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प्रश्न :
हिंदी में विज्ञान-लेखन की दशा एवं दिशा पर प्रकाश डालिये।
21 Nov, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- हिंदी में विज्ञान-लेखन की दशा एवं दिशा
- निष्कर्ष
हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी लेखन की परंपरा लगभग दो सौ साल पुरानी है। शुरूआत में खड़ी बोली में वैज्ञानिक विषयों पर पाठ्यपुस्तकें तैयार करने के लिये अंग्रेजी से और वैज्ञानिक शब्दों के हिंदी पर्याय तैयार करने की आवश्यकता हुई होगी, जिसकी पूर्ति हेतु खड़ी बोली में वैज्ञानिक शब्द संग्रह पुस्तक रचना का काम साथ-साथ शुरू हुआ।
1810 ई. में लल्लूलाल जी द्वारा प्रकाशित सूची जिसमें उन्होंने 3500 शब्दों को संग्रहित किया, अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसमें हिंदी की वैज्ञानिक शब्दावली को फारसी और अंग्रेजी प्रतिरूपों के साथ प्रस्तुत किया गया। इसके बाद वर्ष 1847 में स्कूल बुक्स सोसाइटी, आगरा ने ‘रसायन प्रकाश प्रश्नोत्तर’ का प्रकाशन किया। गणित अध्यापक पंडित लक्ष्मीशंकर मिश्र ने गणित, स्थिति विद्या, गति विद्या, वायमुडल विज्ञान, प्राकृतिक भूगोल और पदार्थ विज्ञान जैसे विषयों पर पुस्तकें लिखकर आरंभिक वैज्ञानिक लेखन को सुदृढ़ आधार प्रदान किया।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में नवजागरण की प्रक्रिया में अंधविश्वास के स्थान पर तर्क और वैज्ञानिकता पर आधारित सोच को बढ़ावा देने में साइंटिफिक सोसायटी अलीगढ़, वाद-विवाद क्लब बनारस, काशी नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी, आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। गुरूकुल कांगड़ी ने विज्ञान सहित सभी विषयों की शिक्षा के लिये हिंदी को माध्यम बनाया और तदानुरूप 17 पुस्तकों का प्रणयन भी किया।
विज्ञान परिषद् प्रयागराज ने वर्ष 1914 में ‘विज्ञान पत्रिका आरंभ की जो तब से अब तक निरंतर प्रकाशित होती आ रही है। वर्ष 1943-46 के दौरान डॉ- रघुवीर ने लाहौर से हिंदी, तमिल, बंगला और कन्नड़ इन चार लिपियों में तकनीकी शब्दकोश प्रकाशित किया।
मौलिक वैज्ञानिक लेखन में गुणाकर मुले एवं जयंत विष्णु नार्लीकर का योगदान अविस्मरणीय है। मातृभाषा मराठी होते हुए भी मुले ने अधिकांश लेखन हिंदी में किया है गणित हो या विज्ञान, पुरातत्व हो या सामाजिक विज्ञान हर विषय में उनका अद्भुत अधिकार था। एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ्य पुस्तकों के निर्माण में उनका विशेष योगदान रहा। इसी प्रकार जयंत विष्णु नार्लीकर ने खगोल भौतिकी में वैज्ञानिक लेखन को एक नयी दिशा प्रदान की। ‘ब्रह्माण्ड की कुछ झलकें, ‘ब्रह्माण्ड की यात्रा’, ‘वायरस’, ‘भारत की विज्ञान-यात्रा’, ‘धूमकेतु’ आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
इसमें संदेह नहीं कि आज वैज्ञानिक शब्दावली और अभिव्यक्तियों की दृष्टि से हिंदी अत्यंत समृद्ध है। इतने पर भी आज वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में लेखन बहुत ही कम और अपर्याप्त है। इसका कारण भाषा की असमर्थता नहीं बल्कि वैज्ञानिकों का इस दिशा में रूझान न होना है।
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