हाल ही में चर्चा में रहे 'डीप फेक' शब्द से आप क्या समझतें हैं?इससे जुड़ी चिंताओं की चर्चा करते हुए समाधान के बिंदुओं पर प्रकाश डालें।
25 Nov, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी
हल करने का दृष्टिकोण-
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डीप फेक, ‘डीप लर्निंग’ और ‘फेक’ का सम्मिश्रण है। इसके तहत डीप लर्निंग नामक एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सॉफ्टवेयर का उपयोग कर एक मौजूदा मीडिया फाइल (फोटो, वीडियो या ऑडियो) की नकली प्रतिकृति तैयार की जाती है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एल्गोरिदम का प्रयोग कर किसी व्यक्ति द्वारा बोले गए शब्दों, शरीर की गतिविधि या अभिव्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर इस सहजता के साथ स्थानांतरित किया जाता है कि यह पता करना बहुत ही कठिन हो जाता है कि प्रस्तुत फोटो/वीडियो असली है या डीप फेक।
डीप फेक का मामला सबसे पहले वर्ष 2017 में सामने आया जब सोशल मीडिया साइट ‘रेडिट’ पर ‘डीप फेक’ नाम के एक अकाउंट पर इसके एक उपयोगकर्त्ता द्वारा कई मशहूर हस्तियों की आपत्तिजनक डीप फेक तस्वीरें पोस्ट की गईं। इस घटना के बाद से डीप फेक के कई अन्य मामले भी सामने आए हैं।
डीप फेक के दुष्प्रभाव:
डीप फेक के माध्यम से किसी व्यक्ति, संस्थान, व्यवसाय और यहाँ तक कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी कई प्रकार से क्षति पहुँचाई जा सकती है।
डीप फेक के माध्यम से मीडिया फाइल में व्यापक हस्तक्षेप (जैसे-चेहरे बदलना, लिप सिंकिंग या अन्य शारीरिक गतिविधि) किया जा सकता है और इससे जुड़े अधिकांश मामलों में लोगों की पूर्व अनुमति नहीं ली जाती, जो मनोवैज्ञानिक, सुरक्षा, राजनीतिक अस्थिरता और व्यावसायिक व्यवधान का खतरा उत्पन्न करता है।
महिला सुरक्षा:
डीप फेक का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर पोर्नोग्राफी के मामलों में देखा गया है जो भावनात्मक और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाने के साथ कुछ मामलों में व्यक्तिगत हिंसा को भी बढ़ावा देता है।
डीप फेक पोर्नोग्राफी के अधिकांश मामलों में अपराधियों का लक्ष्य महिलाएँ ही रही हैं, ऐसे में डीप फेक पीड़ित व्यक्ति को धमकाने, डराने और मनोवैज्ञानिक क्षति पहुँचाने हेतु प्रयोग किये जाने के साथ यह किसी महिला को यौन उपभोग की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करता है।
राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियाँ:
डीप फेक जैसी तकनीकों के दुरुपयोग से राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है।
सत्ता में सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों, भू-राजनीतिक आकांक्षा रखने वाले लोगों, हिंसक अतिवादियों या आर्थिक हितों से प्रेरित लोगों द्वारा डीप फेक के माध्यम से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचनाओं में हेर-फेर कर और गलत सूचनाओं के प्रसार से बड़े पैमाने पर अस्थिरता उत्पन्न की जा सकती है।
उदाहरण के लिये वर्ष 2019 में अफ्रीकी देश ‘गैबाॅन गणराज्य’ में राजनीतिक और सैन्य तख्तापलट के एक प्रयास में डीप फेक के माध्यम से गलत सूचनाओं को फैलाया गया, इसी प्रकार ‘मलेशिया’ में भी कुछ लोगों द्वारा विरोधी राजनेताओं की छवि खराब करने के लिये डीप फेक का प्रयोग देखा गया।
आतंकवादी या चरमपंथी समूहों द्वारा डीप फेक का प्रयोग राष्ट्र-विरोधी भावना फैलाने के लिये किया जा सकता है।
लोकतंत्र के लिये खतरा:
डीप फेक लोकतांत्रिक संवाद को बदलने और महत्त्वपूर्ण संस्थानों के प्रति लोगों में अविश्वास फैलाने के साथ लोकतंत्र को कमज़ोर करने के प्रयासों को बढ़ावा दे सकता है।
डीप फेक का प्रयोग चुनावों में जातिगत द्वेष, चुनाव परिणामों की अस्वीकार्यता या अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं के लिये किया जा सकता है, जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये बड़ी चुनौती बन सकता है।
