निम्नलिखित गद्यांश की संदर्भ-सहित व्याख्या कीजिए और उसका रचनात्मक-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिये।
"अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है। अपने को नियामक और कर्ता समझने की बलवती स्पृहा उससे बेगार कराती है। उत्सवों में परिचारक और अस्त्रों में ढाल से भी अधिक लोलुप मनुष्य क्या अच्छे हैं?"
10 Feb, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
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संदर्भ
प्रस्तुत गद्यांश हिंदी नाट्य इतिहास के शिखर पुरुष जयशंकर प्रसाद द्वारा 1928 ई. में रचित प्रसिद्ध ऐतिहासिक नाटक स्कंदगुप्त से लिया गया है।
प्रसंग
ये पंक्तियाँ ‘स्कंदगुप्त’ नाटक की आरंभिक पंक्तियाँ हैं जो स्कंदगुप्त द्वारा एकालाप के रुप में कही गईं हैं।
व्याख्या
इन पंक्तियों में स्कंदगुप्त सत्ता में निहित अधिकार भाव को अत्यधिक मादक बता रहा है। मादकता व्यक्ति को विवेकहीन बना देती है। उसके अनुसार इसी कारण व्यक्ति अधिकार सत्ता की वास्तविकता को नहीं पहचान पाता। स्कंदगुप्त के अनुसार वास्तव में अधिकार-सुख निरर्थक होता है। किंतु इसी निरर्थक सुख के लिये व्यक्ति लगातार प्रयत्नशील रहता है क्योंकि अधिकार एवं सत्ता के उन्माद में वह स्वयं को नियामक और कर्त्ता समझने लगता है। फिर स्कंदगुप्त अपने इस भाव को विराम देते हुए कहता है कि साम्राज्य के एक सैनिक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन उसका दायित्व है।
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