नगरीय अर्थतंत्र के सहायक श्रमिक बल के रूप में मूक रह कर सेवा प्रदान करते हुए, प्रवासी श्रमिक सदैव हमारे समाज के सामाजिक-आर्थिक हाशिये पर रहे हैं। महामारी ने उन्हें राष्ट्रीय केंद्र बिंदु पर ला दिया है।
देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा से, प्रवासी श्रमिकों की एक बड़ी संख्या ने अपने रोज़गार स्थानों से अपने मूल गाँवों में लौटने का निर्णय लिया। आवागमन की अनुपलब्धता ने अपनी समस्याएँ खड़ी कर दीं। इसके अलावा अपने परिवारों की भुखमरी और असुविधा का डर भी उन्हें सता रहा था।
इनके चलते प्रवासी श्रमिकों ने अपने गाँवों को लौटने के लिये मजदूरी और आवागमन की सुविधाएँ मांगी। उनकी मानसिक व्यथा बहु कारणों से और भी बढ़ गई जैसे आजीविका का आकस्मिक नुक्सान, भोजन के अभाव की संभावना और समय पर घर नहीं पहुँच पाने से रवि की फसल की कटाई में मदद नहीं करने की असमर्थता। उनकी आशंकाएँ ऐसी खबरों से और भी बढ़ गईं जिनमें रास्ते में कुछ ज़िलों में रहने और खाने के अपर्याप्त प्रबंध के बारे में बताया गया था।
जब आपको अपने ज़िले के ज़िला आपदा मोचन बल की कार्यवाही का संचालन करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी तो इस परिस्थिति से आपने अनेक सबक हासिल किये। आपके मतानुसार सामयिक प्रवासी संकट में क्या नीतिपरक मुद्दे उभर कर आए? एक नीतिपरक सेवा प्रदाता राज्य से आप क्या समझते हैं? समान परिस्थितियों में प्रवासियों की पीड़ाओं को कम करने में सभी समाज क्या सहायता प्रदान कर सकता है? (250 शब्द)
19 Feb, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नप्रवासी संकट में शामिल नैतिक मुद्दे
उपरोक्त मामले को जीवन बनाम आजीविका के नैतिक दुविधा के रूप में वर्णित किया जा सकता है। कोविड-19 से लड़ने के लिये लॉकडाउन को एक निवारक उपाय के रूप में लागू किया गया, जिसके परिणामस्वरूप प्रवासी मज़दूरों के लिये संकट की स्थिति पैदा हो गई। इस संकट के परिणामस्वरूप व्यापार लगभग बंद था। एक ओर स्वास्थ्य और मानव जीवन के बीच तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था और आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया।
लॉकडाउन के कारण उन श्रमिकों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ जो मानसिक पीड़ा का सामना कर रहे थे, जो कई कारकों से प्रभावित थे। जैसे:-
हालाँकि प्रवासी संकट ने भी उनकी जान को जोखिम में डाला क्योंकि महामारी के प्रसार की गति नेटवर्क के प्रभावों पर निर्भर करती है, एक बड़ी आबादी का एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की प्रक्रिया के फलस्वरूप स्वाभाविक रूप से विषाणु के प्रसार की गति उच्च हो जाती है।
एथिकल केयर-गिविंग स्टेट
कोविड -19 महामारी के कारण उत्पन्न अभूतपूर्व संकट नैतिक रूप से देखभाल करने हेतु राज्य के समक्ष एक मज़बूत चुनौती प्रस्तुत करते हैं। देखभाल की नैतिकता एक नारीवादी दार्शनिक परिप्रेक्ष्य है जो नैतिकता के आधार पर देखभाल का प्रस्ताव रखती है।
जाहिर है कि देखभाल करना मनुष्यों के लिये आधारभूत नैतिकता है। अत: देखभाल की नैतिकता को नैतिक सापेक्षतावाद के आरोप से मुक्त रखा जाता है और एक नियम-आधारित दृष्टिकोण के बजाय नैतिकता और निर्णय लेने की दिशा में एक संबंधपरक और संदर्भ के अनुसार दृष्टिकोण अपनाया जाता है।
भारत सरकार ने कोविड-19 महामारी से लड़ते हुए नैतिक देखभाल करने वाले राज्य का उदाहरण पेश किया है।
यह सरकार के निम्नलिखित कार्यों में परिलक्षित होता है:
सिविल सोसायटी की भूमिका
जैसा कि कोविड -19 ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया, यह वैश्विक महामारी के प्रति हमारे सामूहिक लचीलेपन का परीक्षण था। ऐसे परिदृश्य में हर किसी द्वारा अकेले कार्य करना, समाधान की संभावना को क्षीण करता है। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि गैर-सरकारी संगठनों को समाज के प्रमुख स्तंभों के रूप में क्यों जाना जाता है।
गैर-सरकारी संगठनों ने विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मुद्दों का मुकाबला करने में काफी योगदान दिया। कई गैर-सरकारी संगठनों और लोगों जिन्हें कोविड-योद्धा के रूप में जाना जाता है, ने स्वेच्छा से लोगों को कोविड-19 से लड़ने और देश के दूरस्थ क्षेत्रों में सरकार द्वारा प्रदान की जा रही मदद को पहुँचाने में सहायता की।
गैर-सरकारी संगठनों ने राष्ट्रीय आपातकालीन कोष बनाने के लिये पहल की, एक-दूसरे के साथ मिलकर उपयुक्त चैनल बनाकर लोगों को मदद पहुँचाने का कार्य किया, नर्सिंग होम में मानवीय एवं तकनीकी सहायता तथा चिकित्सा टीमों के माध्यम से अन्य सुविधाएँ प्रदान कीं।
बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद ने बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने और प्रवासी मज़दूरों को उनके घरों तक पहुँचाने में सहायता कर मानवता की भावना प्रदर्शित की।
गैर-सरकारी संगठनों ने देश के भीतरी इलाकों में संचार और ज़रूरी सुविधाओं के वितरण हेतु नेटवर्क बनाए।
इसके अलावा उन्होंने महामारी के प्रसार को कम करने हेतु सोशल डिस्टेंसिंग के महत्त्व के बारे में लोगों को शिक्षित करने के साथ-साथ वायरस के संबंध में जागरूकता पैदा करने जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
वैश्विक महामारी की यह स्थिति कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) के परीक्षण के लिये भी उपयुक्त थी।
आर्थिक असफलता के बावजूद कंपनियों ने इस संकट को अपने सीएसआर के विस्तार के एक अवसर के रूप में उपयोग करने का प्रयास किया।