समावेशी संवृद्धि एवं संपोषणीय विकास के परिप्रेक्ष्य में, आंतर्पीढ़ी एवं अंतर्पीढ़ी साम्या के विषयों की चर्चा कीजिये। (UPSC GS-3 Mains 2020)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत में आंतर्पीढ़ी (इंट्रा-जनरेशनल) इक्विटी और अंतर्पीढ़ी (इंटर-जनरेशनल) इक्विटी के बारे में बताएँ।
- दोनों शब्दावली को अलग-अलग समझाएँ।
- निष्कर्ष में समावेशी संवृद्धि एवं संपोषणीय विकास दोनों के परिप्रेक्ष्य में चर्चा करें।
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इंटर-जनरेशनल और इंट्रा-जनरेशनल इक्विटी सतत् इक्विटी के सिद्धांत के दो पहलू हैं। सतत् इक्विटी का लक्ष्य है- इंटर-जनरेशनल इक्विटी (वर्तमान और भविष्य के लोगों) और इंट्रा-जनरेशनल इक्विटी (वर्तमान पीढ़ी के अमीर और गरीब) के बीच एक उचित संतुलन।
इंटर-जनरेशनल इक्विटी और मुद्दे:
- इंटर-जनरेशनल इक्विटी के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक भावी पीढ़ी के लिये आर्थिक स्थिरता बढ़ाने हेतु वर्तमान पीढ़ी द्वारा संसाधनों का विकास किया जाना है।
- वर्तमान समय में संसाधनों के वितरण में बढ़ते असंतुलन, पर्यावरण के क्षरण और संसाधनों के ह्रास के कारण इंटर-जनरेशनल इक्विटी महत्त्वपूर्ण हो गई है। यह असंतुलन विकसित और विकासशील देशों के बीच या ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के बीच अधिक है।
- इसके अलावा विकसित देश आज जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन हेतु विकासशील देशों की मदद करने के लिये तैयार नहीं हैं, जिस कारण पर्यावरणीय क्षति की कीमत पर आर्थिक विकास हो रहा है।
- इस संदर्भ में सतत् विकास की अवधारणा पेश की गई है, विकास इस तरह से होना चाहिये कि वे संसाधन भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये भी उपलब्ध हों।
इंट्रा-जनरेशनल इक्विटी और मुद्दे:
- इंट्रा-जनरेशनल इक्विटी की अवधारणा एक ही पीढ़ी के व्यक्तियों के मध्य संसाधनों का उपयोग और देखभाल करने का अधिकार और कर्तव्य से संबंधित है।
- इंट्रा-जनरेशनल इक्विटी को बढ़ावा देने के लिये सामाजिक न्याय की अवधारणा का प्रचार किया जाता है। सरकार द्वारा समाज के कमज़ोर वर्गों की सहायता के लिये कल्याणकारी योजनाएँ जैसे- सब्सिडी, आरक्षण आदि की व्यवस्था की जाती है।
- हालाँकि कभी-कभी सामाजिक न्याय की अवधारणा के तहत किये गए उपाय मुक्त बाज़ार सिद्धांत के क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हैं। मुक्त बाज़ार राज्य की नीतियों में महत्त्वपूर्ण बदलाव की मांग करता है और प्रत्येक समस्या के समाधान के रूप में बाज़ार का प्रचार करता है।
- भारत द्वारा 1991 में एलपीजी संबंधी सुधार किये गए। हालाँकि बाज़ार समर्थक सुधारों को प्रभावित करने में वह विफल रहा और इसके परिणामस्वरूप बेरोज़गारी एवं असमानता (ऑक्सफैम रिपोर्ट) बढ़ गई है। इस संदर्भ में समावेशी विकास की अवधारणा को पेश किया गया है जो आर्थिक विकास के दौरान समाज के हर वर्ग को लाभ पहुँचाने के साथ समान अवसर प्रदान करता है।
निष्कर्ष
- समावेशी विकास और सतत् विकास की अवधारणाएँ वैश्विक कल्याण के प्रमुख स्तंभ हैं, जिन्हें इंट्रा-जनरेशनल और इंटर-जनरेशनल इक्विटी सुनिश्चित कर प्रेरित किया जा सकता है।
- इसके अलावा भारत जैसे विकासशील देश में इंट्रा-जनरेशनल और इंटर-जनरेशनल इक्विटी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि भावी पीढ़ी सहित सभी का विकास सुनिश्चित करने के लिये देश को अधिक संसाधनों की आवश्यकता है।