क्या सूफी और भक्ति संत वास्तव में मध्यकालीन भारत में सामाजिक व धार्मिक क्रांति ला सके? चर्चा करें।
16 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति
उत्तर की रूपरेखा :
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भारतीय इतिहास में मध्यकालीन युग को प्रारंभ से ही संघर्षों का युग कहा जा सकता है। इस्लाम के आगमन के बाद देश की जनता तथा शासकों के लिये अनिवार्य था कि परस्पर सहयोग तथा समन्वय की भावना को महत्त्व दिया जाए। इसी विचारधारा के परिणाम स्वरूप सूफी तथा भक्ति आंदोलनों का उदय हुआ जिन्होंने कुप्रथाओं, आडंबरों तथा पृथकतावादी तत्वों का विरोध करते हुए पारस्परिक सहयोग का उपदेश दिया।
संतों तथा सूफियों के प्रयासों से जो भक्ति एवं सूफी आंदोलन आरंभ हुए उनसे सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में एक नवीन शक्ति एवं गतिशीलता का संचार हुआ। इन आंदोलनों के प्रमख प्रभाव निम्नवत हैं-
उपर्युक्त विशेषताओं के बावजूद ये संत हिंदुओं एवं मुसलमानों के उच्च वर्गों को अपने साथ नहीं जोड़ पाए। इन संतों का दृष्टिकोण वस्तुतः मानवतावादी था। उन्होंने मानवीय भावनाओं के उदान्ततम पक्षों पर बल दिया। वे जाति प्रथा को खास कमज़ोर नहीं कर पाये फिर भी उन्होंने उसके दंश को कम अवश्य किया। समाज में महिलाओं के प्रति हो रहे भेदभाव को समाप्त करने के लिये विशेष प्रयासों का भी अभाव देखने को मिलता है किंतु इन इनसब के बावज़ूद मध्यकाल की संघर्षशील परिस्थितियों में इन सूफियों तथा संतों ने एक ऐसा सामान्य मंच तैयार कर दिया था जिस पर विभिन्न संप्रदायों और धर्मों के लोग एक हो सकते थे और एक-दूसरे को समझ सकते थे।