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प्रश्न :
अंग्रेजों द्वारा किये गए समाज सुधार का मुख्य उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों को दूर करना था। आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
10 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- सर्वप्रथम भारत में 19वीं सदी के आरंभ की सामाजिक स्थितियों का उल्लेख करें।
- अंग्रेजों द्वारा किये गए विभिन्न सुधारों का उल्लेख करें।
- इन कार्यों के पीछे उनके उद्देश्य का वर्णन करते हुए निष्कर्ष लिखें।
19वीं सदी की शुरुआत में भारत में सामाजिक जीवन लगभग स्थिर था तथा अतीत पर ज़्यादा निर्भर करता था। लोग धर्म, क्षेत्र, भाषा तथा जाति के आधार पर विभाजित थे। स्त्रियों की स्थिति दयनीय थी तथा उनके ऊपर कई बंधन आरोपित किये गए थे। समाज के उच्च वर्गों का जीवन एवं संस्कृति समाज के निम्न वर्गों से पूर्णतः भिन्न थी।
औपनिवेशिक सरकार ने समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने तथा विशेषकर महिलाओं के कल्याण के लिये कई कदम उठाए जो निम्नप्रकार से हैं :
- राजा राममोहन राय के प्रयासों से विलियम बेंटिंक ने 1829 में कानून पारित कर सती प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया।
- कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा राजपूतों तथा बंगाली परिवारों में प्रचलित थी। प्रबुद्ध भारतीय तथा अंग्रेजों ने एकमत से इस प्रथा की आलोचना की। सरकार ने कानून द्वारा इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया तथा इसे हत्या के समतुल्य करार दिया।
- समाज में नारी के उत्थान के लिये सती प्रथा की समाप्ति के साथ-साथ विधवा पुनर्विवाह को भी प्रचारित किये जाने की आवश्यकता थी। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने इसके लिये अथक प्रयास किया तथा उनके प्रयासों के फलस्वरूप 1856 ई. में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित किया गया।
- 1872 ई. में नेटिव मैरिज अधिनियम पारित करके 14 वर्ष से कम उम्र की लड़की तथा 18 वर्ष से कम उम्र के लड़के का विवाह निषिद्ध कर दिया।
- नारी शिक्षा के क्षेत्र में जेम्स बेथुन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा महिलाओं के लिये कई स्कूलों की स्थापना की।
- यद्यपि भारत में दासता ग्रीक रोमन या अमेरिकी नीग्रो समाजों के समतुल्य की नहीं थी बल्कि यह बंधुआ मजदूर के प्रकार की थी।
- चूँकि ब्रिटिश साम्राज्य में 1833 ई- में दास प्रथा समाप्त कर दी गई थी, अतः भारत में भी 1843 ई. में इसे समाप्त कर दिया गया।
अंग्रेजों के बीच कई प्रबुद्ध व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय समाज की बुराइयों को दूर करने के लिये गंभीर प्रयास किये। वे नारी तथा निम्न वर्ग की दुर्दशा से व्यथित थे उनके सुधारों में मानवीय दृष्टिकोण था। परंतु बाद के वर्षों में ईसाई मिशनरियों तथा औपनिवेशिक मानसिकता के व्यक्तियों ने भारतीय समाज की अनावश्यक बुराई शुरू कर दी। उनका मूल उद्देश्य ईसाई धर्म का प्रचार करना था।
इन सुधारों के पीछे चाहे जो भी कारण रहे हों ये सुधार भारतीय समाज के लिये अतिआवश्यक थे तथा इन सुधारों ने भारतीय समाज में आंतरिक सुधारों की एक शृंखला की शुरुआत कर दी। अंग्रेजों द्वारा शुरू किये सुधारों के फलस्वरूप समाज में रोष भी उत्पन्न हुआ क्योंकि उन्होंने इसे अपने रीति-रिवाजों में बाह्य हस्तक्षेप समझा तथा यह 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारणों में से एक था।
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