वन हेल्थ का सिद्धांत कोविड-19 महामारी के संदर्भ में अधिक प्रासंगिक हो गया है। टिप्पणी कीजिये।
उत्तर :
दृष्टिकोण
- एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को परिभाषित करके उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को लागू करने की आवश्यकता और कदमों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
आधुनिक पैथोलॉजी के जनक रुडोल्फ विर्को (Rudolf Virchow) ने वर्ष 1856 में इस बात पर ज़ोर दिया था कि मनुष्य एवं पशुओं की चिकित्सा में कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नही है। इस दृष्टिकोण को वन हेल्थ कहा जाता है। इसके तहत पर्यावरण, पशु तथा मानव स्वास्थ्य के अंतर्संबंधों को शामिल किया जाता है। इसके अंतर्गत पर्यावरण, पशु तथा मानव स्वास्थ्य परिस्थितिकी तंत्र से उत्पन्न खतरों को संबोधित करने के लिये बहुआयामी उपाय शामिल किये जाते हैं।
वन हेल्थ मॉडल की आवश्यकता
- वैज्ञानिकों के अनुसार, वन्यजीवों में लगभग 1.7 मिलियन से अधिक वायरस पाए जाते हैं, जिनमें से अधिकतर के ज़ूनोटिक होने की संभावना है।
- इसका तात्पर्य है कि समय रहते अगर इन वायरस का पता नहीं चलता है तो भारत को आने वाले समय में कई महामारियों का सामना करना पड़ सकता है।
- रोगों की एक अन्य श्रेणी "एंथ्रोपोज़ूनोटिक" है, जिसमें मनुष्यों से जानवरों में संक्रमण फैलता है।
- हाल के वर्षों में वायरल के प्रकोपों जैसे कि निपाह वायरस, इबोला, सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS), मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome-MERS) और एवियन इन्फ्लुएंजा का संक्रमण यह अध्ययन करने पर मज़बूर करता है कि हम पर्यावरण, पशु एवं मानव स्वास्थ्य के अंतर्संबंधों की जाॅंच करें और समझें।
वन हेल्थ दृष्टिकोण को लागू करने हेतु कदम
- रोगों की निगरानी को समेकित करना: मौजूदा पशु स्वास्थ्य और रोग निगरानी प्रणाली, जैसे-पशु उत्पादकता और स्वास्थ्य के लिये सूचना नेटवर्क एवं राष्ट्रीय पशु रोग रिपोर्टिंग प्रणाली को समेकित करने की आवश्यकता है।
- विकासशील दिशा-निर्देश: अनौपचारिक बाज़ार और स्लॉटरहाउस ऑपरेशन (जैसे, निरीक्षण, रोग प्रसार आकलन) के लिये सर्वोत्तम दिशा-निर्देशों का विकास करना और ग्रामीण स्तर पर प्रत्येक चरण में वन हेल्थ के संचालन के लिये तंत्र बनाना।
- समग्र सहयोग: वन हेल्थ के अलग अलग आयामों को संबोधित करना, इसे लेकर मंत्रालयों से लेकर स्थानीय स्तर पर भूमिका को रेखांकित कर आपस में सहयोग करना, इससे जुड़ी सूचनाओं को प्रत्येक स्तर पर साझा करना इत्यादि पहल की आवश्यकता है।
- वन हेल्थ के लिये राजनीतिक, वित्तीय और प्रशासनिक जवाबदेही के संदर्भ में नवाचार, अनुकूलन और लचीलेपन को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- संस्थागत तंत्र की स्थापना: भारत में पहले से ही कई प्रयास चल रहे हैं, जो कि ज़ूनोटिक रोगों में अनुसंधान के डेटाबेस के लिये प्रोटोकॉल विकसित करने से जुड़े हैं। हालाँकि, कोई एकल एजेंसी या ढाॅंचा नहीं है जो वन हेल्थ एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिये अंब्रेला कार्यक्रम की तरह कार्य कर सके। अतः वन हेल्थ अवधारणा को लागू करने के लिये एक उचित संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
भारत कोविड-19 जैसी पशुओं से फैलने वाली खतरनाक महामारी की दूसरी लहर से लड़ रहा है। इसे देखते हुए भारत को वन हेल्थ सिद्धांत के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिये तथा इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास हेतु निवेश करना चाहिये।