फ्राँस की क्रांति वैचारिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त होते समाज के असंतोष की अभिव्यक्ति मात्र थी। विश्लेषण कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- फ्राँस की क्रांति का संक्षिप्त परिचय लिखिये ।
- फ्राँस की क्रांति के कारणों में वैचारिक एवं आर्थिक कारणों को स्पष्ट करें।
- क्रांति के प्रभावों के साथ उचित निष्कर्ष लिखिये।
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किसी भी देश में होने वाली क्रांति के बीज उस देश की जनता की स्थिति और मनोदशा में निहित रहता है । असंतोष को जन्म देने वाली भौतिक परिस्थितियाँ क्रांति हेतु आवश्यक पृष्ठभूमि तैयार करती हैं तथा बौद्धिक चेतना बहुजन को उन परिस्थितियों से मुक्ति पाने के लिए प्रेरित करती हैं।
फ्राँसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि लिखने में कई कारण उत्तरदायी रहे, जैसे –
- राजनीतिक रूप से निरंकुश राजतंत्र की सत्ता, जिसमे लुई 14वें ने स्पष्ट कहा की ‘मैं ही राज्य हूँ’ अर्थात् राजा स्वयं में ही राज्य था।
- समाज मुख्यतः दो वर्गों में बंटा था-अधिकार पूर्ण तथा अधिकारविहीन वर्ग या शोषक और शोषित वर्ग। किसानों के विषय में कहा जाता था कि ‘वे इतना दुखी हो चुके थे कि स्वयं ही क्रांतिकारी तत्त्व के रूप में परिणित हो चुके थे।‘
- ऐसा माना जाता है कि क्रांतियाँ आर्थिक दृष्टि से दबे हुए एवं विखंडित समाजों में ही घटित होती हैं। ऐसे में फ्राँस, यूरोप में जनसंख्या, संस्कृति, कृषि, औद्योगिक उत्पादन एवं विदेश व्यापार की दृष्टि से अग्रगण्य राष्ट्र होने के बावजूद 1789 में क्रांति का शिकार हुआ, जो अपने आप में असाधारण बात नहीं थी।
- इस काल में वाणिज्य व्यापार में हुई वृद्धि का लाभ सर्वाधिक माध्यम वर्ग ने उठाया,संपत्ति में वृद्धि के साथ-साथ उनके जीवन स्तर में भी अनुकूल परिवर्तन आये।इस वर्ग के कई लोगों के पास इतना धन जमा हो गया था की ये कुलीनों को धन उधार देने लगे थे ,परन्तु जिस तीव्र गति से सरकार दिवालियेपन की ओर बढ़ रही थी इन्हें डर था कि इनका कर्ज़ डूब न जाये। अतः यह वर्ग तत्कालीन व्यवस्था में परिवर्तन चाहता था इस वर्ग के असंतोष का प्रमुख कारण व्यापार-वाणिज्य में आने वाली रुकावटें थीं,जिनकी वजह से उन्हें काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था।
- किसान भी मौजूदा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन चाहते थे क्योंकि वे इतनी पैदावार नहीं कर पाते थे कि परिवार का भरण पोषण और सामंती करों को चुकाकर बाजार में बेचने के लिये अन्न भी बचा सकें।
- उपभोक्ता कीमतों में 65% की वृद्धि के वावजूद पारिश्रमिक कीमतों में केवल 22% की ही वृद्धि हुई । खाद्यानों की बढ़ती हुई कीमतों में वृद्धि का बड़ा लाभ कुलीनों और पादरियों को भी हो रहा था जबकि आबादी के दूसरे तबके के लोग लाभान्वित नहीं हो रहे थे।
- बौद्धिक रूप से देखें तो यह युग वाल्टेयर, रूसो एवं कंडरसेट जैसे बुद्धिजीवियों का था, जो तत्कालीन संस्थाओं की आलोचना करते थे और व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन चाहते थे। सामाजिक वर्ग-वैमनस्यता के तहत पादरी, कुलीन और सर्वसाधारण तीन वर्ग में बँटे समाज में बुर्जुआ के प्रति कुलीनों के रवैये ने प्राकृतिक अधिकार व अवसर की समानता आदि पर बल देने को प्रोत्साहित किया।
- निरंकुश राजतंत्र की कमज़ोरी भी एक प्रमुख वजह थी, जिसके तहत शासन व्यवस्था के अंतर्गत अव्यवस्था, अयोग्यता व कार्यक्षेत्र की अस्पष्टता इत्यादि विसंगतियाँ विद्यमान थीं जिनका संबंधित वर्गों पर नकारात्मक असर पड़ता था।
- सुविधा संपन्न वर्ग किसी भी प्रकार का कर देने के लिये तैयार नहीं था, फलतः राज्य का खर्च चलाना मुश्किल हो गया और जब राजा लुई सोलहवें ने 175 वर्षों बाद नए कर लगाने के लिये अधिकृत संस्था स्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाया तो घटनाओं की ऐसी श्रृंखला का निर्माण हुआ, जिसने क्रांति को अवश्यंभावी बना दिया।
- इस क्रांति ने न केवल सामंती व्यवस्था पर कुठाराघात लोकतंत्र के सिद्धांतों का प्रतिपादन यथा- स्वतंत्रता,समानता एवं बंधुता, धर्मनिरपेक्षवाद, राष्ट्रवादी चेतना, जनसंप्रभुता, कल्याणकारी राज्य की धारणा का विकास किया बल्कि समाजवादी आंदोलनों के लिये प्रेरणास्रोत का कार्य किया।
- इस क्रांति के न केवल फ्राँस बल्कि यूरोप एवं सम्पूर्ण विश्व पर दूरगामी परिणाम हुए, जिसने भारत सहित अनेक राष्ट्रों को औपनिवेशिक शासन से आजादी दिलाने एवं वर्तमान वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में रचनात्मक भूमिका का निर्वहन किया है, जो आज भी निरंतर जारी है। अतः "फ्राँस की क्रांति" वैचारिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त होते समाज के असंतोष की अभिव्यक्ति मात्र न होकर व्यापक उद्देश्य एवं प्रभावों को आत्मसात किये हुए थी।