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प्रश्न :
हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल संसाधनों पर किस प्रकार दूरगामी प्रभाव होगा? (150 शब्द) (UPSC GS-1 Mains 2020)
12 Feb, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- हिमालय के महत्त्व पर संक्षेप में चर्चा करते हुए उत्तर की शुरुआत करें।
- हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने का जल संसाधनों पर प्रभाव की चर्चा करें।
- उचित निष्कर्ष दें।
हिमालय को तीसरा ध्रुव कहा जाता है। नदियों के लिये पानी का प्रमुख स्रोत होने के नाते ये ग्लेशियर दुनिया भर में एक-तिहाई आबादी के लिये जीवन रेखा हैं।
हालाँकि हिमालय के ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने के कारण भारत के मौसम एवं जल संसाधन पर भारी दबाव पड़ रहा है।
हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव:
बाढ़ और सूखे की बारंबारता: हिमालय के ग्लेशियर 10 मुख्य नदियों के माध्यम से दो अरब से अधिक लोगों को जीवन रेखा प्रदान करते हैं।
हिमालयी क्षेत्र में 8,790 ग्लेशियल झीलें हैं। अतः ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने के कारण बाढ़ आ सकती है। उदाहरण के लिये वर्ष 2013 और 2021 में उत्तराखंड में आई भयानक बाढ़।
बड़े हिमनदों के पिघलने के परिणामस्वरूप नदियों में थोड़े समय के लिये जल प्रवाह में अधिक तेज़ी आ सकती है लेकिन उसके बाद प्रवाह कम होने लगेगा और सूखे की स्थिति पैदा होगी।
मानसून पर प्रभाव: हिमालय मानसून परिसंचरण में मौसमी बदलावों और भारत में वर्षा के वितरण पर एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है। भारत में वार्षिक वर्षा के 70% का कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून है।
आईपीसीसी के अनुमानों के अनुसार, ग्लेशियरों के पिघलने से ग्रीष्मकाल में निकट अवधि में 4-12% और लंबी अवधि में 4-25% तक वृद्धि की संभावना है।
मानसून के पैटर्न में बदलाव से तूफान की गंभीरता और आवृत्ति बढ़ेगी जो पहाड़ों की स्थिरता के लिये ख़तरनाक हो सकता है, साथ ही यह महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर सकता है।
भारतीय नदियों का अस्थिर प्रवाह: हिमनदों के पिघलने से भारतीय नदियों की जल-धारा एवं प्रवाह अस्थिर हो सकता है।
गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी भारतीय नदियाँ आंशिक रूप से हिमनदों से और आंशिक रूप से मानसून से जल ग्रहण करती हैं। मानसून के प्रभावित होने क साथ ही यह कृषि में बाधा उत्पन्न करेगा जिसमें एक बड़ा हिस्सा जल संसाधनों का उपयोग में आता है।
निष्कर्ष
आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघलने के कारण घटते जा रहे हैं, अगर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने हेतु पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2100 तक हिंदू-कुश हिमालय के दो-तिहाई ग्लेशियरों के पिघलने की संभावना है।
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