औद्योगीकरण के पूंजीवादी और समाजवादी पैटर्न का विकास किस कारण से हुआ? विवेचना कीजिये।
22 Mar, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण:
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पूंजीवाद को एक ऐसी आर्थिक प्रणाली के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें उत्पादन, व्यापार और उद्योग के साधनों पर स्वामित्व एवं नियंत्रण निजी व्यक्तियों या निगमों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा इसे मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है।
समाजवादी अर्थव्यवस्था को एक ऐसी अर्थव्यवस्था के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें संसाधनों का स्वामित्व, प्रबंधन और विनियमन राज्य द्वारा किया जाता है। इस तरह की अर्थव्यवस्था का आशय यह है कि संसाधनों पर सभी लोगों का समान अधिकार है, अत: प्रत्येक व्यक्ति को उत्पादन में हिस्सा मिलना चाहिये।
औद्योगीकरण का पूंजीवादी पैटर्न:
पूंजीवाद का उदय दुनिया के इतिहास में औद्योगीकरण के साथ हुआ, साथ ही नए आर्थिक संस्थान (जैसे- बैंकिंग, बीमा) और दुनिया को बदलने वाली नई तकनीक भी आई।
सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप में पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप, विज्ञान, दर्शन और व्यापार के तरीके उपयोगितावादी दृष्टिकोण से लागू किये जा रहे थे।
यूरोपीय देशों ने नए बाज़ारों की खोज की और औद्योगिक क्रांति (जिससे भारी मशीनरी का प्रयोग होने लगा एवं श्रम आधारित अर्थव्यवस्था कमज़ोर हुई) का नेतृत्व किया। औद्योगिक क्रांति के दौरान बड़े पैमाने पर उत्पादन किया गया।
हालाँकि उत्पादन के इस पूंजीवादी तरीके के कारण दुनिया भर में अलग-अलग वर्गों के बीच असमानता उत्पन्न हुई और साम्राज्यवादी व्यवस्था का विस्तार हुआ।
इसके कारण कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स ने पूंजीवाद का विरोध शुरू कर दिया। हालाँकि वर्ष 1919 में रूसी क्रांति और तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) की स्थापना के बाद समाजवाद अस्तित्व में आया।
औद्योगीकरण का समाजवादी पैटर्न
औद्योगीकरण का समाजवादी पैटर्न सहकारी उद्यम और सामुदायिक उद्यम के विभिन्न रूपों पर ज़ोर देता है, जिसमें जनता समग्र रूप से लाभान्वित होती है।
समाजवादी पैटर्न के कारण ट्रेड यूनियनों और लेबर सिंडिकेट की सहायता से या उनकी सहायता के बिना भी राजनीतिक दल मज़बूत हुए।
राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था के साथ सरकारें मज़बूत हुईं। इन सरकारों ने जनकल्याण को लक्षित करते हुए अर्थव्यवस्था को नियोजित किया। इस तरह की परिपक्व अर्थव्यवस्था को नियोजित अर्थव्यवस्था कहा जाता था।
हालाँकि अधिकांश समाजवादियों को डर था कि इस तरह की अर्थव्यवस्था में शोषण के समाधान के बजाय राज्य प्रायोजित शोषण और अधिक बढ़ सकता है, साथ ही राज्य का अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
पूंजीवाद पूंजी को बढ़ावा देता है लेकिन इससे बुर्जुआ और सर्वहारा वर्ग के बीच खाई बढ़ती जाती है। समाजवाद अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटता है लेकिन यह लोगों की कड़ी मेहनत और प्रतिस्पर्धा की भावना को कम करता है, जिसके कारण देश का सकल घरेलू उत्पाद नीचे गिर सकता है और प्रति व्यक्ति आय कम हो सकती है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, अतः यह कहना बहुत मुश्किल है कि कौन सा तरीका दूसरे से बेहतर को सकता है।