न्यायिक विधायन, भारतीय संविधान में परिकल्पित शक्ति पृथक्करण सिद्धांत का प्रतिपक्षी है। इस संदर्भ में कार्यपालक अधिकरणों को दिशा-निर्देश देने की प्रार्थना करने संबंधी, बड़ी संख्या में दायर होने वाली, लोकहित याचिकाओं का न्याय औचित्य सिद्ध कीजिये। (250 शब्द) (UPSC GS-2 Mains 2020)
22 Feb, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत सरकार के कार्यों को तीन अंगों यानी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में विभाजित करता है। यह सिद्धांत संविधान की आधारभूत संरचनाओं में शामिल है। विभिन्न संवैधानिक प्रावधान जैसे अनुच्छेद 50, 121 और 211 आदि इस सिद्धांत की भावना को मूर्तरूप देते हैं।
न्यायिक विधायन की घटना में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, विशेष रूप से कार्यकारी अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी करने हेतु बड़ी संख्या में जनहित याचिकाएँ दायर की जाती हैं। जनहित याचिकाओं की बढ़ती आवश्यकता के कई कारण हैं।
जनहित याचिकाओं की आवश्यकता
कर्तव्य का निर्वाह: विधायिका का कर्तव्य है कि वह कानून बनाए, जबकि कार्यपालिका का कर्तव्य इसे उचित तरीके से लागू करने का है। हालाँकि कई बार विधायिका, बदलते समय के अनुरूप आवश्यक कानून बनाने में विफल रहती है और कार्यपालिका अपने प्रशासनिक कार्यों को करने में विफल रह जाती है।
विश्वास का कम होना: इससे संवैधानिक मूल्यों और लोकतंत्र में नागरिकों का विश्वास कम होता है।
रिक्तता को भरने की आवश्यकता: राज्य के विभिन्न उपकरणों और कार्यकर्त्ताओं की जवाबदेही सुनिश्चित करने तथा गरीबों और हाशिये पर रह रहे लोगों और कमज़ोरों की मदद करने के उद्देश्य से लोग जनहित कानून या जनहित याचिकाओं का सहारा लेते हैं।
न्याय तक सीधी पहुँच: एशियाड वर्कर्स मामले में न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती ने कहा कि न्यूनतम वेतन से कम वेतन पाने वाला कोई भी व्यक्ति श्रम आयुक्त और निचली अदालतों की प्रक्रिया से गुज़रे बिना सीधे उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकता है।
जनहित याचिका के लाभ
सामाजिक परिवर्तन का साधन: सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, जनहित याचिकाओं का उद्देश्य इस देश के आम लोगों को कानूनी समाधान प्राप्त करने के लिये न्यायालयों तक पहुँच प्रदान करना है। यह सामाजिक परिवर्तन और विधि के शासन को बनाए रखने एवं विधि तथा न्याय के बीच संतुलन बनाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
समावेशन: पीआईएल समाज के न्यायसंगत और कमज़ोर वर्गों तक न्याय पहुँचाने का एक तरीका है।
संस्थानों की निगरानी: यह जेलों, आश्रमों, संरक्षण गृहों आदि जैसे राज्य संस्थानों की न्यायिक निगरानी में मदद करता है। यह मानव अधिकारों को उन लोगों तक पहुँचाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जिन्हें अधिकारों से वंचित किया गया है। जैसे- अपमानित बंधुआ मज़दूर, ट्रायल के दौरान प्रताड़ित किये जाने वाले कैदी और महिला कैदी, संरक्षण गृहों में अपमानित महिलाओं, शोषित बच्चों, भिखारियों तथा कई अन्य लोगों से जुड़े मुद्दे।
निष्कर्ष
जनहित याचिकाओं के कई आश्चर्यजनक परिणाम देखे गए हैं जो तीन दशक पहले अकल्पनीय थे। हालाँकि न्यायायिक सक्रियता से बचने के लिये जनहित याचिका के मामले में न्यायपालिका को सतर्क रहना चाहिये ताकि शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन न हो।