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प्रश्न :
भारत में 'माइक्रो क्लाइमैटिक ज़ोन' के स्थानांतरित होने पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा करते हुए इसे कम करने हेतु आवश्यक सुझाव दीजिये। (250 शब्द)
04 Jan, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में माइक्रो क्लाइमेटिक ज़ोन के स्थानांतरण को संक्षेप में समझाएँ।
- माइक्रो क्लाइमेटिक ज़ोन के स्थानांतरण के प्रभाव पर चर्चा करें।
- इससे निपटने के लिये कुछ उपाय सुझाएँ।
किसी स्थान का माइक्रो क्लाइमेट वहाँ की जमीन, वनस्पति, मिट्टी, अक्षांश, ऊँचाई, और वातावरण की नमी, तापमान और हवाओं द्वारा परिभाषित किया जाता है। किसी स्थान का मौसम माइक्रो क्लाइमेटिक परिस्थितियों से भी प्रभावित होता है।
भारत के विभिन्न ज़िलों में माइक्रो क्लामेटिक ज़ोन स्थानांतरित हो रहे हैं। माइक्रो क्लाइमेट जोन में बदलाव का पूरे क्षेत्र पर भयंकर प्रभाव हो सकता है। उदाहरण के लिये- वार्षिक औसत तापमान में हर 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से कृषि उत्पादकता में 15-20% की कमी आएगी।
माइक्रो कलाइमेटिक ज़ोन में इस बदलाव के पीछे कुछ कारणों में भू-उपयोग पैटर्न, वनों की कटाई, मैंग्रोव पर अतिक्रमण, अतिक्रमण के कारण वेटलैंड्स और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों का कम होना और शहरी ताप द्वीपों का बनना को ताप को स्थानीय रूप से बदलना है।
माइक्रो क्लाइमेटिक ज़ोन शिफ्टिंग का प्रभाव चरम घटनाओं की आवृत्ति, तीव्रता और अप्रत्याशितता में वृद्धि है। उदाहरण के तौर पर भारत ने वर्ष 1970 और वर्ष 2005 के मध्य 35 वर्षों में 250 चरम जलवायविक घटनाओं को देखा, तब से केवल 15 वर्षों में इस तरह की 310 घटनाओं को दर्ज किया गया।
वर्ष 2005 के बाद से माइक्रो क्लाइमेटिक ज़ोन में स्थानांतरण के कारण चरम घटनाओं में असामान्य रूप से वृद्धि के फलस्वरूप ये ज़िलों में संपत्ति, आजीविका और जीवन की हानि जैसे दुष्प्रभाव को झेल रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप चरम जलवायविक घटनाओं के कारण वर्ष 1999-2018 में दुनिया भर में 4,95,000 लोगों की मौतें हुईं। 12,000 से अधिक चरम जलवायविक घटनाओं के कारण इस अवधि के दौरान USD 3.54 ट्रिलियन (क्रय शक्ति समता या PPP के संदर्भ में) का नुकसान हुआ। वर्तमान में हो रहे भयावह जलवायु घटनाओं के कारण पिछले 100 वर्षों में तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो गई है।
माइक्रो क्लाइमेटिक ज़ोन के स्थानांतरण के प्रभावों को कम करने के उपाय:
- तटीय क्षेत्र, शहरी क्षेत्रों में तापमान, जल की कमी एवं जैव विविधता में आने वाले बदलाव जैसी महत्वपूर्ण विषयों का मानचित्रण करने हेतु एक जलवायु जोखिम मानचित्र को विकसित करने का प्रयास करना चाहिये।
- आपात स्थिति में एक व्यवस्थित एवं निरंतर प्रतिक्रिया के लिये एक एकीकृत आपातकालीन निगरानी प्रणाली विकसित करना चाहिये।
- सतत और पर्यावरण के अनुकूल शहरों का निर्माण। पर्यावरण के अनुकूल शहरों एवं स्मार्ट सिटी विकसित करने हेतु कानून का लागू करना चाहिये।
- मुख्य जोखिम मूल्यांकन के अंतर्गत स्थानीय, क्षेत्रीय, मैक्रो और माइक्रो-क्लाइमेटिक स्तर सहित सभी स्तरों को शामिल करना चाहिये।
- जोखिम मूल्यांकन प्रक्रिया में सभी हितधारकों की भागीदारी को बढ़ाएँ।
- राष्ट्रीय स्तर और स्थानीय की योजनाओं में जोखिम मूल्यांकन को शामिल किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के अनुसार, भारत पहले से ही चरम जलवायु घटनाओं के मामले में वैश्विक रूप से 5वाँ सबसे कमज़ोर देश है, और यह दुनिया की बाढ़ राजधानी माना जाने लगा है।
इस प्रकार, भारत को सीईईवी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट "चरम जलवायविक घटनाओं के लिये भारत को तैयार करना" का संज्ञान लेते हुए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि भारत माइक्रो क्लाइमेटिक ज़ोन शिफ्टिंग से सुभेद्यता को कम करने के लिये अच्छी तरह से तैयार हो।
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