एक दूसरे को सह नहीं पाते बल्कि एक दूसरे से परस्पर नफरत करते हैं और एक साथ रहने के लिये विवश हैं।
- सावित्री अपने अधूरे को दूर करने के लिये अलग-अलग व्यक्तियों से टकराती है और सब को अधूरा पाती है। दोनों पति पत्नी एक दूसरे के साथ ही जीने को विवश दिखाई देते हैं। उन के पारस्परिक संबंधों का प्रभाव उनके बच्चों पर भी पड़ता है। कुल मिलाकर यह नाटक स्त्री पुरुष संबंध और दांपत्य संबंध के खोखलेपन तथा पारिवारिक विघटन की जीवन स्थितियों को दर्शाने वाला नाटक है। यह नाटक कई स्तरों पर संकेत देता है। यह एक साथ पारिवारिक विघटन मानवीय संबंधों में दरार दांपत्य संबंधों की कटुता आपसी रिश्तो की रिक्तता, यौन विकृतियों एवं द्वंद आदि को समेटता चलता है।
पैरों तले की जमीन:
- एक अधूरा नाटक है। इसमें कोई कथानक नहीं है तथा इसमें मुख्यतः स्थितियों की विसंगतियों से उत्पन्न अंतर्द्वंदों की अभिव्यक्ति की गई है। इसमें नेपथ्य की ध्वनियों के आधार पर रंगमंच को नया अर्थ देने का प्रयोग किया गया है।
अन्य लघु नाटक:
- इन चारों नाटकों के अतिरिक्त मोहन राकेश ने अंडे के छिलके, शायद और धारियाँ नामक लघु नाटक भी लिखे हैं।
मोहन राकेश ने अपने सभी नाटकों में भाव और स्थिति की गहराई में जाने का प्रयत्न अधिक किया है, शिल्प की बनावट का उतना नहीं। फिर भी उनकी कोशिश रही है कि शब्दों के संयोजन से ही दृश्यत्त्व पैदा हो ना कि अन्य उपकरणों से। उन्होंने हिंदी नाटक को प्रसादीय और कृत्रिम भाषा से मुक्त कर युगीन विसंगतियों को मूर्त करने के लिये समर्थ भाषा प्रदान की। मोहन राकेश के नाटक रंगमंच की दृष्टि से अत्यंत सफल एवं प्रयोगशील हैं।
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