लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    स्वतंत्रता के सात दशक के बाद भी भारत में कुपोषण एक गंभीर समस्या बनी हुई है। देश में कुपोषण के मामलों में वृद्धि के प्रमुख कारण क्या हैं? इसके समाधान के विकल्पों पर प्रकाश डालिये।

    25 Nov, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण-

    • भूमिका
    • कुपोषण की समस्या
    • कारण
    • समाधान
    • निष्कर्ष

    विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कुपोषण किसी व्यक्ति में ऊर्जा और/या पोषक तत्त्वों की कमी, अधिकता अथवा असंतुलन को दर्शाता है। वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2016 तक लड़कों में कम वज़न के मामलों की दर 66% से घटकर 58.1% तक पहुँच गई साथ ही इसी दौरान लड़कियों में कम वज़न के मामलों की दर 54.2% से घटकर 50.1% तक पहुँच गई थी। हालाँकि कम वज़न के मामलों में आई यह कमी अभी भी एशिया के औसत से काफी ज़्यादा है।

    इसके अतिरिक्त भारत में 37.9% बच्चों में वृद्धिरोध या बौनेपन और 20.8% में निर्बलता या दुबलेपन के मामले देखे गए है जबकि एशिया में यह औसत क्रमशः 22.7% और 9.4% है।

    कारण:

    गुणवत्तापूर्ण आहार की कमी: देश की एक बड़ी आबादी में विटामिन और अन्य महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की कमी का सबसे प्रमुख कारण गुणवत्तापूर्ण आहार का अभाव है। देश में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप पर्याप्त मात्रा में सब्जियाँ, फल, दालें और पशु उत्पाद उपलब्ध नहीं हो पाते हैं।

    महँगाई: गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से देश में प्रचलित प्रमुख आहार जैसे-गेहूँ, चावल और मकई आदि की तुलना में सब्जी, फल, दाल तथा पशु उत्पादों के मूल्य में भारी वृद्धि हुई है जिसके कारण सभी लोगों के लिये नियमित रूप से इनका सेवन करना संभव नहीं हो पाता है।

    कृषि क्षेत्र में विविधता का अभाव: स्वतंत्रता के बाद से देश में कृषि उत्पादन में लगभग पाँच गुना वृद्धि हुई है, हालाँकि इस दौरान पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में गेहूँ और चावल जैसी प्रमुख फसलों के उत्पादन में वृद्धि पर ही विशेष ध्यान दिया गया है। जिसकी वजह से अन्य पारंपरिक फसलों, फल व सब्जियों के उत्पादन और खपत में भारी गिरावट आई है।

    गौरतलब है कि 75 वर्ष पहले FAO की स्थापना के समय भी नीति निर्धारकों द्वारा कृषि उत्पादकता में सुधार से पहले मानव पोषण में सुधार के मुद्दे को अधिक प्राथमिकता दी गई। हालाँकि भारत में इस दिशा में अधिक प्रगति नहीं हुई।

    पलायन : भारत में जनसंख्या में हुई तीव्र वृद्धि के बीच कई राज्यों में जनसंख्या की तुलना में आवश्यक संसाधनों का विकास नहीं हो पाया है जिसके कारण ऐसे राज्यों की एक बड़ी आबादी को अपनी आजीविका के लिये देश के दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ता है। रोज़गार की अनिश्चितता और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोगों के लिये पोषक तत्त्वों की कमी के मामलों में वृद्धि होती है और इसका सबसे अधिक प्रभाव महिलाओं और बच्चों पर देखने को मिलता है।

    शिक्षा और जागरूकता: भारत के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों में (विशेषकर महिलाओं में) खाद्य पदार्थों में पोषक तत्त्वों की भूमिका और स्वास्थ्य पर इनके प्रभावों के प्रति जागरूकता का अभाव इस संकट का एक प्रमुख कारण है।

    ‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020' के अनुसार भारत में प्रजनन योग्य आयु की दो में से एक महिला में एनीमिया के मामले देखे गए हैं। कुपोषित महिलाओं के गर्भ में पल रहे बच्चों को कुपोषण के साथ-साथ कई अन्य गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

    योजनाओं का क्रियान्वयन: भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही देश में खाद्य सुरक्षा और कुपोषण जैसी समस्याओं से निपटने के लिये कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की गई, हालाँकि वर्तमान में भी देश में इन समस्याओं से जुड़े मामलों के आँकड़े योजनाओं के क्रियान्वयन में भारी कमी की ओर संकेत करते हैं।

    समाधान:

    पोषक तत्त्वों के घनत्व में सुधार: देश में भोजन में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख अनाज (जैसे-गेहूँ, चावल आदि) या फूड स्टेपल्स आवश्यक खनिज या विटामिन का घनत्त्व बहुत अधिक नहीं होता है, ऐसे में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध इन खाद्य पदार्थों में पौष्टिक घटकों के घनत्व को बढ़ाने और अवांछनीय यौगिकों के घनत्व को कम करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।

    इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये फूड फोर्टिफिकेशन की प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है, इस मामले में प्रधानमंत्री द्वारा आठ बायो-फोर्टीफाइड फसलों को बढ़ावा देने की पहल सराहनीय है।

    इन फसलों को खाद्य-आधारित कल्याण कार्यक्रमों [जैसे- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), मध्याह्न भोजन, आँगनवाड़ियों और राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) आदि] से जोड़ा जाना चाहिये, जिससे एक बड़ी आबादी तक इनकी पहुँच सुनिश्चित की जा सके।

    गौरतलब है कि विश्व खाद्य कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा देश में ‘फोर्टिफाइड चावल' के उत्पादन पर कार्य किया जा रहा है।

    इस पहल के तहत दिसंबर 2018 से 4,145 टन ‘फोर्टिफाइड चावल' का उत्पादन किया गया है और इसे वाराणसी में एक पायलट योजना के तहत 3 लाख स्कूली बच्चों में वितरित किया गया।

    राष्ट्रीय पोषण अभियान के तहत देश को वर्ष 2022 तक कुपोषण से मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया।

    उर्वरक का चुनाव:

    नाइट्रोजन युक्त उर्वरक प्रधान खाद्य पदार्थों में प्रोटीन, खनिज और विटामिन के घनत्व को बढ़ाते हैं, उर्वरकों में जिंक और आयोडीन के उचित मिश्रण से अनाज में भी जिंक और आयोडीन के घनत्व में वृद्धि की जा सकती है।

    खाद्य विविधता:

    लोगों के लिये आवश्यक पोषक तत्त्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये उनके दैनिक भोजन में शामिल खाद्य पदार्थों में विविधता लाना और इसे वहनीय बनाना बहुत ही आवश्यक है।

    गौरतलब है कि राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा वर्ष 1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ की शुरुआत के बाद देश में दुग्ध उत्पादन और इसकी खपत में भारी वृद्धि देखी गई थी।

    वर्तमान समय में देश में सब्जियों, दालों और फलों के उत्पादन तथा खपत को बढ़ाने के लिये इसी प्रकार की एक पहल को शुरू किया जाना बहुत आवश्यक है।

    हाल ही में सरकार द्वारा कृषि अधिनियमों में किये गए सुधार इस क्षेत्र में एक मज़बूत आपूर्ति शृंखला के विकास का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2