गांधी इरविन समझौता वस्तुतः राष्ट्रीय आंदोलन की पलायनवादी मनोवृत्ति का परिचायक न होकर गांधीवादी रणनीति का अहम हिस्सा था, परीक्षण कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा :
- गांधी-इरविन समझौते के मुख्य बिंदु
- क्या पलायनवादी मनोवृत्ति का परिचायक थी? महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख।
- रणनीति का अहम हिस्सा थी?
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मार्च 1931, लंदन में महात्मा गांधी और लार्ड इरविन के मध्य एक राजनीतिक समझौता हुए, जिसमें गांधीजी की निम्न मांगों को स्वीकार कर लिया गया-
- हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा।
- भारतीयों को समुद्र के किनारे नमक बनाने का अधिकार दिया गया।
- भारतीय अब शराब तथा विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना देने के लिये स्वतंत्र थे।
- आंदोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को बहाल किया गया।
कांग्रेस की ओर से गांधीजी ने सविनय अवज्ञा स्थगित कर द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया तथा गांधीजी ने पुलिस की ज्याददियों की जाँच की मांग भी छोड़ दी।
उपर्युक्त समझौते में गांधीजी की पलायनवादी प्रवृत्ति के बिन्दु निम्न प्रकार से समझे जा सकते हैं-
- इस समझौते में आंदोलन के मूल मंत्र, पूर्ण स्वराज्य का कोई उल्लेख नहीं किया गया। इसका जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाषचंद्र बोस ने विरोध किया।
- कुछ लोगों का मानना था कि गांधीजी के यह फैसले पूंजीवादी हित में किये गए थे।
- क्योंकि वह भगत सिह तथा उनके साथियों की सजा माफ करवाने में असफल रहे, कुछ लोगों ने इसे औपनिवेशिक शासन के खिलाफ समर्पण माना। गांधीजी सुलझे हुए राजनीतिज्ञ थे अतः उनके द्वारा लिये गए फैसलों को रणनीतिक संदर्भों में समझने की आवश्यकता है।
- गांधीजी संघर्ष विराम संघर्ष की रणनीति के अनुयायी थे उनके अनुसार जनांदोलनों को लम्बे समय तक चलाने से आंदोलन में नीरसता के साथ ढीलापन आ जाता है। अंतः जनता का ऊर्जा और उत्साह आंदोलन के प्रति बना रहना आवश्यक है।
- वे अहिसात्मक तथा नियंत्रित जनांदोलन में विश्वास करते थे और आंदोलन पर शीर्ष नेतृत्व की पकड़ कमजोर हो रही थी।
- गांधीजी ने दबाव-समझौता-दबाव की रणनीति अपनाई। पहले अंग्रेजों की शर्तें स्वीकार की किन्तु गोलमेज आंदोलन से निराशा हाथ लगने पर दोबारा आंदोलन की शुरुआत की।
अतः गांधीजी द्वारा अंग्रेजों की शर्तें स्वीकार करने के पीछे उनकी रणनीतिक समझ थी न कि उनकी पलायनवादी प्रवृत्ति।