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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    "ज्ञान का अभाव बुद्धि को भ्रमित करता है, जबकि शिक्षा आत्मा को सच्चा ज्ञान प्रदान करती है- रवींद्रनाथ टैगोर।" वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस ​​उद्धरण की चर्चा कीजिये? (150 शब्द)

    01 Jan, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • दिये गए उद्धरण का अर्थ विस्तार में समझाएँ
    • वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उद्धरण की प्रासंगिकता समझाएँ

    अविद्या बुद्धि एवं विवेक के लिये हानिकारक होती है। टैगोर के लिये शिक्षा का अर्थ स्वयं से साक्षात्कार है एवं जीवन का उद्देश्य इस स्थिति को प्राप्त करना है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे शिक्षा के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।

    टैगोर के अनुसार, किसी को वास्तविकता से जुड़ा होना चाहिए एवं आदर्शों और मूल्यों को प्राप्त करने एवं करने हेतु अपने अहंकार से मुक्त होना चाहिए। आध्यात्मिक विकास के लिये इंसान को अपनी चेतना को विस्तार देना होगा, उसे प्रेम और सहानुभूति से परिपूर्ण करना होगा। यही सही मायने में दुनिया को समझना है।

    टैगोर के लिये, उच्चतम शिक्षा वह है जो हमें केवल जानकारी नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को उसके पूरे अस्तित्व के साथ सामंजस्य बिठाने में मदद करती है एवं इसका अंतिम लक्ष्य उन लोगों की स्थितियों में सुधार करना है जो हाशिए पर हैं।

    टैगोर का मत था कि शिक्षा की प्राथमिक भूमिका बहुत परिवर्तनकारी है। उनके प्रेम और सहानुभूति की शिक्षा में ईश्वर के लिये प्रेम और मानव के लिये सहानुभूति (नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा) शामिल है। इसके साथ दूसरों से प्रेम (शांति शिक्षा) और प्रकृति (पर्यावरणीय शिक्षा) से प्रेम भी शामिल है।

    वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता

    वर्तमान संदर्भ में, टैगोर के कथन का अर्थ बहुत महत्वपूर्ण और व्यापक है। आज शिक्षा का व्यवसायीकरण कर दिया गया है और लाभ पर ध्यान केंद्रित हो गया है और यह सहानुभूति, सम्मान और पारस्परिकता से रहित है, जो टैगोर की शिक्षा का अनन्य बिंदु है। 

    वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इस कमी को टैगोर के सिद्धांतों के पालन द्वारा दूर किया जा सकता है:

    • शिक्षकों और प्रशासन को यह समझने का प्रयास करना चाहिये कि धर्म और आध्यात्मिकता छात्रों को प्रेरित करने हैं, क्योंकि ये तत्व व्यक्तिगत आवश्यकताओं (मानसिक स्तर पर) की पूर्ति के लिये प्रेरक शक्ति हो सकते हैं।
    • शिक्षक इसमें अपना योगदान छात्रों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होकर, यह समझकर कि प्रत्येक छात्र की अलग-अलग ज़रूरतें होंगी और उनके सीखने-समझने की गति अलग-अलग होती है, दे सकते हैं । इसलिये, छात्रों को अपनी धार्मिक मान्यताओं का अभ्यास करने के लिये स्थान और समय देना एवं सम्मान करना आवश्यक है।
    • बहुसांस्कृतिक शिक्षा के लिये आवश्यक है कि आध्यात्मिकता और धर्म हर छात्र की सांस्कृतिक आत्म-पहचान की भावना के घटक हों।

    निष्कर्ष

    टैगोर का विचार है कि जब सामाजिक ज़रूरतें पूरी नहीं होती हैं तो धर्म और आध्यात्मिकता की सबसे अधिक ज़रूरत होती है। अत: इसे भारतीय शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिये।

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