उत्तर :
दृष्टिकोण
- एक सामुद्रिक सिद्धांत की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये ।
- भारत के सामुद्रिक सिद्धांत की मुख्य चुनौतियों की चर्चा कीजिये ।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये ।
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परिचय
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की दृढ़ता, भारत-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड के साथ भारत की भागीदारी आदि ऐसे कारक हैं जो भारत को समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरने और अधिक प्रभावी भूमिका निभाने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं।
इसके अलावा शीत युद्ध की समाप्ति के बाद प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्द्धा में आई कमी ने भारत को अपने सीमित समुद्री दृष्टिकोण के साथ हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी की भूमिका में बने रहने की संभावना को बढ़ाया है, हालाँकि भारत की समुद्री नीति के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी हैं।
भारत के समक्ष समुद्री नीति संबंधी चुनौतियाँ:
- हिंद महासागर में साइलो-केंद्रित दृष्टिकोण- भारतीय राजनेताओं ने हिंद महासागर को कई उप-क्षेत्रों में विभाजित किया है।
- भारत, हिंद महासागर में अपने रणनीतिक सहयोगियों के रूप में मॉरीशस और सेशेल्स के साथ एक परंपरागत काल्पनिक रेखा खींचता है।
- उप-क्षेत्रों के संदर्भ में भारत की प्राथमिकता उत्तरी (अरब सागर और बंगाल की खाड़ी) और पूर्वी हिंद महासागर (अंडमान सागर और मलक्का जलडमरूमध्य) में है।
- इसके कारण पश्चिमी हिंद महासागर और अफ्रीका के पूर्वी तट अभी भी भारत की विदेश नीति की समुद्री परिधि में बने हुए हैं।
- सामरिक चोक पॉइंट की कमज़ोर स्थिति- चीन ने अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा पश्चिमी हिंद महासागर में हॉर्न ऑफ अफ्रीका के जिबूती में स्थापित किया था।
- रूस ने भी हाल ही में सूडान, स्वेज़ नहर और बाब-अल-मंदेब (हिंद महासागर में) के मध्य लाल सागर तट पर एक रणनीतिक चोक पॉइंट का अधिग्रहण किया है।
- हालाँकि एंटी-पायरेसी मिशन से परे इस क्षेत्र में भारत की उपस्थिति और अफ्रीकी तट के साथ समुद्री जुड़ाव काफी हद तक इसकी विशेषता रही है।
- चीनी मुखरता का बढ़ना- समुद्री रेशम मार्ग के माध्यम से चीन महासागर के पार समुद्री तटों (Littorals) और द्वीपों के साथ संलग्नता बनाए हुए है।
- चीन, हिंद महासागर में पहुँच बढ़ाने के लिये श्रीलंका से कोमोरोस तक अपनी कूटनीतिक, राजनीतिक और सैन्य क्षमता में लगातार सुधार कर रहा है।
- महाद्वीपीय पूर्वाग्रह- भारतीय नौसेना को लगभग 14% रक्षा बजट आवंटित किया जाना स्पष्ट रूप से रक्षा प्रतिष्ठानों की प्राथमिकता को इंगित करता है। साथ ही यह संकेत भी देता है कि समुद्री मुद्दों की ओर भारत ने अपना ध्यान भली-भाँति केंद्रित नहीं किया है।
निष्कर्ष
हालाँकि यह कदम भारत के हालिया महाद्वीपीय मुद्दों जैसे डोकलाम और लद्दाख आदि को सुलझाने के लिये नहीं है, यहाँ समुद्री भूगोल के महत्त्व और भारत के रणनीतिक हितों तथा इस क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा से इसकी संलग्नता को समझने की आवश्यकता है।