हिंदी सूफी काव्य के सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा कीजिये।
04 Dec, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
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भारत की सामासिक संस्कृतिक या गंगा-जमुनी तहज़ीब के निर्माण में सूफी काव्यधारा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसकी सांस्कृतिक समन्वय की विशेषता इसकी महत्ता को बढ़ाती है।
सूफियों के समय हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता भारतीय समाज के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी। सूफी कवि जायसी ने हिंदुओं के घरों में प्रचलित प्रेम-कथाओं को अपने भावनात्मक रहस्यवाद में प्रस्तुत किया, जिसमें प्रेम को मानवीय जीवन का सार तत्त्व माना गया था। साथ ही हिंदू धर्म के मिथकों को भी सम्मान दिया और अपनी कविताओं में हिंदू देवी-देवताओं को सम्मानपूर्वक शामिल भी किया, जैसे पद्मावत में शिव, पार्वती, हनुमान या कन्हावत में कृष्ण की उपस्थिति।
सूफी काव्य का दर्शन सांस्कृतिक महत्ता को प्रतिपादित करता है जिसके माध्यम से इसने हिंदू और इस्लाम के मध्य संवाद का द्वार खोल दिया। मूलतः इस्लाम में एकेश्वरवाद को मानते थे। किंतु उसमें खुदा एवं बंदे के एकत्त्व की अनुमति नहीं थी। उन्होंने प्लॉटिनस के नवप्लेटोवाद तथा भारतीय औपनिषदिक चिंतन में निहित ब्रह्मजीव एकत्व (अहं ब्रह्मस्मि) की धारणा को आधार बनाकर ‘अन-अल-हक’ की घोषणा की जिसका तात्पर्य है कि ‘मैं ही खुदा हूँ’ चूँकि यह विचार भारतीय समाज के लिये चिरपरिचित था, अतएव इसने समन्वय का मार्ग प्रशस्त किया।
सूफी कवियों ने लिपि तो अरबी की ली किंतु भाषा ठेठ अवधी रखी उन्होंने छंद भी अरबी-फारसी काव्य परंपरा से नहीं लिये, बल्कि दोहा और चौपाई की शैली को चुना, जिसकी शुरुआत आदिकाल में स्वयंभू जैसे कवियों ने की थी और जो आगे चलकर रामचरित मानस में भी प्रयुक्त हुयी।
सूफी काव्य की कथानक रूढ़ियाँ भारतीय साहित्य परंपरा से ही ली गई जैसे बारहमासा, षट्ऋतु वर्णन, ईश्वरीय हस्तक्षेप, आकाशवाणी, शुक-शुकी संवाद इत्यादि। साथ ही सूफी काव्यों में लोकतत्त्व की उपस्थिति इसकी सांस्कृतिक महत्ता को और बढ़ाती है जिसके कारण हिंदुओं की दीवाली, होली जैसे त्यौहार इन कविताओं में लगातार नज़र आते है।