'महिला संगठनों में पुरुषों की भागीदारी बढ़ाने से उनमें लिये जाने वाले निर्णयों में तार्किक रूप से संतुलन स्थापित होगा तथा निर्णय पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं होगें।' टिप्पणी करें।
30 Nov, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज
हल करने का दृष्टिकोण:
|
समाज में महिलाओं के प्रति भेदभाव रोकने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिये अनेक सरकारी तथा गैर-सरकारी प्रयास किये जा रहे हैं। इन प्रयासों में महिला संगठनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, किंतु अधिकतर यह देखा जा जाता है कि महिला संगठनों की सदस्य ज्यादातर महिलाएं ही होती हैं। पुरुष सदस्य की संख्या होती भी है तो केवल नाममात्र की।
महिला संगठन समाज में व्याप्त लिंग-भेद को दूर करने के लिये संघर्षरत रहते हैं। किसी संगठन में केवल महिला सदस्यों का होना भी एक प्रकार का लिंग भेद ही है। अत: ऐसे संगठनों में पुरुषों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिये। विशेषकर उन्हें जो महिला सशक्तीकरण के समर्थक हैं।
ऐसा माना जाता है कि पुरुषों की मानसिकता को एक पुरुष ही भली-भाँति समझ सकता है। अत: महिला संगठन में उचित संख्या में पुरुषों की उपस्थिति अनिवार्य है, क्योंकि पुरुष सदस्य महिलाओं से जुड़े विभिन्न मुद्दों को समाज के अन्य पुरुष सदस्यों के समक्ष बेहतर ढंग से प्रकट कर सकते हैं। इसके अलावा यह भी विचारणीय प्रश्न है कि महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये संघर्ष करना केवल महिलाओं का काम ही नहीं है। पुरुषों को भी इसमें बराबर की भागीदारी निभानी होगी। अत: इसके लिये महिला संगठनों में पुरुषों की भूमिका और भी ज़रूरी हो जाती है।
कई बार इस संदर्भ में शिकायतें भी आती हैं कि महिलाओं ने दहेज, शारीरिक शोषण आदि के मामले में पुरुषों पर झूठा आरोप लगाया है जिसकी जाँच की मांग की जाती है एवं जाँच में महिला संगठनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अत: इन संगठनों में पुरुषों को शामिल करने से उनमें लिये जाने वाले निर्णयों में तार्किक रूप से संतुलन स्थापित होगा तथा निर्णय पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हांगे। अत: महिला संगठनों में पुरुषों की भागीदारी वांछनीय भी है और ज़रूरी भी।