वैश्वीकरण विश्व के लिये वरदान है या अभिशाप, इस मुद्दे पर व्यापक रूप से चर्चा हुई है। इस संदर्भ में वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न नैतिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
02 Mar, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण:
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वैश्वीकरण राष्ट्रीय सीमाओं के पार और विभिन्न संस्कृतियों में उत्पादों, प्रौद्योगिकी, सूचना एवं नौकरियों के प्रसार की प्रक्रिया है। इसने दुनिया को अलग-अलग समुदायों के समुच्चय के स्थान पर सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में अधिक एकीकृत कर दिया है।
वैश्वीकरण विविध सांस्कृतिक और कानूनी ढाँचों से संचालित होता है, अत: इसने श्रम मानकों, विपणन प्रथाओं, पर्यावरण, भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के क्षेत्र में नैतिक दुविधाओं को भी जन्म दिया है।
वैश्वीकरण से संबद्ध नैतिक चुनौतियाँ
बढ़ती असमानता: वैश्वीकरण के संबंध में सामान्य शिकायत यह है कि इसने गरीबों को और अधिक गरीब एवं अमीरों को अधिक अमीर बना दिया है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की सबसे अमीर 20% आबादी विश्व के 86% संसाधनों का उपभोग करती है, जबकि बाकी 80% आबादी सिर्फ 14% का उपभोग करती है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भ्रष्टाचार: बहुराष्ट्रीय निगमों (बहुराष्ट्रीय कंपनियों) पर क्रोनी कैपिटलिज़्म, सामाजिक अन्याय, अनुचित कार्य परिस्थितियों के साथ-साथ पर्यावरण की चिंता का अभाव, प्राकृतिक संसाधनों के कुप्रबंधन और पारिस्थितिक क्षति का आरोप लगाया जाता है।
प्रवासन की मजबूरी: वैश्वीकरण ने आर्थिक गतिविधियों के केंद्रीकरण को बढ़ावा दिया है जिसके कारण पर्यावरणीय ह्रास, प्रदूषण, जैव विविधता और निवास स्थान को हानि पहुँची है।
अत: पर्यावरणीय समस्याओं के कारण शरणार्थियों एवं आर्थिक शरणार्थियों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
इससे कई विकासशील और सबसे कम विकसित देशों में मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ है।
पारिवारिक मूल्यों की हानि: वैश्वीकरण ने उच्च उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया है जिसके कारण परिवारों का विघटन, एकल परिवारों में वृद्धि और वृद्ध माता-पिता से अलगाव बढ़ गया है।
निष्कर्ष
हालाँकि वैश्वीकरण की प्रक्रिया कई सदियों पुरानी है (जैसा कि रेशम मार्ग से परिलक्षित होता है), यह आधुनिक युग की घटना है। इसने निश्चित रूप से विकसित और विकासशील दुनिया के बीच की खाई को पाटा है, लेकिन यह कई वैश्विक मुद्दों जैसे- महामारी, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद आदि का भी कारण है।
इस प्रकार वैश्वीकरण के अधिक टिकाऊ मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है, जैसे कि वैश्वीकरण का भारतीय संस्करण- वसुधैव कुटुम्बकम।