पश्चिमी विक्षोभ की व्याख्या करते हुए भारतीय मौसम प्रणालियों पर उसके प्रभाव का वर्णन कीजिये।
उत्तर :
दृष्टिकोण
- पश्चिमी विक्षोभ को परिभाषित करके उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारतीय मौसम प्रणालियों पर पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव की चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय
‘पश्चिमी विक्षोभ’ एक मौसमी परिघटना है जो पछुआ पवनों के ऊपरी वायु परिसंरचरण क्षेत्र में विकसित एक निम्न वायुदाब का क्षेत्र या गर्त है, जो हवा के तापमान, दाब एवं वायु संचार प्रणाली में परिवर्तन लाकर वर्षण की दशा उत्पन्न करता है।
ये हवाएँ राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में तीव्र गति से बहती हैं। ये उप-हिमालयी पट्टी के आस-पास पूर्व की ओर मुड़ जाती हैं और सीधे अरुणाचल प्रदेश तक पहुँच जाती हैं। इससे गंगा के मैदानी इलाकों में हल्की वर्षा और हिमालयी पट्टी में हिमवर्षा होती है।
भारतीय मौसम प्रणालियों पर पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव:
- पश्चिमी विक्षोभ भारत की कुल वार्षिक वर्षा के 5-10% हेतु उत्तरदायी होता है। यह उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों में होने वाली वर्षा और प्री-मानसून सीजन की बारिश का कारण है।
- पश्चिमी विक्षोभ आमतौर पर बादल वाली रात, उच्च तापमान और असामान्य बारिश से जुड़ा होता है।
- गेहूँ सबसे महत्त्वपूर्ण फसलों में से एक है, जो भारत की खाद्य सुरक्षा को पूरा करने में मदद करती है। गेहूँ और अन्य रबी फसलों की वृद्धि में पश्चिमी विक्षोभ से होने वाली वर्षा का बहुत महत्त्व है।
- हालाँकि मज़बूत पश्चिमी विक्षोभ से अत्यधिक वर्षा होती है जो फसल क्षति, भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन का कारण बन सकता है।
- दूसरी ओर कमज़ोर पश्चिमी विक्षोभ से उत्तर भारत में फसल पैदावार में कमी और पानी से संबंधित समस्याएँ देखने को मिलती है।
- ये हिमालय के ऊपरी क्षेत्र में हिमपात हेतु उत्तरदायी हैं जो भारत के सदाबहार नदियों की सततता एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
- यह शीतकाल में वर्षा कर भौम जल स्तर को ऊपर उठाने एवं जल संचयन को बढ़ावा देता है।
- यह प्रवासी पक्षियों के लिये अनुकूल दशा प्रदान करता है।
- यह संपूर्ण पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की उत्पादकता व पोषण स्तर में वृद्धि लाता है।
निष्कर्ष
पश्चिमी विक्षोभ को आमतौर पर एक अनुकूल लाभकारी घटना के रूप में देखा जाता है। हालाँकि जलवायु परिवर्तन के चलते बादल फटने और ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाएँ उत्पन्न होती हैं।