जलवायु परिवर्तन वार्ताओं और सामूहिक वैश्विक कार्रवाई के संदर्भ में विकसित और विकासशील दुनिया के मध्य व्याप्त मतभेदों पर चर्चा कीजिये।
24 Mar, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण
हल करने का दृष्टिकोण:
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जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की चौथी आकलन रिपोर्ट (एआर 4) के अनुसार, दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा घोषित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस नीचे ले जाने के लिये अपर्याप्त है।
इस विफलता का मुख्य कारण विभिन्न मुद्दों पर विकसित और विकासशील देशों के बीच आम सहमति न बन पाना है।
विकसित और विकासशील देशों के बीच संघर्ष के मुद्दे:
सीबीडीआर पर संघर्ष: विकसित देशों का कहना है कि आर्थिक विकास भारत और चीन जैसे विकासशील देशों में देखा जा रहा है। इस प्रकार सीबीडीआर का सिद्धांत पुराना हो गया है।
दूसरी ओर विकासशील देशों का तर्क है कि हालाँकि आर्थिक विकास हुआ है फिर भी वैश्विक असमानता काफी अधिक है। इसलिये CBDR विकासशील देशों के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
जलवायु परिवर्तन के शमन हेतु वित्तपोषण पर संघर्ष: कोपेनहेगन प्रतिज्ञा (2009) के अनुसार, जलवायु कार्रवाई हेतु वर्ष 2020 तक विकसित देशों द्वारा प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर की राशि उपलब्ध कराई जानी थी। हालाँकि वर्ष 2016 तक जुटाई गई कुल राशि केवल $ 37.5 बिलियन थी।
पेरिस डील के अनुच्छेद 6 पर संघर्ष: पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6 जो कि कार्बन ट्रेडिंग से संबंधित है, अब तक अंतिम रूप नहीं ले पाया है।
विकसित देश इसे अपनाने पर ज़ोर देते हैं क्योंकि यह उन देशों पर कोई रोक नहीं लगाता है जो घरेलू कार्रवाई के माध्यम से उत्सर्जन में कमी लाने का प्रयास करते हैं।
हालाँकि विकासशील देशों को डर है कि इस अनुच्छेद को अपनाने से विकसित देश, विकासशील देशों को जलवायु शमन हेतु उन्नत तकनीक उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ सकते हैं।
निष्कर्ष
चूँकि पृथ्वी मानव सभ्यता का एकमात्र घर है, अत: जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना केवल सामूहिक वैश्विक कार्रवाई के माध्यम से किया जा सकता है, जिसके प्रति सभी देश प्रतिबद्ध हों।