सांस्कृतिक सापेक्षतावाद और इससे जुड़ी समस्याओं की व्याख्या कीजिये।
11 Mar, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण:
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सांस्कृतिक सापेक्षतावाद वह विचार है, जिसके तहत किसी संस्कृति की मान्यताओं, मूल्यों और प्रथाओं को उसी संस्कृति के आधार पर समझा जाना चाहिये, न कि उसे अपनी संस्कृति की मान्यताओं, मूल्यों और प्रथाओं जैसे मानदंड पर परख कर उसके खिलाफ निर्णय लिया जाना चाहिये। सांस्कृतिक सापेक्षतावाद के परिप्रेक्ष्य में यह विचार उत्पन्न होता है कि नैतिकता, नियम, राजनीति आदि के मामले में कोई भी संस्कृति दूसरी संस्कृति से श्रेष्ठ नहीं है।
सांस्कृतिक सापेक्षवाद का महत्त्व
सांस्कृतिक मानदंड और मूल्य एक विशिष्ट सामाजिक संदर्भ में ही अपना विशेष अर्थ प्राप्त करते हैं।
यह इस विचार पर भी आधारित है कि अच्छाई या बुराई का कोई सर्वोत्तम मानक नहीं है। इसलिये क्या सही है और क्या गलत, इसका निर्णय प्रत्येक समाज द्वारा स्वयं लिया जा सकता है।
सांस्कृतिक सापेक्षवाद की अवधारणा का अर्थ यह भी है कि नैतिकता पर कोई भी राय व्यक्ति के विशेष सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में होती है।
यदि सांस्कृतिक सापेक्षवाद को समग्रता में समझना चाहें तो यह किसी संस्कृति के मूल्यों एवं मान्यताओं की, किसी अन्य संस्कृति जिसके लिये ये मूल्य एवं मान्यताएँ सर्वथा अपरिचित हैं, समझ को बढ़ाने में मदद करती हैं।
दुनिया में सांस्कृतिक विविधता संबंधी जानकारी बढ़ने से नैतिकता के सार्वभौमिक विचार के प्रति संदेह पैदा हुआ है।
इससे सांस्कृतिक सापेक्षतावादियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि नैतिकता का कोई भी मानक सर्वोत्तम या पूर्ण नहीं है बल्कि यह अलग-अलग संस्कृतियों पर निर्भर करता है। किसी भी संस्कृति के मूल्यों या मान्यताओं को किसी अन्य संस्कृति के मानकों पर नहीं परखा जा सकता है।
सांस्कृतिक सापेक्षतावाद कई ऐसे निहितार्थ को शामिल करता है जो अस्वीकार्य किये जाने योग्य है। उदाहरण के लिये:
निष्कर्ष
सांस्कृतिक सापेक्षतावाद नैतिकता की चुनौती को सही या गलत के सार्वभौमिक मानकों के रूप में प्रस्तुत नहीं करता है क्योंकि इसके अनुसार, नैतिक निर्णय व्यक्ति या समाज विशेष के सापेक्ष होते हैं और सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं हो सकते हैं।