इसके माध्यम से चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के कुछ ही समय/दिन पहले विपक्षी दल या चुनावी प्रक्रिया के बारे में गलत सूचना फैलाई जा सकती है, जिसे समय रहते नियंत्रित करना और सभी लोगों तक सही सूचना पहुँचना बड़ी चुनौती होगी।
गौरतलब है कि ब्रिटेन के पिछले प्रधानमंत्री पद के चुनाव में लेबर पार्टी और कंज़रवेटिव पार्टी के उम्मीदवारों का एक डीप फेक वीडियो सामने आया जिसमें वे एक-दूसरे का समर्थन करते दिखाई दिये, इसी प्रकार भारत में भी 2019 के लोकसभा चुनावों में कुछ राजनेताओं के डीप फेक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे जिसे बाद में हटा दिया गया।
डीप फेक तथ्यात्मक सापेक्षवाद को बढ़ावा देता है तथा यह किसी अधिनायकवादी शासक को सत्ता में बने रहने, लोगों के दमन को सही ठहराने और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखने में सहायक हो सकता है।
व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और पहचान को क्षति:
डीप फेक का इस्तेमाल किसी व्यक्ति या संस्थान की पहचान और प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाने के लिये किया जा सकता है।
ऐसे मामलों में यदि पीड़ित व्यक्ति फेक मीडिया को हटाने या स्थिति को स्पष्ट करने में सफल रहता है तब भी इसके कारण हुई शुरुआती क्षति को कम नहीं किया जा सकेगा।
डीप फेक का प्रयोग कई तरह के अपराधों जैसे- धन उगाही, निजी अथवा संवेदनशील जानकारी एकत्र करने या किसी अन्य हित को अनधिकृत तरीके से पूरा करने के लिये किया जा सकता है।
एक अध्ययन के अनुसार, प्रतिवर्ष विभिन्न व्यवसायों के खिलाफ प्रसारित गलत सूचनाओं और फेक न्यूज़ के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 78 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्षति होती है।
समाधान:
नीति निर्माण: डीप फेक मीडिया सामग्री के निर्माण और इसके वितरण की चुनौती से निपटने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियों, नागरिक समाज, नीति निर्माताओं तथा अन्य हितधारकों को चर्चा के माध्यम से इंटरनेट एवं सोशल मीडिया की विनियमन नीति की एक व्यापक रूपरेखा तैयार की जानी चाहिये।
तकनीकी का प्रयोग: डीप फेक मीडिया सामग्री की पहचान करने, इसे प्रमाणित करने और इसके आधिकारिक स्रोतों तक पहुँच को सुलभ बनाने के लिये आसानी से उपलब्ध तथा उपयोग किये जा सकने वाले तकनीकी आधारित समाधान के विकल्पों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूसी बर्कले के शोधकर्त्ताओं ने एक प्रोग्राम तैयार किया है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग कर डीप फेक वीडियो की पहचान कर सकता है। ‘डिटेक्टिंग डीप-फेक वीडियोज़ फ्रॉम फेनोम-विसेम मिसमैच’ नामक शीर्षक से प्रकाशित एक शोध के अनुसार, यह प्रोग्राम किसी मीडिया फाइल में लोगों की आवाज़ और उनके मुँह के आकार में सूक्ष्म भिन्नताओं के माध्यम से 80% मामलों में डीप फेक वीडियो की पहचान करने में सफल रहा।
साक्षरता और जागरूकता: उपभोक्ताओं और पत्रकारों के लिये मीडिया जागरूकता को बढ़ाना गलत सूचनाओं तथा डीप फेक जैसी चुनौतियों से निपटने का सबसे प्रभावी साधन/विकल्प है।
वर्तमान समय में मीडिया साक्षरता एक विवेकशील समाज के लिये बहुत ही आवश्यक है। एक मीडिया उपभोक्ता के रूप में हमारे पास उपलब्ध सूचना को पढ़ने, समझने और उसका उपयोग करने की क्षमता अवश्य की होनी चाहिये।
मीडिया और इंटरनेट को बेहतर ढंग से समझने और इसके सुरक्षित प्रयोग को बढ़ावा देने का एक छोटा हस्तक्षेप भी इससे होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक हो सकता है।
निष्कर्षतः सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति के माध्यम से जहाँ संचार, शिक्षा स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्याप्त सामाजिक असामनता को दूर करने में सहायता प्राप्त हुई है, वहीं इसने डीप फेक और साइबर सुरक्षा से जुड़ी कई अन्य चुनौतियों को जन्म दिया है। डीप फेक और दुष्प्रचार जैसी चुनौतियों से निपटते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने हेतु सभी हितधारकों के साथ मिलकर एक बहुपक्षीय दृष्टिकोण को अपनाना बहुत ही आवश्यक है।